सिंगापुर के सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व CJI दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाले ट्राइब्यूनल का फैसला रद्द किया; कहा- फैसले की 50% सामग्री 'कॉपी-पेस्ट'

Amir Ahmad

9 April 2025 10:29 AM

  • सिंगापुर के सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व CJI दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाले ट्राइब्यूनल का फैसला रद्द किया; कहा- फैसले की 50% सामग्री कॉपी-पेस्ट

    सिंगापुर के सुप्रीम कोर्ट ने अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अवार्ड (Arbitral Award) रद्द कर दिया, जिसे भारत के पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाले ट्राइब्यूनल ने पारित किया था। कोर्ट ने पाया कि अवार्ड की लगभग आधी सामग्री पहले के ही उनके द्वारा दिए गए फैसलों से हूबहू 'कॉपी-पेस्ट' की गई।

    चीफ जस्टिस सुंदरेश मेनन और की खंडपीठ ने कहा,

    "तथ्यों में थोड़े अंतर के कारण नए तर्क प्रस्तुत हुए। इसके बावजूद, पिछले निर्णयों (Parallel Awards) को इस नए निर्णय के लिए एक टेम्पलेट की तरह इस्तेमाल किया गया। यह निर्विवाद है कि 451 अनुच्छेदों वाले इस अवार्ड में से कम से कम 212 अनुच्छेद पिछले निर्णयों से लिए गए। इसके कई गंभीर प्रभाव हैं।"

    विवाद की पृष्ठभूमि:

    यह विवाद विशेष प्रयोजन वाहन (SPV) और तीन कंपनियों के एक समूह के बीच था, जो भारत में फ्रेट कॉरिडोर प्रोजेक्ट्स में शामिल थीं।

    वर्ष 2017 में भारत सरकार द्वारा न्यूनतम वेतन बढ़ाए जाने पर यह प्रश्न उठा कि क्या इसके तहत ठेकेदार समूह को अतिरिक्त भुगतान का हक मिलेगा।

    सहमति न बनने पर मामला अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता (ICC Rules) के तहत सिंगापुर में भेजा गया, जिसकी अध्यक्षता पूर्व CJI दीपक मिश्रा कर रहे थे। ट्राइब्यूनल ने ठेकेदार समूह के पक्ष में फैसला सुनाया।

    यह फैसला बाद में हाईकोर्ट में चुनौती दी गई यह कहकर कि इसका अधिकांश हिस्सा पिछले फैसलों से बिना किसी स्वतंत्र मूल्यांकन के कॉपी किया गया। हाईकोर्ट ने इसे पक्षपातपूर्ण (Biased) और अनुचित प्रक्रिया करार देते हुए फैसला रद्द कर दिया।

    सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और निर्णय:

    1. समान मामलों में समान फैसला देना गलत नहीं, लेकिन सभी मामले अलग

    सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर दो मामलों में तथ्य समान हों तो एक जैसा फैसला देना गलत नहीं है। लेकिन इस मामले में तथ्य अलग थे और पूर्व मामलों के आधार पर फैसला देना अविवेकपूर्ण था।

    "यह मामला ऐसा नहीं था, जहां पार्टियां पिछले मध्यस्थता मामलों में दिए गए निष्कर्षों पर अपनी प्रतिक्रिया दे सकती थीं। निर्णय में बिना किसी बदलाव के पिछले मामलों की सामग्री डाल दी गई।"

    2. निरंतर गलतियां पक्षपात की आशंका

    कोर्ट ने पाया कि इस फैसले में कई कानूनी और तथ्यों से संबंधित गलतियां थीं, जैसे गलत कानून लागू करना, गलत अनुबंध का उल्लेख करना आदि। इससे यह प्रतीत होता है कि ट्रिब्यूनल ने मामले की सही समीक्षा नहीं की।

    "एक निष्पक्ष पर्यवेक्षक के दृष्टिकोण से यह स्पष्ट होता है कि ट्रिब्यूनल ने तथ्यों और तर्कों पर उचित ध्यान नहीं दिया।"

    3 बाहरी सामग्री पर भरोसा, पक्षकारों को नहीं दी गई जानकारी

    कोर्ट ने यह भी पाया कि ट्रिब्यूनल ने जिन सामग्रियों का उपयोग किया वे पिछले मामलों से ली गईं लेकिन उन्हें इस मामले की पक्षकारों को प्रकट नहीं किया गया। इससे उन्हें सुनवाई का अधिकार (Right of Audience) नहीं मिला।

    4. मध्यस्थों की असमान स्थिति

    पहले के मामलों में सिर्फ पूर्व CJI शामिल थे और वही सामग्री इस नए फैसले में इस्तेमाल की गई अन्य दो सह-मध्यस्थों को इसकी जानकारी नहीं थी। इससे निर्णय प्रक्रिया की निष्पक्षता और अखंडता प्रभावित हुई।

    नतीजा

    सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि यह मामला स्पष्ट पक्षपात (apparent bias) का है।

    अपील खारिज की गई हाईकोर्ट का आदेश बरकरार रखा गया।

    मध्यस्थता अवार्ड रद्द कर दिया गया।

    टाइटल: M/s. Chatha Service Station बनाम Lalmani Devi & Others (उदाहरण हेतु उल्लेखित)

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