लगता है सामाजिक दूरी केवल एक नारा बनकर रह गया है, सरकारी अस्पतालों में उपचार प्रणाली ढह गई है: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को जारी किये सख्त दिशा-निर्देश

SPARSH UPADHYAY

5 Aug 2020 3:06 PM GMT

  • लगता है सामाजिक दूरी केवल एक नारा बनकर रह गया है, सरकारी अस्पतालों में उपचार प्रणाली ढह गई है: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को जारी किये सख्त दिशा-निर्देश

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार (05 अगस्त) को उत्तर-प्रदेश सरकार के लिए, कोरोनाकाल में बरती जा रही लापरवाही को लेकर काफी सख्त शब्दों में दिशा-निर्देश जारी किये।

    न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा एवं न्यायमूर्ति अजीत कुमार की खंडपीठ ने अपने आदेश में यह रखांकित किया कि

    "दो गज की दूरी मास्क भी जरुरी' लगता है सरकार द्वारा गढ़ा गया एक नारा भर है। न तो सरकार इस नियम को लागू करने में दिलचस्पी ले रही है कि दो व्यक्तियों को दो गज दूर रहना चाहिए और मास्क पहनना चाहिए और न ही हमारे राज्य के लोग उपरोक्त नियम का पालन करने में रुचि रखते हैं।"

    अदालत ने इस बात पर भी गौर किया कि जो कोई भी सड़कों पर निकलेगा, उसे पता चलेगा कि अनलॉक -1, अनलॉक -2 और अनलॉक -3 को राज्य के लोगों द्वारा एक प्रक्रिया के रूप में गलत तौर पर समझा गया है जिसके अंतर्गत उन्हें लगता है कि वे अब स्वतंत्र रूप से एक दूसरे के साथ मिल सकते हैं और वो हर चीज़ कर सकते हैं जो वो चाहते हैं।

    अदालत ने जाहिर की तमाम चिंताएं

    अदालत ने अपने आदेश में प्रशासन द्वारा बरती जा रही तमाम प्रकार की लापरवाही की ओर इशारा किया एवं उसके प्रति अपनी चिंता को जाहिर किया। अदालत ने राज्य में मौजूद दुकानों एवं दुकानदारों द्वारा शारीरिक दूरी का पालन न करने को गंभीरता से लिया।

    अदालत ने कहा कि प्रत्येक दुकान यह तो वह नियमित रूप से बनी हो या एक अतिक्रमित संरचना हो, वो दो गज की दूरी बनाए रखने के नियम का पालन किए बिना लोगों से घिरी हुई है।

    अदालत ने वकील श्री राम कौशिक द्वारा रिकॉर्ड पर लायी गयी कुछ तस्वीरों पर गौर करते हुए कहा कि यदि उन तस्वीरों पर भरोसा किया जाए तो यह निश्चित हो जाता है कि हमारे राज्य के लोगों द्वारा अनलॉक - 1, 2 और 3 को गलत तौर पर समझा गया है।

    अदालत ने कहा कि

    "तस्वीरों में जो दुकानें हैं, यह स्पष्ट है, या तो उन्हें यह नहीं बताया गया है कि उनके लिए अपनी दुकानों के बाहर शारीरिक दूरी बनाए रखना अनिवार्य है या उन्होंने दो गज की दूरी बनाए रखने के नियम का उल्लंघन करना स्वयं चुना है। कोई भी दुकान जो कुछ भी बेच रही है, वह एक बार में केवल एक वस्तु बेचती है। यदि किसी दुकानदार द्वारा सामान बेचने के लिए दो सैल्समैन रखे गए हैं, तो निश्चित रूप से दो सामान को एक निश्चित समय पर बेचा जा सकता है, और इसलिए, ऐसा प्रतीत होता है कि दुकानदारों को यह बताना होगा कि उनकी दुकान पर भीड़ से कोई फायदा नहीं होगा। यहां तक कि उनके खिलाफ ऐसे कार्यों के चलते, कार्यवाही भी हो सकती है।"

    आगे अदालत ने यह भी कहा कि,

    "जिला प्रशासन के साथ-साथ पुलिस को भी यह देखना होगा कि दुकानों पर मौजूद लोगों को दो व्यक्तियों के बीच 2 गज की दूरी बनाकर कतार में खड़ा होना चाहिए। यह मायने नहीं रखता है कि कतार एक किलोमीटर लंबी हो। यह शारीरिक दूरी दुकानदारों की भलाई के लिए होगी और उन लोगों की भलाई के लिए भी होगी जो इन दुकानों पर भीड़ लगाते हैं।"

    अतिक्रमण को लेकर अदालत की चिंता

    अधिवक्ता एस. डी. कौटिल्य ने न्यायालय के समक्ष एक शपथ पत्र रखा और यह तर्क दिया कि नगर निगम ने कार्यक्रम के अनुसार हाल के दिनों में मजबूत गतिविधि को अंजाम दिया था, यह सुनिश्चित करने के लिए कि अतिक्रमण हटाए जाएँ।

