महिला कर्मचारी के खिलाफ अभद्र भाषा के प्रयोग का एकमात्र आरोप, यौन उत्पीड़न नहीं : मद्रास हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
28 Feb 2020 11:45 AM IST
मद्रास हाईकोर्ट ने माना है कि महिला कर्मचारी के खिलाफ अभद्र भाषा प्रयोग करने का एकमात्र आरोप कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013( Sexual Harassment of Women at Workplace (Prevention, Prohibition and Redressal) Act, 2013) के तहत अपराध नहीं बनता है।
न्यायमूर्ति एम.सत्यनारायणन और न्यायमूर्ति आर. हेमलता की खंडपीठ ने यह भी कहा कि कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 का उद्देश्य महिलाओं को एक समान खड़ा करना है, परंतु किसी को परेशान करने के लिए महिलाओं द्वारा इसका दुरुपयोग नहीं किया जा सकता है।
याचिकाकर्ता ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका दायर की थी, जिसमें स्थानीय शिकायत कमेटी और केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ दिए आदेशों के रिकॉर्ड मंगवाने के लिए उत्प्रेषण या सर्शीअरेराइ की रिट जारी करने की मांग की गई थी। साथ ही इन आदेशों को रद्द करने की भी मांग की गई थी।
इस मामले में, शिकायतकर्ता श्रीमती रीमा श्रीनिवासन अयंगर (चेन्नई के ट्रेड मार्क और जीआई की सहायक रजिस्ट्रार ) ने याचिकाकर्ता, श्री वी. नटराजन( ट्रेड मार्क और जीआई के डिप्टी रजिस्ट्रार ) के खिलाफ 02 दिसम्बर 2013 को एक शिकायत की थी।यह शिकायत ट्रेड मार्क्स एंड जीआई एंड पेटेंट्स एंड डिजाइन के रजिस्ट्रार और कंट्रोलर जनरल के समक्ष की गई थी।
श्रीमती रीमा (शिकायतकर्ता) ने शिकायत की कि याचिकाकर्ता, वी. नटराजन कठोर हैं और अपने घमंडी व्यवहार के कारण उसके स्वाभिमान को चोट पहुंचाई हैं। शिकायत प्राप्त करने के बाद पेटेंट के रजिस्ट्रार और कंट्रोलर जनरल ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के लिए एक आंतरिक समिति का गठन किया और शिकायतकर्ता को एक पत्र द्वारा इसके बारे में बताया।
शिकायतकर्ता ने 30 जून 2015 को याचिकाकर्ता के अशिष्ट व्यवहार के बारे में कई घटनाओं का जिक्र करते हुए एक और शिकायत दायर की। उसने उक्त शिकायत में बार-बार ''यौन उत्पीड़न'' के बारे में बताया। इसके अलावा, उसने तमिलनाडु राज्य महिला आयोग को भी एक पत्र लिखा, जिसमें कहा गया था कि उसे आशंका है कि आंतरिक समिति उसे न्याय नहीं देगी। उसने उसकी शिकायत स्थानीय शिकायत समिति (एलसीसी) को भी भेजने का अनुरोध किया।
इसके बाद, स्थानीय समिति ने एक समाज कल्याण विभाग का गठन किया, जहाँ श्रीमती रीमा उपस्थित हुईं और याचिकाकर्ता श्री वी. नटराजन के खिलाफ एक लिखित शिकायत दी। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के निदेशक द्वारा यौन उत्पीड़न समिति के लिए एक अध्यक्ष भी नियुक्त किया गया था।
शिकायत के संबंध में जिला समाज कल्याण अधिकारी द्वारा की गई जांच के आधार पर याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 की धारा 3 (2) ( iii) ( iv) ( v ) के तहत एक प्रथम दृष्टया मामला बनाया गया। इसके अलावा, एलसीसी ने भी नटराजन के खिलाफ तत्काल और विस्तृत विभागीय जांच की सिफारिश की।
याचिकाकर्ता ने जिला समाज कल्याण अधिकारी को जवाब देते हुए कहा कि उसका पक्ष भी सुना जाना चाहिए और यह भी कहा कि दो समानांतर कार्यवाही नहीं की जा सकती क्योंकि यह कानूनी रूप से मान्य नहीं है।
अदालत ने इस मामले में, कहा कि शिकायतकर्ता द्वारा की गई शिकायत की प्रकृति सामान्य थी। अदालत ने यह भी कहा कि ''इसमें यह बताया गया था कि कैसे याचिकाकर्ता आधिकारिक या प्राधिकृत था और कुछ हद तक अपनी कार्रवाई और निर्णयों में पक्षपाती भी।''
पीठ ने कहा कि हालांकि दूसरी शिकायत में घटनाओं की तारीख और अनुक्रम का उल्लेख नहीं है,न ही उसमें वी.नटराजन द्वारा की गई किसी शारीरिक छेड़छाड़ और श्रीमती रेमा की शारीरिक बनावट पर की गई उनकी भद्दी के बारे में बताया गया था।
