उत्तर प्रदेश में 'संस्कृत' भाषा के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है: इलाहाबाद हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
20 Jan 2022 10:30 AM IST
"उत्तर प्रदेश राज्य में 'संस्कृत (Sanskrit) भाषा के साथ सौतेला जैसा व्यवहार किया जा रहा है।"
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की।
कोर्ट ने यूपी सरकार से जवाब मांगा कि वे राज्य में संस्कृत शिक्षक का नियमित पद क्यों नहीं बना रहे हैं।
न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की खंडपीठ ने देखा कि यूपी राज्य में लेक्चरार (संस्कृत) का कोई पद स्वीकृत नहीं किया गया है और हिंदी पढ़ाने वाले लेक्चरर को ही संस्कृत विषय पढ़ाने के लिए दिया जा रहा है जिन्होंने हाई स्कूल, इंटरमीडिएट और स्नातक के दौरान संस्कृत भी पढ़ी है।
पूरा मामला
बद्री नाथ त्रिपाठी को 2012 में संस्कृत पढ़ाने के लिए अनुबंध के आधार पर डी.आई.ई.टी., बंसी, सिद्धार्थ नगर में गेस्ट लेक्चरर के रूप में नियुक्त किया गया था, लेकिन फरवरी 02.2021 में, उन्हें सेवाओं से हटा दिया गया।
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि जब डीआइईटी, बंसी, सिद्धार्थ नगर में संस्कृत विषय पढ़ाया जा रहा था तब याचिकाकर्ता को संविदा के आधार पर तब तक बने रहना चाहिए था जब तक कि पद सृजित नहीं हो जाता और नियमित चयन नहीं हो जाता।
मामले में सुनवाई की पिछली तारीख पर बेंच ने कहा था,
"अदालत को यह अजीब लगता है कि जब संस्थान में संस्कृत विषय पढ़ाया जा रहा है तो संस्कृत शिक्षक के लिए पद क्यों नहीं बनाया जा रहा है। अजीब बात यह है कि एक व्यक्ति को अनुबंध के आधार पर डीआईईटी, बंसी, सिद्धार्थ नगर की संस्था में पढ़ाने के लिए बनाया जा रहा है, फिर उन्हें अनुबंध के आधार पर क्यों नहीं रहने दिया जा रहा है। अगर याचिकाकर्ता को हटा दिया जाता है तो संस्कृत का विषय कैसे पढ़ाया जाएगा, यह स्पष्ट नहीं है।"
कोर्ट ने राज्य सरकार से निम्नलिखित प्रश्न भी पूछे;
1. डी.आई.ई.टी., बंसी, सिद्धार्थ नगर में लेक्चरर (संस्कृत) का कोई पद क्यों नहीं बनाया गया है और याचिकाकर्ता को अनुबंध के आधार पर क्यों नहीं रहने दिया जा रहा है।
2. जब संस्कृत में लेक्चरर के पद पर नियमित चयन नहीं हुआ तो राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद, उत्तर प्रदेश, लखनऊ के निदेशक के पत्र के अनुसार विषय में संविदा के आधार पर संस्कृत पढ़ाने वाले शिक्षक को क्यों को हटाया गया?
3. 2013 के नियमावली में संस्कृत लेक्चरर का पद क्यों नहीं है।
कोर्ट की टिप्पणियां
राज्य के वकील ने प्रस्तुत किया कि लेक्चरर (संस्कृत) का कोई स्वीकृत पद नहीं है और हिंदी पढ़ाने के लिए नियुक्त लेक्चरर, जो हाई स्कूल, इंटरमीडिएट और स्नातक में 'संस्कृत' विषय के साथ अध्ययन किया जा, वही संस्कृत भी पढ़ाएगा।
अदालत ने कहा कि संस्कृत एक विशेष विषय है और राज्य को इसे अपनी सूची में शामिल करना चाहिए और पद बनाने और मंजूरी देने के बाद उचित नियुक्तियां करनी चाहिए।
कोर्ट ने टिप्पणी की कि लेक्चरर (संस्कृत) के पद का सृजन नहीं करने के औचित्य के रूप में राज्य शैक्षिक अधिकारियों की कार्रवाई से वह 'हैरान' है।
बेंच ने कहा,
"लेक्चरर (संस्कृत) का कोई स्वीकृत पद नहीं होने के बावजूद राज्य प्राधिकरण संविदा के आधार पर विभिन्न संस्थानों में संस्कृत पढ़ाने के लिए व्याख्याताओं की नियुक्ति कर रहे हैं, लेकिन राज्य अधिकारियों द्वारा कोई कारण नहीं बताया गया है। यूपी राज्य में 'संस्कृत' भाषा के साथ सौतेला जैसा व्यवहार क्यों किया जा रहा है।"
अंत में, तीन सप्ताह के भीतर एक बार फिर राज्य से जवाब की मांग करते हुए और याचिकाकर्ता को 21 फरवरी तक अनुबंध के आधार पर गेस्ट लेक्चरर के रूप में हटाने पर रोक लगाते हुए कोर्ट ने महत्वपूर्ण रूप से कहा,
"इस न्यायालय ने पाया कि राज्य संस्कृत भाषा के साथ ऐसा सौतेला व्यवहार नहीं कर सकता है, जो कि भारतीय सभ्यता की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है और केवल संविदा के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति करता है और जब नियमित नियुक्तियां की जाती हैं, तो ऐसी संविदा नियुक्तियों को भुगतना पड़ता है। राज्य शैक्षिक प्राधिकरणों को राज्य के कल्याण और भाषा की रक्षा के लिए निर्णय लेने का जिम्मा सौंपा गया है।"
केस का शीर्षक - बद्री नाथ त्रिपाठी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य , सचिव एंड 4 अन्य के माध्यम से
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