दुख का विषय है कि सत्र न्यायालयों ने छोटे-मोटे मामलों में जमानत याचिकाओं को रूटीन तरीके से खारिज कर दिया: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Avanish Pathak
26 Sept 2022 11:28 AM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में साधारण मामलो में सेशन कोर्ट द्वारा जमानत आवेदनों को न्यायिक विवेक का प्रयोग किए बिना और नियमित तरीके से जमानत आवेदन को खारिज करने के रवैये की आलोचना की।
जस्टिस सुरेश कुमार गुप्ता की पीठ ने कहा कि यह बहुत ही दुख का विषय है कि साधारण मामलों में जमानत आवेदनों में, सत्र अदालतें आरोपियों को जमानत देने से इनकार करती हैं, जिससे उन्हें राहत के लिए हाईकोर्ट का रुख करना पड़ता है।
न्यायालय 60 वर्षीय व्यक्ति रुद्र दत्त शर्मा द्वारा दायर अग्रिम जमानत आवेदन पर विचार कर रहा था, जिन पर आईपीसी की धारा- 147/353 के तहत मामला दर्ज किया गया है। उनका यह निवेदन था कि उन्हें कोई विशेष भूमिका नहीं सौंपी गई थी और उनके खिलाफ लगाए गए अपराध में दो साल तक की सजा हो सकती है।
यह तर्क दिया गया कि आरोप पत्र दाखिल होने के बाद आवेदक ने सत्र अदालत के समक्ष अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी। हालांकि, सत्र अदालत ने रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री की सराहना किए बिना उसे खारिज कर दिया और अब, क्योंकि उसे गिरफ्तारी की आशंका है। इसलिए उन्होंने अग्रिम जमानत मांगी थी।
शुरुआत में कोर्ट ने अमन प्रीत सिंह बनाम सीबीआई, निदेशक के माध्यम से, एलएल 2021 एससी 416 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ध्यान में रखा, जिसमें यह माना गया था कि यदि कोई व्यक्ति, जो गैर-जमानती/संज्ञेय अपराध में आरोपी है, उसे जांच की अवधि के दौरान हिरासत में नहीं लिया गया था तो ऐसे मामले में यह उचित है कि वह जमानत पर रिहा किया जा सकता है क्योंकि जांच के दौरान गिरफ्तार नहीं किए जाने या हिरासत में पेश नहीं किए जाने की परिस्थितियां ही उसे जमानत पर रिहा करने के हकदार बनाने के लिए पर्याप्त हैं।
अमन प्रीत सिंह मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि किसी व्यक्ति की कई वर्षों तक गिरफ्तारी नहीं हुई है और जांच के दरमियान भी गिरफ्तार नहीं किया गया है तो केवल आरोप पत्र के कारण उसकी गिरफ्तारी का आदेश देना और उसे जेल में डाल देना जमानत देने के शासी सिद्धांतों के खिलाफ होगा।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के मद्देनजर, हाईकोर्ट ने मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के साथ-साथ दोनों पक्षों की प्रस्तुतियों को ध्यान में रखा और आरोपी को अग्रिम जमानत देने का फैसला किया।
अदालत ने छोटे-मोटे मामलों में जमानत याचिकाओं को खारिज करने जज ने कहा, "मेरा विचार है कि अक्सर ऐसा देखा जाता है कि एक छोटे से मुद्दे में भी सेशन कोर्ट न्यायिक विवेक के इस्तेमाल के बिना और नियमित तरीके से जमानत आवेदन को खारिज कर देता है। यह मामलों की एक बहुत ही खेदजनक स्थिति है। इस प्रकार के जमानत आवेदन पर सत्र न्यायालय को विचार और निर्णय करना चाहिए। यह आवेदक को अग्रिम जमानत देने के लिए एक उपयुक्त मामला है।"
केस टाइटल- रुद्र दत्त शर्मा उर्फ रुद्र सिंह बनाम स्टेट ऑफ यूपी और एक अन्य [CRIMINAL MISC ANTICIPATORY BAIL APPLICATION 438 CR.P.C. No. - 8819 of 2022]