राज्य को केरल पीड़ित मुआवजा योजना में संशोधन करना चाहिए और POCSO पीड़ितों को ‘यौन उत्पीड़न’ के लिए मुआवजे का दावा करने में सक्षम बनाया जाएः केरल हाईकोर्ट

Manisha Khatri

3 Aug 2023 11:15 AM IST

  • राज्य को केरल पीड़ित मुआवजा योजना में संशोधन करना चाहिए और POCSO  पीड़ितों को ‘यौन उत्पीड़न’ के लिए मुआवजे का दावा करने में सक्षम बनाया जाएः केरल हाईकोर्ट

    Kerala High Court

    केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को इस मामले पर विचार किया कि क्या यौन उत्पीड़न के पीड़ित केरल पीड़ित मुआवजा योजना, 2017 (2021 में संशोधित) के तहत मुआवजे का दावा कर सकते हैं? यह मुद्दा इस कारण से उठा क्योंकि पॉक्सो अधिनियम की धारा 11 के तहत दंडनीय ‘यौन उत्पीड़न’ को केरल पीड़ित मुआवजा योजना की अनुसूची के तहत ‘चोट’ के रूप में शामिल नहीं किया गया है।

    जस्टिस कौसर एडप्पागाथ ने यौन उत्पीड़न पीड़ितों को दिए गए मुआवजे को बरकरार रखते हुए कहा कि एक लाभकारी कानून या योजना को पीड़ितों के बीच अंतर नहीं करना चाहिए।

    न्यायालय ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम के तहत यौन शोषण के पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए मौजूदा योजनाएं अपर्याप्त हैं और इस प्रकार कहा गया किः

    “...राज्य सरकार की ओर से विशेष रूप से पॉक्सो अधिनियम के तहत यौन अपराधों के पीड़ितों के लिए एक व्यापक पीड़ित मुआवजा योजना तैयार करना या मौजूदा केरल पीड़ित मुआवजा योजना, 2017 (2021 में संशोधित) में पॉक्सो अधिनियम के तहत यौन अपराध पीड़ितों के लिए लागू एक अलग अनुसूची को शामिल करने के लिए आवश्यक संशोधन करना अनिवार्य है। राज्य सरकार इस संबंध में तुरंत आवश्यक कदम उठाए।’’

    केरल पीड़ित मुआवजा योजना, 2017 को सीआरपीसी की धारा 357ए-पीड़ित मुआवजा योजना के तहत पेश किया गया था। योजना की अनुसूची के तहत 22 चोटों का उल्लेख किया गया है। अनुसूची में यौन हमला शब्द को चोट के रूप में दिया गया है लेकिन यौन उत्पीड़न को शामिल नहीं किया गया है। वर्तमान मामले में, विशेष अदालत, अलाप्पुझा ने जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण को निर्देश दिया था कि वह पॉक्सो अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न की दो पीड़ितों को 50,000-50000 रुपये अंतरिम मुआवजे के तौर पर प्रदान करे।

    याचिकाकर्ताओं (केरल राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण और जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण, अलाप्पुझा) ने उपरोक्त आदेश को चुनौती देते हुए कहा कि पॉक्सो अधिनियम के तहत दिए गए ‘यौन उत्पीड़न’ के अपराध को योजना की अनुसूची के तहत चोट के रूप में उल्लिखित नहीं किया गया है। इस प्रकार, उन्होंने कहा कि यौन उत्पीड़न पीड़ित सीआरपीसी की धारा 357ए, पॉक्सो अधिनियम, पॉक्सो नियम, केरल पीड़ित मुआवजा योजना के तहत मुआवजे का दावा नहीं कर सकते हैं।

    न्यायालय द्वारा नियुक्त एमिकस क्यूरी के.के.धीरेंद्रकृष्णन ने प्रस्तुत किया कि यह योजना एक लाभकारी कानून है, इसलिए यौन हमले शब्द की उदारतापूर्वक व्याख्या की जानी चाहिए और इसमें यौन उत्पीड़न को भी शामिल किया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा कि वर्ष 2008 में सीआरपीसी की धारा 357ए को शामिल करना सरकार द्वारा उन पीड़ितों को प्रतिपूरक न्याय प्रदान करने के लिए एक ‘प्रशंसनीय विधायी प्रयास’ है, जिन्हें नुकसान या चोट लगी है और पुनर्वास की आवश्यकता है। अदालत ने कहा कि मुआवजे का लाभ पीड़ितों को बरी होने के मामलों में भी दिया जाता है या जहां अपराधी का पता नहीं चल पाता है या उसकी पहचान नहीं हो पाती है।

    कोर्ट ने कहा,

    “अपराध पीड़ितों की सहायता करना राज्य की मानवीय जिम्मेदारी है और यह सहायता उसके नागरिकों की सामाजिक चेतना और करुणा के प्रतीकात्मक कार्य के कारण प्रदान की जाती है। धारा 357ए को शामिल करके, विधायिका ने सीआरपीसी की धारा 357 के तहत एक दोषी द्वारा देय मुआवजे के अलावा अपराध के पीड़ितों या उनके आश्रितों को मुआवजा प्रदान करने और उनका पुनर्वास करने के राज्य के संवैधानिक कर्तव्य को वैधानिक स्वीकृति दी है और राज्य को उचित पीड़ित मुआवज़ा योजनाएं बनाने और वित्तपोषित करने का कर्तव्य सौंपा है।’’

