नसबंदी पूरी तरह से सुरक्षित नहीं, ऑपरेशन विफल होने पर मुआवजा नहीं दिया जा सकता: एनसीडीआरसी

Shahadat

14 March 2023 8:53 AM GMT

  • नसबंदी पूरी तरह से सुरक्षित नहीं, ऑपरेशन विफल होने पर मुआवजा नहीं दिया जा सकता: एनसीडीआरसी

    राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) की पीठ में पीठासीन सदस्य एस.एम. कांतिकर ने राजस्थान के राज्य आयोग के उस आदेश को पलट दिया, जिसमें उस महिला को मुआवजा देने की अनुमति दी गई थी, जिसने आरोप लगाया कि वह नसबंदी ऑपरेशन की विफलता के कारण गर्भवती हो गई।

    कांतिकर ने विस्तार से बताया कि ऑपरेशन से पहले गर्भ मौजूद था। फिर ऐसे ऑपरेशन पूरी तरह से सुरक्षित नहीं होते हैं। इसके बाद भी महिलाओं के गर्भवती होने की संभावना रहती है। इस प्रकार, मामला मेडिकल लापरवाही के दायरे से बाहर है।

    संक्षिप्त तथ्य

    रोबिना (शिकायतकर्ता) ने 07.11.2005 को राजस्थान राज्य द्वारा आयोजित परिवार नियोजन शिविर में मेडिकल अधिकारी द्वारा आयोजित परिवार नियोजन शिविर में नसबंदी ऑपरेशन (नसबंदी की स्थायी विधि, जिससे महिला भविष्य में गर्भवती न हो) से गुज़री। उक्त ऑपरेशन के दो महीने बाद भी महिला ने एक कन्या को जन्म दिया। ट्यूबेक्टोमी के विफल ऑपरेशन से व्यथित होकर रोबिना ने जिला फोरम में एक उपभोक्ता शिकायत दर्ज की।

    जिला फोरम ने शिकायत को स्वीकार कर लिया और मेडिकल अधिकारी और राज्य को 2,00,000/- रूपये के मुआवजे के साथ-साथ 5000 रूपये की मुकदमेबाजी लागत देने का आदेश दिया। जिला आयोग के आदेश से व्यथित होकर याचिकाकर्ताओं ने राज्य आयोग, राजस्थान के समक्ष अपील दायर की, जहां मुआवजे को कम करके आंशिक रूप से अपील की अनुमति दी गई। हालांकि, याचिकाकर्ता अभी भी संतुष्ट नहीं है और इसलिए उसने NCDRC के समक्ष यह पुनर्विचार याचिका दायर की।

    याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि सीएचसी में योग्य सर्जन द्वारा नसबंदी ऑपरेशन किया गया और कई अन्य महिलाओं ने भी इसे सफलतापूर्वक अंजाम दिया। रीकैनालाइजेशन ऐसी चीज है, जिसके बारे में पता चलता है कि यह ट्यूबेक्टॉमी के बाद होती है। इसलिए इसे मेडिकल लापरवाही के तहत कवर नहीं किया जा सकता।

    आयोग की टिप्पणियां

    एनसीडीआरसी ने पाया कि जिला और राज्य दोनों प्लेटफॉर्म इस तथ्य पर ध्यान देने में विफल रहे कि शिकायतकर्ता ऑपरेशन के लगभग 3 महीने बाद गर्भवती हुई। इसका सीधा-सा मतलब है कि गर्भावस्था पहले से ही ट्यूबेक्टोमी से पहले से मौजूद थी और ऑपरेशन के दौरान किसी का ध्यान नहीं गया। इस प्रकार, आयोग ने निष्कर्ष निकाला कि कथित गर्भावस्था ट्यूबेक्टोमी की विफलता के कारण नहीं थी।

    याचिकाकर्ता ने अभी भी परिवार नियोजन बीमा योजना के तहत शिकायतकर्ता महिला को 30,000/- रूपये देन करने पर विचार किया। एनसीडीआरसी ने टिप्पणी की कि उपरोक्त योजना 29.11.2005 से लागू की गई थी और यह शिकायतकर्ता का दुर्भाग्य है कि उसके कुछ दिन पहले ही उसका नसबंदी ऑपरेशन हुआ था। उक्त तथ्य योजना को उसके लिए अनुपयुक्त बना रहा है।

    निष्कर्ष रूप से, गर्भावस्था ट्यूबेक्टोमी ऑपरेशन की विफलता के अंतर्गत नहीं आती और यदि गर्भावस्था पूरी तरह से विफल होने के कारण हुई है तो भी यह मेडिकल लापरवाही नहीं होगी। उसी के लिए आयोग ने पंजाब राज्य बनाम शिव राम और अन्य AIR 2005 SC3280 के मामले पर भरोसा किया, जिसमें माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नसबंदी के तरीके बिल्कुल सुरक्षित नहीं हैं। इस तरह के ऑपरेशन में असफलता मुआवजे के लायक नहीं है।

    इसके बाद राज्य आयोग के आदेश रद्द कर दिया गया और उपभोक्ता शिकायत खारिज कर दी।

    मामला: राजस्थान राज्य और 2 अन्य बनाम रॉबिना

    केस नंबर : रिवीजन पिटीशन नंबर 146/2018

    याचिकाकर्ता के वकील: हर्ष विनय और प्रतिवादी के वकील: बी.एस. शर्मा

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