    हालांकि, अदालत ने उसपर टिपण्णी करते हुए कहा कि अदालत के सामने रखे गए आँकड़े काफी प्रभावशाली प्रतीत होते हैं लेकिन जमीन पर जैसा कि इन पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन में दिखने वाले अधिवक्ताओं ने तर्क दिया है, वास्तविकता अन्यथा है।

    इस प्रकार, अदालत ने प्रथम दृष्टया यह पाया कि नगर निगम प्रशासन न केवल एक धीमी गति से अपने कार्य में आगे बढ़ रहा है, बल्कि यह शहर के विभिन्न इलाकों में अतिक्रमण गतिविधियों का निष्क्रिय/मूक दर्शक बना हुआ है। अदालत ने कहा कि विभिन्न वकीलों द्वारा आज हमारे सामने रखी गई तस्वीरों से यह काफी स्पष्ट है।

    अदालत ने मुख्य रूप से यह कहा कि,

    "हमें यह दर्ज करना चाहिए कि यदि शहर के हर कोने पर व्यावसायिक गतिविधियों को अंजाम देने की अनुमति दी जाती है, तो सामाजिक/शारीरिक दूरी के मानदंडों का असल मायने में पालन नहीं किया जा सकता है। यह सुनिश्चित करना न केवल नगर निगम का कर्तव्य है कि शहर में सार्वजनिक स्थान बिल्कुल अतिक्रमण मुक्त हों, बल्कि उन्हें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि ये स्थान फिर से अतिक्रमित न हों। ऐसा उन्हें संबंधित पुलिस प्रशासन को रिमाइंडर भेजकर करना चाहिए था। हमें नहीं लगता कि शपथ पत्र में नागर निगम द्वारा ऐसी कोई कार्रवाई की गई है।"

    कोरोना मरीजों की बढती संख्या और रिपोर्ट को लेकर विवाद पर अदालत की टिप्पणी

    अदालत ने अवलोकन किया कि यदि पिछली तारीखों के ऑर्डर शीट को देखा जाए तो यह स्पष्ट है कि न्यायालय ने COVID-19 से प्रभावित लोगों के परीक्षण, ट्रैकिंग और उपचार के महत्व पर जोर दिया था। हालांकि, अदालत ने नोट किया कि जिस तरह से रोगियों की संख्या में वृद्धि हुई है, ऐसा प्रतीत होता है कि प्रयासों के परिणाम नहीं आये हैं।

    अदालत ने यह भी कहा कि यदि 25 मार्च 2020 को उस तारीख के रूप में लिया जाए जब हमने वायरस के हमले को महसूस किया था तो उस समय से चार महीने बीत चुके हैं। यह तथ्य कि अब लोग निजी अस्पतालों में अपना इलाज करवा रहे हैं, बजाय सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए अस्पतालों से, इससे पता चलता है कि उपचार का पहलू ढह गया है।

    अदालत ने मुख्य रूप से कहा कि

    "सरकार यह दिखाने के लिए विभिन्न आंकड़े लेकर आ रही है कि चीजें अपने नियंत्रण में हैं लेकिन अखबार की रिपोर्टें बहुत उत्साहजनक नहीं हैं। ऐसी शिकायतें हैं कि लोगों का, हालांकि COVID-19 के लिए परीक्षण किया गया है, लेकिन दो या अधिक हफ्तों के अंतराल के बाद भी अभी तक उनको रिपोर्ट नहीं मिली है। वरिष्ठ वकील श्री गोयल ने यह स्वीकार किया कि पहले ऐसी रिपोर्टों के संबंध में बैकलॉग का मुद्दा था, लेकिन अब हालात सुधर गए हैं और बैकलॉग का कोई मुद्दा नहीं है। श्री गोयल के हलफनामे पर हमारे सामने रखे गए उचित आंकड़ों के अभाव में हम न तो संतुष्ट हैं और न ही आश्वस्त।"

    इस सम्बन्ध में, पहले से ही लंबित COVID-19 रिपोर्टों के परीक्षण और 20 जून, 2020 से 5 अगस्त, 2020 तक की तारीख पर प्राप्त और वितरित की गई रिपोर्टों के संबंध में मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा उचित हलफनामा दायर किये जाने का आदेश अदालत द्वारा दिया गया।

    ऐसी परिस्थितियों में अदालत द्वारा जारी कुछ दिशा-निर्देश

    (i) राज्य प्राधिकारी सख्ती से यह देखें कि सार्वजनिक रूप से कोई भी दो व्यक्ति एक दूसरे से दो गज की दूरी के भीतर न रहें।

