सोशल मीडिया लोकतंत्र का महत्वपूर्ण स्तंभ है, जब तक इसका दुरुपयोग न हो: बॉम्बे हाईकोर्ट

Shahadat

21 Dec 2022 6:08 AM GMT

  • सोशल मीडिया लोकतंत्र का महत्वपूर्ण स्तंभ है, जब तक इसका दुरुपयोग न हो: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने सोमवार को सोशल मीडिया के दुरुपयोग को लेकर आगाह किया और माना कि यह विचारों के आदान-प्रदान का सशक्त माध्यम बन गया।

    जस्टिस सुनील बी शुकरे और जस्टिस एम डब्ल्यू चंदवानी की खंडपीठ ने कहा,

    "जब कोई अपना विचार व्यक्त करता है या टिप्पणी करता है कि इस्तेमाल किए गए शब्द अश्लील या अपमानजनक नहीं हैं तो सावधान रहना होगा। दूसरे शब्दों में सोशल मीडिया के स्वस्थ उपयोग की आवश्यकता और रोकथाम की आवश्यकता के बीच संतुलन बनाना होगा।"

    कोर्ट ने कहा कि भारत का लोकतंत्र इतना आगे बढ़ चुका है और निष्पक्ष आलोचना, असहमति और व्यंग्यात्मक टिप्पणियों के प्रति सहिष्णुता इसकी पहचान बन गई है। लोकतंत्र में सोशल मीडिया की भूमिका पर टिप्पणी करते हुए अदालत ने कहा कि यह लोकतंत्र का केवल एक स्तंभ है, जब तक कि ऐसी सामग्री पोस्ट करके इसका दुरुपयोग नहीं किया जाता है जो अपराध है या मुक्त भाषण पर उचित प्रतिबंधों के अंतर्गत आता है।

    खंडपीठ ने आगे कहा,

    "सोशल मीडिया जैसे कि फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर, व्हाट्सएप, टेलीग्राम, आदि आज विचारों के आदान-प्रदान, राय व्यक्त करने, काउंटर राय, आलोचनात्मक या व्यंग्यात्मक टिप्पणियां पोस्ट करने का शक्तिशाली माध्यम बन गया है। इस प्रकार यह मीडिया के महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक बन गया। जिस पर हमारा लोकतंत्र खड़ा है। लेकिन, सोशल मीडिया केवल उस बिंदु तक है, जहां तक टिप्पणी, लेख आदि पोस्ट करके इसका दुरुपयोग नहीं किया जाता है, जो स्वयं अपराध है या जो संविधान के अनुच्छेद 19(2) के संदर्भ में बनाए गए निषिद्ध क्षेत्र में नहीं आते हैं।"

    अपमानजनक टिप्पणी पोस्ट करने के लिए विधायक रवि राणा के फेसबुक अकाउंट को कथित रूप से हैक करने वाले 39 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में सोशल मीडिया का ठीक संतुलन बिगड़ गया।

    अदालत ने हालांकि, आदमी के आचरण पर आपत्ति जताई और उपरोक्त टिप्पणी की। पीठ ने कहा कि हालांकि इस मामले में अपराध नहीं बनता है, लेकिन यह "आवेदक को राज्य सरकार के प्रमुख को गाली देने, उसके बारे में बुरा करने का लाइसेंस नहीं देता।"

    एफआईआर आईपीसी की धारा 153ए के तहत दर्ज की गई।

    अदालत ने आवेदक की दलीलों से सहमति जताई कि भले ही आरोप सही हों, वे विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य पैदा नहीं कर रहे हैं। अधिनियम की धारा 153ए के तहत अपराध गठित करने के लिए धर्म, जाति, नस्ल आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने का इरादा या प्रयास होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में ऐसा कोई इरादा नहीं बनाया गया।

    इसलिए अदालत ने एफआईआर रद्द करते हुए कहा,

    "एक ओर आवेदक के खिलाफ अपराध का खुलासा नहीं किया गया और दूसरी ओर भद्दी टिप्पणियों के माध्यम से असंतोष दिखाने में नया अवतरण हुआ है। हमें उम्मीद है, भविष्य में कुछ संयम दोनों पक्षों द्वारा दिखाया जाएगा।"

    केस नंबर- क्रिमिनल एप्लीकेशन (एपीएल) नंबर 701/2022

    केस टाइटल- सूरज पुत्र अरविंद ठाकरे बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।

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