आरोप सरकारी कर्तव्य का हिस्सा नहीं: NIA कोर्ट ने कर्नल पुरोहित की मंजूरी याचिका खारिज की, कहा- आरोप साबित नहीं हुए लेकिन निराधार नही
Amir Ahmad
2 Aug 2025 3:15 PM IST

स्पेशल NIA कोर्ट ने 2008 मालेगांव ब्लास्ट केस में लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सभी आरोपियों को बरी करते हुए स्पष्ट किया कि केवल अभियोजन पक्ष द्वारा मामला साबित न कर पाने से यह नहीं माना जा सकता कि उन पर लगाए गए गंभीर आरोप आधारहीन या बेबुनियाद थे।
इसी आधार पर कोर्ट ने पुरोहित की वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 197 के तहत पूर्व अनुमति की आवश्यकता बताई थी।
स्पेशल जज ए.के. लाहोटी ने कहा कि पुरोहित 'अभिनव भारत' संगठन के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और उस संगठन की गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल थे। इसलिए यह तर्क स्वीकार नहीं किया जा सकता कि यह सब उन्होंने अपने आधिकारिक कर्तव्यों के तहत किया था, जैसे कि चरमपंथी संगठनों से जानकारी एकत्र करना और उसे वरिष्ठ अधिकारियों को देना।
कोर्ट ने कहा,
"दस्तावेज़ों से स्पष्ट है कि पुरोहित अभिनव भारत ट्रस्ट के ट्रस्टी थे। उनके वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें इस ट्रस्ट से जुड़ने, फंड एकत्र करने या उसका उपयोग करने की कोई अनुमति नहीं दी थी। यदि वह सच में अपने पद के तहत कार्य कर रहे होते तो सेना उनकी गिरफ्तारी पर प्रतिक्रिया देती और उनकी रक्षा करती, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।"
जज ने यह भी कहा कि उस समय के दक्षिणी कमांड लायज़न यूनिट के अधिकारी या रक्षा गवाह भी पुरोहित की मदद में आगे नहीं आए। इससे स्पष्ट होता है कि उनके वरिष्ठ अधिकारी भी गिरफ्तारी को उचित मानते थे।
कोर्ट ने माना कि पुरोहित को केवल विभिन्न संगठनों के संपर्क में रहने की अनुमति थी लेकिन उनके पास किसी विशेष संगठन में शामिल होने की अनुमति नहीं थी। उनके ऊपर लगे आरोप गंभीर थे जैसे कि अभिनव भारत संगठन का गठन बड़े पैमाने पर फंड इकट्ठा करना और व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए पैसों का उपयोग करना।
कोर्ट ने कहा कि अभियोजन भले ही उन्हें दोषी साबित करने में असफल रहा हो लेकिन इससे आरोप झूठे या निराधार साबित नहीं हो जाते।
कोर्ट ने कहा,
"यदि पुलिस की लापरवाही गवाहों के मुकरने और साक्ष्यों की कमी के कारण अभियोजन असफल रहा तो इसका मतलब यह नहीं कि जो कृत्य उन्होंने किए वे उनके सरकारी कर्तव्य का हिस्सा थे। इसलिए धारा 197 के तहत पूर्व स्वीकृति लेने की आवश्यकता नहीं थी।"
कोर्ट ने कहा कि ATS और NIA दोनों की कहानियाँ RDX को लेकर अलग थीं। ATS ने कहा कि कश्मीर से 60 किलोग्राम RDX लाकर पुरोहित ने रखा जबकि NIA ने इसे इंदौर से लाया हुआ बताया। लेकिन कोर्ट को कोई ऐसा साक्ष्य नहीं मिला जिससे यह साबित हो सके कि पुरोहित ने RDX लाया था। गवाह मुकर गए और कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिला।
कोर्ट ने पुरोहित द्वारा की गई यातना की शिकायत को भी खारिज कर दिया। जज ने कहा कि उन्होंने खुद अदालत में कहा था कि उन्हें किसी भी प्रकार की प्रताड़ना नहीं दी गई। उन्होंने खुद मेडिकल जांच की मांग की थी। अब लगभग 16 साल बाद इस मुद्दे को उठाना निरर्थक है।
निष्कर्ष:
अदालत ने स्पष्ट किया कि पुरोहित पर लगे आरोप उनके आधिकारिक कर्तव्य का हिस्सा नहीं थे। इसलिए CrPC की धारा 197 के तहत अभियोजन के लिए पूर्व स्वीकृति की
आवश्यकता नहीं थी। अदालत ने उनकी याचिका खारिज कर दी।