    (ii) यदि कोई सार्वजनिक स्थान ऐसा पाया जाता है जहाँ लोग 2 गज की दूरी बनाए रखने में विफल होते हैं। तो परिसर का मालिक, जहां इस नियम का उल्लंघन पाया जाता है, को बुक किया जाना चाहिए और परिसर को बंद कर दिया जाना चाहिए।

    (iii) यदि यह उच्च प्रशासन के ध्यान में लाया जाता है कि पुलिसकर्मी इत्यादि दूरी के नियम लागू नहीं कर रहे हैं तो उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।

    (iv) यदि अस्पतालों के ओपीडी, नर्सिंग होम्स और क्लिनिकों में भीड़ देखी जा रही है जो राज्य सरकार द्वारा निर्धारित विभिन्न सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए दिखाई देते हैं तो उन अस्पतालों, नर्सिंग होम और क्लीनिकों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।

    (v) विभिन्न तस्वीरें भी रिकॉर्ड में लाई गई हैं जो यह दिखाती हैं कि वे व्यक्ति जो न्यायालयों में अपने मामले दायर करने के लिए आते हैं, शारीरिक दूरी का पालन नहीं कर रहे हैं। ये वो व्यक्ति हैं जो न्यायालयों में कानून के उल्लंघन को रिपोर्ट करते हैं, और इसलिए यह उम्मीद की जाती है कि कम से कम वे शारीरिक दूरी बनाए रखेंगे। उन्हें स्वेच्छा से संयम बरतना चाहिए और एक-दूसरे के करीब नहीं आना चाहिए। यदि कामकाजी न्यायिक संस्थानों के शुरू होने के एक घंटे के भीतर, यह पाया जाता है कि भीड़ हो रही है और शारीरिक दूरी उन व्यक्तियों द्वारा नहीं बनाकर रखी जा रही है, जिनके कंधे पर न्यायिक संस्थान का कार्य है तो बार एसोसिएशन, न्यायालय की रजिस्ट्री और जिला प्रशासन को चाहिए कि वो आगे आयें और यह देखें कि उचित शारीरिक दूरी बनायी जा रही है।

    (vi) यदि आज जो कुछ तस्वीरें दर्ज की गई हैं, उन पर विश्वास किया जाए, तो हम उम्मीद करते हैं कि कार्रवाई बेहद तेज गति से की जानी चाहिए। ऐसी परिस्थितियों में, कल तक ऐसे दुकानदारों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए जो अपनी दुकानों के बाहर भीड़ को प्रोत्साहित करते हैं। कल पुलिस कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई भी की जानी चाहिए। हम इस तरह की आधिकारिक चेतावनी आदि को रिकॉर्ड करने की उम्मीद करते हैं जो आज और कल के बीच में दी गई होगी।

    (vii) उपरोक्त अभ्यास न केवल प्रयागराज में होगा, बल्कि यूपी राज्य के सभी जिलों में भी किया जाएगा। शारीरिक दूरी के उल्लंघन की कोई भी सूचना, यदि हमारे संज्ञान में लाई गई है, तो उसके परिणामस्वरूप हमारे द्वारा स्वतः संज्ञान लेकर कार्रवाई हो सकती है।

    (viii) नगर निगम को पिछली तारीख पर अदालत द्वारा प्रदान की गई समय सीमा के भीतर सभी अतिक्रमणों को प्रशासन द्वारा हटाया जायेगा

    (ix) जैसा कि हम पाते हैं कि अतिक्रमण हटाने का काम सबसे अधिक ख़राब तरीके से किया गया है, अगली तारीख पर नगर आयुक्त को न्यायालय में उपस्थित होना होगा।

    (x) प्रशासन को यह भी देखना चाहिए कि दो पहिया वाहन पर जोड़े (Couple) को छोड़कर कोई भी दूसरा व्यक्ति सवार न हो जब तक कि कोई अत्यधिक अर्जेंसी न हो।

    अदालत ने यह कहा कि उपरोक्त के अलावा, जो आवश्यक प्रतीत होता है वह यह है कि हमें यह देखना होगा कि प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से दो गज की दूरी बनाए रखे और मास्क भी पहने। यह संभवत: उस समय तक होगा जब तक या तो COVID-19 का इलाज नहीं हो जाता है या फिर आम जनता के लिए वैक्सीन नहीं आ जाती है। अन्य प्रयास, ऐसा प्रतीत होता है, वायरस के कारण बेअसर रहे हैं।

    इस मामले को 7.8.2020 को पूर्वाह्न 10 बजे के लिए पोस्ट किया गया।

    अंत में, रजिस्ट्रार जनरल को यह निर्देश भी दिया गया कि वह इस आदेश को जिला मजिस्ट्रेट, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक / उत्तर प्रदेश राज्य के प्रत्येक जिले के पुलिस अधीक्षकों को सूचना और आवश्यक अनुपालन के लिए 12 घंटे के भीतर सूचित करें।

    आदेश की प्रति डाउनलोड करेंं



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