सोशल मीडिया पर लड़ाई रोकने के लिए राज्य को उचित क़ानून बनाना होगा : केरल हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
15 May 2020 8:45 AM IST
केरल हाईकोर्ट ने सूचना तकनीकी क़ानून की सीमाओं की इशारा करते हुए कहा कि राज्य को सोशल मीडिया पर लड़ाई पर नियंत्रण के लिए उचित क़ानून बनाना होगा।
एक ऑनलाइन न्यूज़ चैनल की महिला एंकर की ज़मानत याचिका पर ग़ौर करते हुए कोर्ट ने यह बात कही। यह चैनल सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म
जैसे यूट्यूब और फ़ेसबुक पर खबरों का प्रसारण करता है। याचिकाकर्ता के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 294b और सूचना तकनीक अधिनियम, 2000 की धारा 67 और केरल पुलिस अधिनियम की धारा 120(o) के तहत मामला दर्ज किया है। चैनल ने एक खबर प्रसारित की थी, जो कामुक थी।
अदालत ने इस मामले में 2019 के श्रीकुमार के मामले में हाईकोर्ट के फ़ैसले का संदर्भ दिया जिसमें अदालत ने समाज में कुछ परेशान करने वाली धारणाओं पर चिंता ज़ाहिर की।
एकल जज की पीठ ने कहा,
"इसके बाद भी सोशल मीडिया पर (इस तरह) की लड़ाई जारी है। सोशल मीडिया पर मौखिक लड़ाई बढ़ रही है…इसका अंत नहीं हो रहा है। यह एक ऐसी स्थिति है जहां क़ानून का शासन विफल रह रहा है। एक ऐसा समानांतर समाज बनेगा, जिसे क़ानून के प्रशासन से कोई लेना देना नहीं है। यह एक गंभीर स्थिति है।"
अदालत ने कहा कि इस तरह के लोगों को वर्तमान क़ानून के तहत सज़ा मिल सकती है पर इसके लिए राज्य की पुलिस को सतर्क रहना होगा। अदालत ने रजिस्ट्री से कहा कि वह इस आदेश की एक प्रति केरल के पुलिस महानिदेशक और मुख्य सचिव को भेज दे ताकि वह इस पर क़ानून सम्मत उचित कार्रवाई कर सकें।
आदेश में कहा गया,
"याचिकाकर्ता ने प्रसारित खबर के कुछ हिस्से पर अफ़सोस ज़ाहिर किया। उसने बताया कि उसने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उसको सोशल मीडिया पर कुछ लोग गालियां देते हैं और इसी वजह से इस तनाव के कारण ही उसने इस तरह का बयान ऑनलाइन न्यूज़ चैनल पर दिया।"
अदालत ने स्पष्ट किया कि निम्नलिखित कार्य इस धारा 67 के तहत अपराध है : कोई भी व्यक्ति जो इलेक्ट्रॉनिक रूप में ऐसी सामग्रियों को प्रकाशित या प्रसारित करता है या इनके प्रकाशन में मदद करता है जो
i) कामुक है
ii) जो वासना में दिलचस्पी जगाती है
iii) अगर इसका असर ऐसा है जो लोगों को कलुषित और भ्रष्ट बनाता है जो सभी तरह की परिस्थितियों को देखते हुए इसके कंटेंट को पढ़ता, देखता या सुनता है
अदालत ने कहा,
"अगर कोई व्यक्ति इनमें से कोई भी एक चीज़ करता है तो वह सूचना तकनीक अधिनियम की धारा 67 के तहत अपराध करने का दोषी माना जाएगा।"
अदालत ने कहा कि धारा 67 के तहत दोषी पाए जाने पर अधिक से अधिक तीन साल की सज़ा हो सकती है। और सुप्रीम कोर्ट और इस अदालत की पूर्ण पीठ का फ़ैसला है कि जिस मामले में सज़ा सात साल से कम हो सकती है, COVI-19 और लॉकडाउन के दौरान, ऐसे व्यक्ति की ज़मानत याचिका पर उदारतापूर्वक विचार किया जा सकता है।
जज ने कहा,
"मैं यह मानता हूं कि याचिकाकर्ता सिर्फ़ इस ऑनलाइन न्यूज़ चैनल की एंकर मात्र है। मैं इस बात पर ग़ौर कर रहा हूं कि वह एक महिला है और उसकी कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है। इस परिस्थिति में, मैं समझता हूं कि उसकी ज़मानत याचिका स्वीकार की जानी चाहिए।"
आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें