''उसे अपनी शर्तों पर जीवन जीने का अधिकार है'' इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अलग-अलग धर्म से संबंध रखने वाले कपल को फिर से मिलवाया
LiveLaw News Network
28 Dec 2020 9:15 AM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में अलग-अलग धर्म से संबंध रखने वाले एक जोड़े को फिर से मिलवाते हुए कहा है कि महिला (शिखा) ने यह ''व्यक्त किया था कि वह अपने पति (सलमान उर्फ करण) के साथ रहना चाहती है, इसलिए वह बिना किसी प्रतिबंध या किसी तीसरे पक्ष द्वारा उत्पन्न्न की गई बाधा के अपनी पसंद के अनुसार जीवन जीने के लिए स्वतंत्र है।''
न्यायमूर्ति पंकज नकवी और न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की खंडपीठ एक व्यक्ति (सलमान उर्फ करण) द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने अदालत के समक्ष बताया था कि उसकी पत्नी (शिखा) की उसकी इच्छा के खिलाफ बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) ने उसके माता-पिता के पास भेज दिया है।
मामला न्यायालय के समक्ष
सी.जे.एम,एटा ने 7 दिसम्बर 2020 को अपने आदेश के तहत कॉर्पस/पत्नी को सीडब्ल्यूसी (चाइल्ड वेलफेयर कमेटी),एटा की कस्टडी में भेज दिया था, जिसने 08 दिसम्बर 2020 को ''बिना किसी मन के आवेदन के और कॉर्पस की इच्छा के खिलाफ'' उसकी कस्टडी उसके माता-पिता को सौंप दी थी।
कोर्ट के आदेश के बाद, पत्नी को कोर्ट के सामने पेश किया गया। न्यायालय ने केस डायरी का अवलोकन किया और कहा कि हेड मास्टर, उच्च प्राथमिक शिक्षा, एटा द्वारा जारी प्रमाण पत्र में उसकी जन्म तिथि 04 अक्टूबर 1999 बताई गई है।
इसलिए, न्यायालय ने कहा कि उम्र के अनुमान और निर्धारण के संबंध में ज्यूवनाइल जस्टिस एक्ट 2015 की धारा 94 की आवश्यकता पूरी होती है।
हाईकोर्ट ने कहा, ''सी.जे.एम, एटा और सीडब्ल्यूसी, एटा के आदेश कानूनी प्रावधानों की सराहना की कमी को दर्शाते हैं।''
कोर्ट ने महिला के साथ बातचीत की
कोर्ट ने महिला के साथ बातचीत की, जिसने प्रस्तुत किया कि वह एक बालिग है और उसकी जन्म तिथि 04 अक्टूबर 1999 है। ऐसे में वह बालिग हो चुकी है और इसलिए उसने अपनी मर्जी से विवाह कर लिया था।
उसने यह भी कहा कि वह अपने पति सलमान उर्फ करण के साथ रहना चाहती है जो न्यायालय में उपस्थित था।
महत्वपूर्ण रूप से कोर्ट ने कहा,
''जैसा कि कॉर्पस बालिग हो चुकी है और उसके पास अपनी शर्तों पर अपना जीवन जीने का विकल्प है और उसने यह भी व्यक्त किया है कि वह अपने पति सलमान उर्फ करण के साथ रहना चाहती है। ऐसे में बिना किसी प्रतिबंध या तीसरे पक्ष उत्पन्न की गई बाधा के बिना वह अपनी मर्जी से अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए स्वतंत्र है।''
याचिका को स्वीकार कर लिया गया और 27 सितम्बर 2020 को आईपीसी की धारा 366 के तहत दर्ज एफआईआर संख्या 0371/2020 को रद्द कर दिया गया है।
जांच अधिकारी को निर्देश दिया गया है कि वह यह सुनिश्चित करें कि जब तक वे अपने आवास पर वापस नहीं आते हैं, तब तक कॉर्पस और उसके पति को उचित सुरक्षा प्रदान की जाए। एसएसपी, प्रयागराज को निर्देशित किया गया है कि वे दंपति के सुरक्षित मार्ग के लिए आवश्यक पुलिस सुरक्षा प्रदान करें।
संबंधित न्यायालय के आदेश
सोमवार (21 दिसंबर) को कलकत्ता हाई ने यह स्पष्ट कर दिया था कि अगर कोई वयस्क अपनी पसंद के अनुसार शादी करता है और धर्मपरिवर्तन करने का फैसला करता है और अपने पैतृक घर नहीं लौटता है, तो अदालत द्वारा मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं हो सकता है।
शक्ति वाहिनी बनाम केंद्र संघ व अन्य के मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2018 में अपना फैसला देते हुए कहा था कि ''जब दो वयस्क अपनी इच्छा से शादी करते हैं, तो वे अपना रास्ता चुनते हैं, वे अपने रिश्ते को पक्का करते हैं, उन्हें लगता है कि यह उनका लक्ष्य है और उन्हें ऐसा करने का अधिकार है।''
कोर्ट ने आगे कहा था कि,''सम्मान के नाम पर किसी भी प्रकार का अत्याचार या पीड़ा या गलत व्यवहार, जो किसी भी समूह/सभा द्वारा प्रेम और विवाह से संबंधित एक व्यक्ति की पसंद की क्षीण करने के लिए हो,उसकी जो भी परिभाषा हो, वह अवैध है और उसे अस्तित्व के एक पल के लिए भी अनुमति नहीं दी जा सकती है।''
इसके अलावा, नवंबर 2020 में, कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना था कि किसी भी बालिग व्यक्ति का अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार भारत के संविधान में एक मौलिक अधिकार है।
न्यायमूर्ति एस सुजाता और न्यायमूर्ति सचिन शंकर मगदुम की खंडपीठ ने एक वजीद खान की तरफ से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का निपटारा करते हुए यह कहा था,जिसने अपनी प्रेमिका राम्या को हिरासत से मुक्त कराने की मांग की थी। कोर्ट ने कहा था कि,
''यह अच्छी तरह से तय है कि किसी भी व्यक्ति का अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार भारत के संविधान में एक मौलिक अधिकार है और जाति या धर्म की परवाह किए बिना दो व्यक्तियों के व्यक्तिगत संबंधों से संबंधित इस स्वतंत्रता पर किसी भी व्यक्ति द्वारा अतिक्रमण नहीं किया जा सकता है।''
केस का शीर्षक - श्रीमती शिखा (कॉर्पस) व अन्य बनाम यूपी राज्य व तीन अन्य [Habeas Corpus Writ Petition No. - 745 of 2020]
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