इस बात पर भी ध्यान दिया गया कि एलसीसी ने निष्कर्ष निकाला था कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है,जबकि ऐसा करते समय मूल शिकायत पर कोई सवाल नहीं उठाया गया जबकि मूल शिकायत में ऐसा कुछ भी नहीं कहा गया था,जो दूसरी शिकायत में कहा गया था।
अदालत ने यह भी कहा कि ''यौन उत्पीड़न'' शब्द का उल्लेख दूसरी शिकायत में बार-बार किया गया है, परंतु उसका कोई ब्यौरा नहीं दिया गया है।
''यह इस बात का आभास कराता है कि एक महिला कर्मचारी को आधिकारिक रूप से कुछ करने के लिए निर्देश देना या यहां तक कि एक महिला कर्मचारी को डांटने देना ही यौन उत्पीड़न है।''
अदालत ने कहा कि यह जरूरी है कि अभियुक्त को भी अपना पक्ष रखने का पूरा मौका दिया जाना चाहिए क्योंकि कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत अच्छी तरह से यह तय या निर्धारित है कि जांच को पूर्णरूप से किया जाना चाहिए।
अदालत ने कहा कि-
''कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न(रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 की धारा 14 के तहत शिकायतकर्ता को दंड देने का प्रावधान करती है यदि शिकायत दुर्भावनापूर्ण इरादे से की गई व झूठी पाई जाती है।
अधिनियम की धारा 14 झूठी शिकायतों की जांच करने के लिए थी। वहीं महिलाओं को शिकायत दर्ज करने से न रोकने के लिए कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 भी दो प्रावधानों में लाया गया है। पहला यह था कि अगर शिकायत साबित नहीं हो पाती है तो इसे गलत नहीं ठहराया जाएगा। दूसरा, शिकायतकर्ता के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश करने से पहले दुर्भावनापूर्ण इरादे को विशेष रूप से स्थापित किया जाना चाहिए।''
अदालत ने कहा कि एलसीसी के निष्कर्ष अमान्य हैं और शिकायतकर्ता का यह तर्क बाद का विचार है कि उसने एलसीसी से केवल इसलिए संपर्क किया था क्योंकि शिकायत उसके नियोक्ता के खिलाफ थी।
अदालत ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता द्वारा कथित रूप से प्रदर्शित या किए गए पूर्वाग्रह और पक्षपात के अलावा उसके द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली असंयमित भाषा ही पहली शिकायत का सार थी।
''इसलिए, एक महिला कर्मचारी के खिलाफ असंयमित भाषा के प्रयोग का एकान्त या एकमात्र आरोप कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत अपराध का गठन नहीं करता है।''
इसके अलावा, अदालत ने यह भी कहा कि आंतरिक समिति की सुनवाई में भाग न लेने के लिए शिकायतकर्ता द्वारा दिखाया गया असंतोषपूर्ण रवैया और एलसीसी के समक्ष मूल शिकायत को यौन उत्पीड़न में परिवर्तन करना शिकायतकर्ता के वास्तविक इरादों को उजागर करता है।
अदालत ने कहा, ''इस मामले में, स्थानीय समिति ने एक नाॅन स्पीकिंग आॅर्डर या बिना कुछ कहे जाने वाला आदेश देकर एक गलत निर्णय दिया है, जो एकतरफा या एक्सपार्टी भी है। ऐसा प्रतीत होता है कि शिकायतकर्ता ने याचिकाकर्ता के साथ अपने व्यक्तिगत स्कोर या दुश्मनी को निपटाने के लिए एक झूठा या व्यर्थ प्रयास किया था।''
अदालत ने कहा कि प्रत्येक महिला को कुछ निश्चित शिष्टता बनाए रखनी होती है और उन्हें अपना काम पूरा किए बिना खाली घूमने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
''हालांकि कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 का उद्देश्य कार्यस्थल पर महिलाओं का समान रूप से खड़ा होना और उनके लिए सौहार्दपूर्ण कार्यस्थल बनाना है, जिसमें उनकी गरिमा और आत्मसम्मान की रक्षा हो। परंतु महिलाओं को किसी को अतिरंजित या बेकार के आरोपों के साथ परेशान करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।''
याचिका की अनुमति देते समय, अदालत ने स्थानीय शिकायत समिति और केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण द्वारा पारित दोनों आदेशों को रद्द कर दिया।
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