    इसी पृष्ठभूमि में न्यायालय ने इस मामले पर विचार किया कि क्या केरल पीड़ित मुआवजा योजना का लाभ यौन उत्पीड़न के शिकार बच्चों के लिए भी बढ़ाया जाना चाहिए? अदालत ने कहा कि विशेष अदालतें पॉक्सो अधिनियम की धारा 33(8) और पॉक्सो नियमों के नियम 9 के तहत यौन शोषण के पीड़ितों को अंतरिम या अंतिम मुआवजा देने में सक्षम हैं और यह भुगतान वर्तमान योजना के तहत राज्य सरकार द्वारा किया जाना है। अदालत ने कहा कि यौन शोषण के नाबालिग पीड़ित योजना के अध्याय 1 के तहत मुआवजे की मांग कर सकते हैं जो उन सभी पीड़ितों या आश्रितों पर लागू होता है जिन्हें किसी अपराध के कारण चोट लगी है। अध्याय 1 लिंग तटस्थ है और केवल यौन हमले के पीड़ितों तक ही सीमित नहीं है।

    इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि यौन हमले शब्द को इसके सामान्य अर्थ के संदर्भ में समझा जाना चाहिए और कहा गया किः‘‘इस प्रकार, योजना की किसी भी अनुसूची में पाए गए ‘यौन हमले’ शब्द को पीड़ित के खिलाफ किए गए किसी भी यौन अपराध के रूप में समझा जाना चाहिए, जिसमें यौन उत्पीड़न भी शामिल है।”

    यह भी कहा गया कि पॉक्सो अधिनियम बच्चों के सर्वाेत्तम हितों की सुरक्षा के लिए एक स्व-निहित व्यापक कानून है और इस प्रकार कोर्ट ने माना कि,

    “पॉक्सो अधिनियम एक लिंग-तटस्थ कानून है जो बच्चों को यौन हमले, यौन उत्पीड़न और प्रोनोग्राफी के अपराधों से बचाने के प्रशंसनीय उद्देश्य के साथ बनाया गया है। यह जरूरी है कि कानून बच्चे के सर्वाेत्तम हित और कल्याण में काम करे। विशेष न्यायालय का कर्तव्य न केवल बच्चों को यौन अपराधों से बचाना और जहां आरोपी को दोषी पाया जाता है, उसे दोषी ठहराना है, बल्कि मुआवजा देना भी है।’’

    इसलिए, कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता यह तर्क नहीं दे सकते हैं कि पॉक्सो अधिनियम में दी गई यौन हमले की परिभाषा में यौन उत्पीड़न शामिल नहीं है और यह पीड़ितों को मुआवजा पाने से रोकता है।

    न्यायालय ने माना कि विशेष अदालत यौन हमले, पेनेट्रेटिव सेक्सुअलएसॉल्ट,ऐग्रावेटिड सेक्सुअलएसॉल्ट,ऐग्रावेटिड पेनेट्रेटिव सेक्सुअलएसॉल्ट,यौन उत्पीड़न या जहां प्रोनोग्राफी के उद्देश्य के लिए बच्चे का उपयोग किया जाता है, के पीड़ितों को मुआवजा देने में सक्षम है, भले ही अपराध की प्रकृति कुछ भी हो। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि न तो पॉक्सो अधिनियम और न ही पॉक्सो नियम यह कहते हैं कि केवल यौन हमले के पीड़ित ही मुआवजे के पात्र हैं। कोर्ट ने कहा कि इसलिए इस योजना को केवल यौन हमले के पीड़ितों को मुआवजे प्रदान करने तक सीमित नहीं समझा जा सकता है।

    इसके अलावा, न्यायालय ने पॉक्सो अधिनियम के तहत न्याय वितरण प्रणाली में सुधार के लिए अभिषेक बनाम केरल राज्य (2020) मामले में केरल हाईकोर्ट द्वारा जारी निर्देशों का उल्लेख किया। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार ने यौन अपराधों के शिकार बच्चों के लिए मुआवजा सुनिश्चित करने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया है। यहां तक कि केरल पीड़ित मुआवजा (संशोधन) योजना 2021 भी पॉक्सो अधिनियम के तहत यौन शोषण के पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए अपर्याप्त है क्योंकि योजना के कुछ अध्याय और अनुसूची पॉक्सो अधिनियम को छोड़कर केवल अन्य अपराधों की पीड़ित महिलाओं पर लागू होते हैं। न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार को इस योजना में आवश्यक संशोधन करना होगा ताकि इसे यौन अपराधों के पीड़ित बच्चों पर भी लागू किया जा सके।

    अदालत ने याचिका खारिज कर दी और यौन उत्पीड़न के शिकार बच्चों को मुआवजा देने के विशेष अदालत के आदेश को बरकरार रखा।

    एमिकस क्यूरीः धीरेंद्रकृष्णन

    याचिकाकर्ताओं के वकीलः रोशन डी. अलेक्जेंडर

    अतिरिक्त पब्लिक प्रोसिक्यूटरः श्री. पी. नारायणन

    केस टाइटलः केरल राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम केरल राज्य

    साइटेशनः 2023 लाइवलॉ (केईआर) 366

    केस नंबरः ओपी(सीआरएल) नंबर-710/2022

    फैसले को पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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