बेटा अपने जीवित माता-पिता के फ्लैट में अधिकार या हिस्से का दावा नहीं कर सकता : बॉम्बे हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
20 March 2022 9:30 AM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि एक बेटे के पास अपने माता-पिता के फ्लैट में उनके जीवित रहने तक कोई अधिकार, निश्चित स्वामित्व और लागू करने योग्य हिस्सा नहीं है।
जस्टिस गौतम पटेल और जस्टिस माधव जामदार की खंडपीठ ने बेटे के उस सुझाव को खारिज कर दिया कि उसके पास वास्तविक मालिकों, उसके माता-पिता के जीवनकाल में उनके फ्लैट में एक निश्चित और लागू करने योग्य हिस्सा है क्योंकि कोर्ट को उसका यह सुझाव ''बेतुका'' लगा।
पीठ ने कहा कि
''तथ्य यह है कि वह उनका बेटा है और उनके किसी भी फ्लैट को 'साझा घर' नहीं बनाता है।''
''आसिफ (बेटा) का इन फ्लैट में से किसी में भी कोई अधिकार, टाइटल या हिस्सा नहीं हो सकता है - एक उसके पिता के नाम पर और दूसरी उसकी मां के नाम पर- जब तक कि उसके माता-पिता जीवित हैं। यह सुझाव कि आसिफ के पास उसके पास वास्तविक मालिकों, उसके माता-पिता के जीवनकाल में किसी भी फ्लैट में एक निश्चित और लागू करने योग्य हिस्सा है,एक हंसने योग्य या बेतुका सुझाव है। तथ्य यह है कि वह उनका बेटा है और उनके किसी भी फ्लैट को 'साझा घर' नहीं बनाता है।''
कोर्ट ने मां की याचिका में बेटे की तरफ से दायर हस्तक्षेप आवेदन को खारिज कर दिया है। उसकी मां ने एक याचिका दायर कर अपने पति व उसकी संपत्ति के लिए स्वयं को अभिभावक के रूप में नियुक्त करने की मांग की है।
उसका पति एक दशक से अधिक समय से वेजिटेटिव अवस्था में है, उसे मनोभ्रंश है और उसे कई स्ट्रोक का सामना करना पड़ा है। सोनिया खान (मां) ने अपने संयुक्त खाते का उपयोग करने और अपने दोनों फ्लैट को बेचने की अनुमति देने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है ताकि वह फज़ल खान (पिता के) के चिकित्सीय खर्चों को पूरा कर सके।
इनका संयुक्त खाता 'सरस्वत बैंक' में है और मरोल, अंधेरी में फज़ल खान के नाम एक फ्लैट है। इन्हीं के संबंध में सोनिया खान ने याचिका दायर की है।
बेटा किसी अन्य जगह पर रहता है और उसने अपनी मां की याचिका का विरोध करने और उसमें हस्तक्षेप करने की मांग करते हुए दावा किया था कि वह कई वर्षों तक अपने पिता का ''वास्तविक'' अभिभावक रहा है। पीठ ने कहा कि उसका अपने पिता के फ्लैट में कोई अधिकार नहीं है और उसके पास यह दिखाने के लिए भी कुछ नहीं है कि उसने कभी अपने पिता की देखभाल की है। वहीं मां और विवाहित बहन ने काफी सारे दस्तावेज पेश किए हैं ताकि यह दिखाया जा सके कि उनकी मां ही उनके पिता के सारे चिकित्सीय खर्च पूरे कर रही है।
उसके बाद बेटे ने यह दावा किया कि भले ही उसके माता-पिता जीवित हैं, लेकिन उसके माता-पिता के स्वामित्व वाले दो फ्लैट ''एक साझा घर'' थे और इसलिए, उनका बेटा होने के नाते उसके पास इन दोनों में से किसी एक या दोनों फ्लैट में लागू करने योग्य कुछ कानूनी अधिकार या हक है।
अदालत ने बेटे की दलीलों को ''निराधार'' और ''अतार्किक'' और ''हंसने योग्य'' पाया। कोर्ट ने कहा कि,''किसी भी समुदाय या धर्म के उत्तराधिकार कानून की किसी भी अवधारणा में, आसिफ का इन फ्लैट में से किसी में भी कोई अधिकार, टाइटल या हक नहीं हो सकता है - एक उसके पिता के नाम पर और दूसरा उसकी मां के नाम पर - जब तक कि उसके माता-पिता जीवित हैं।''
अदालत ने आगे कहा कि हो सकता है कि आसिफ को अपनी बहनों पर घरेलू हिंसा का आरोप लगाने की सलाह (या गलत सलाह) दी गई हो, जबकि वह वहां उनके साथ रहता भी नहीं है। कोर्ट ने आसिफ की इस दलील पर आपत्ति जताई कि उनकी मां के पास एक 'वैकल्पिक उपाय' है।
जस्टिस पटेल ने कहा, ''यह दलील ही हमें आसिफ के वास्तविक स्वरूप, उसके पूरी तरह से हृदयहीन और द्वेषपूर्ण दृष्टिकोण को दिखाती है। उसके अंतरिम आवेदन को खारिज किया जाता है।''
प्रो-टेम संरक्षकता से निपटने के लिए कानून का कोई प्रावधान नहीं
मां को उसके और उसके पति के संयुक्त खाते को संचालित करने की अनुमति देते हुए, अदालत ने निर्देश दिया है कि वह सभी खर्चों का लेखा-जोखा रखे और पैसे का उपयोग अपने लिए न करे। इसके अलावा, उन्हें फ्लैट खरीदारों के साथ बातचीत करने की अनुमति दी जा रही है, लेकिन अदालत की अनुमति के बिना घर न बेचें।
पीठ ने कहा कि इन सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है क्योंकि ''इन स्थितियों से निपटने के लिए अभी तक कानून में कोई संरचित प्रावधान नहीं है।''
पीठ ने कहा कि हालांकि विकलांग अधिनियम और इसी तरह के कानूनों में कुछ संकेत हैं, लेकिन इन स्थितियों से निपटने और प्रो-टेम संरक्षकता की अनुमति देने वाला एक व्यापक कानून अभी तक लागू नहीं हुआ है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि, ''हम फज़ल खान (पिता) के मामले को व्यावहारिक रूप से उस नाबालिग के स्तर पर रख रहे हैं जिसका एक अचल संपत्ति में हिस्सा है। इसका अनिवार्य रूप से यह मतलब है कि फज़ल के हित अदालत की देखरेख और निगरानी में हैं ... यही कारण है कि हम इस तरह के मामलों में ओपन-एंडेड अनुमति देने में खुद को असमर्थ पाते हैं।''
केस का शीर्षक- सोनिया फज़ल खान व अन्य बनाम भारत संघ व अन्य
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