नागरिकों के आपराधिक इतिहास की जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराने वाली वेबसाइट, प्लेटफॉर्म का विवरण दें : इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

26 Dec 2021 6:21 AM GMT

  • नागरिकों के आपराधिक इतिहास की जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराने वाली वेबसाइट, प्लेटफॉर्म का विवरण दें : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस महानिदेशक, उत्तर प्रदेश पुलिस को आरोपी व्यक्तियों के आपराधिक इतिहास के बारे में जानकारी बड़े पैमाने पर जनता तक पहुंचाने के लिए वेबसाइट/प्लेटफॉर्म के विवरण का खुलासा करने को कहा।

    जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता और जस्टिस ओम प्रकाश त्रिपाठी की खंडपीठ ने यह भी सवाल किया कि किसी नागरिक के आपराधिक इतिहास से संबंधित जानकारी पब्ल्लिक डोमेन में क्यों नहीं है और यह पासवर्ड से सुरक्षित क्यों है?

    बेंच शमशेर द्वारा दायर एक आपराधिक अपील पर सुनवाई कर रही थी। शमशेर की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत को सूचित किया गया कि उसका चार और अन्य मामलों से संबंधित एक आपराधिक इतिहास है। हालांकि, निर्देशों में इसका खुलासा नहीं किया गया था।

    चूंकि अपीलकर्ता के आपराधिक इतिहास के बारे में भ्रम पैदा हुआ, अदालत ने उप-निरीक्षक, पुलिस स्टेशन ज़रीफ़ नगर, जिला बदायूं को 10 जनवरी, 2022 से पहले उपस्थित होने के लिए कहा। साथ ही उनके द्वारा दायर जवाबी हलफनामे के संबंध में उनके स्पष्टीकरण के साथ कहा गया कि, "अपीलकर्ता का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है।"

    इसके अलावा अदालत ने पुलिस अधीक्षक, बदायूं को जांच करने, सही तथ्यों का पता लगाने और अपने हलफनामे के साथ अपनी रिपोर्ट जमा करने का भी निर्देश दिया।

    अदालत ने आगे निर्देश दिया,

    "यदि वह इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि अपीलकर्ता का आपराधिक इतिहास था, लेकिन जवाबी हलफनामे में इसका खुलासा नहीं किया गया था तो वह गलत जानकारी प्रस्तुत करने के लिए जिम्मेदार व्यक्ति की पहचान करेगा। साथ ही उसके खिलाफ उचित कार्रवाई करेगा। अदालत को इसकी जानकारी देने के लिए उनके द्वारा एक हलफनामा दायर किया जाना है।"

    इसके बाद न्यायालय ने एक प्रश्न किया कि जवाबी हलफनामे के साथ संलग्न सर्च रिपोर्ट अपीलकर्ता के आपराधिक इतिहास का संकेत क्यों नहीं देती है? क्या ए.जी.ए. ने जवाबी हलफनामे का मसौदा तैयार करते हुए पुलिस द्वारा उन्हें दी जा रही जानकारी की सत्यता का पता लगाने के लिए खुद तलाशी ली?

    इसके लिए एस.ए. मुर्तजा, ए.जी.ए. द्वारा प्रस्तुत किया कि जिला अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (DCRB) और अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम (CCTNS) की वेबसाइट महाधिवक्ता/सरकारी अधिवक्ता के कार्यालय के माध्यम से सुलभ नहीं है और केवल जिला पुलिस की ही पहुंच में है।

    इस सबमिशन के जवाब में कोर्ट ने कहा:

    "हम यह समझने में विफल हैं कि किसी नागरिक के आपराधिक इतिहास से संबंधित जानकारी सार्वजनिक डोमेन में क्यों नहीं है? यह पासवर्ड से सुरक्षित क्यों है? हम पुलिस महानिदेशक से उक्त पहलू की जांच करने और वेबसाइट का खुलासा करते हुए अपना हलफनामा दाखिल करने का आह्वान करते हैं। एक ऐसा प्लेफॉर्म जहां से इस तरह की जानकारी बड़े पैमाने पर जनता द्वारा प्राप्त की जा सकती है। यदि ऐसी कोई पहुंच उपलब्ध नहीं है तो वह इस संबंध में उन उपायों का भी खुलासा करेगा जो वह करने का प्रस्ताव करता है। "

    केस का शीर्षक - शमशेर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

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