किशोरियों के लिए अलग शौचालय और सेनेटरी नैपकिन के प्रावधान बालिकाओं के सशक्तीकरण के उदाहरण : कर्नाटक हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

2 April 2021 9:30 AM GMT

  • किशोरियों के लिए अलग शौचालय और सेनेटरी नैपकिन के प्रावधान बालिकाओं के सशक्तीकरण के उदाहरण : कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने गुरुवार को राज्य सरकार को कहा है कि 16 अप्रैल तक शुचि योजना के कार्यान्वयन के संबंध में एक स्टे्टस रिपोर्ट दायर करें और साथ ही यह भी बताया जाए कि वर्ष 2021-22 के लिए प्रस्तावित सैनिटरी नैपकिन/पैड की खरीद के लिए प्रशासनिक मंजूरी कब तक मिल जाएगी।

    इस योजना के तहत 10 से 19 वर्ष की आयु के बीच की स्कूलों में पढ़ने वाली किशोरियों और छात्रावासों में रहने वाली लड़कियों को सेनेटरी नैपकिन वितरित किए जाते हैं। राज्य में कुल 17,06,933 किशोरियाँ इस योजना की लाभार्थी हैं। हालांकि, वर्ष 2019-20, 20-21 के दौरान, किशोर लड़कियों को वितरित की जाने वाली सैनिटरी नैपकिन की खरीद वित्तीय बाधा के कारण नहीं हो पाई थी।

    न्यायमूर्ति बीवी नागरथना और न्यायमूर्ति जेएम खाजी की खंडपीठ ने कहा कि ''किशोर लड़कियों को अलग शौचालय प्रदान करना और सेनेटरी नैपकिन के माध्यम से उनको स्वच्छता प्रदान करना, सशक्तिकरण का एक उदाहरण है। यदि आप युवा महिलाओं और युवा लड़कियों को सशक्त बनाना चाहते हैं, तो ये सुविधाएं प्रदान करें।''

    अपने आदेश में पीठ ने कहा कि ''संविधान का आर्टिकल 21-ए, 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का एक मौलिक अधिकार है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि उक्त मौलिक अधिकार 6 से 14 वर्ष की आयु के बीच की उन किशोर लड़कियों को भी कवर करता है, जिन्होंने परिपक्वता प्राप्त कर ली है और जो शुचि योजना की लाभार्थी होंगी।''

    यह भी कहा गया कि,''स्कूलों में किशोर लड़कियों के लिए अलग शौचालय की व्यवस्था और नियमित रूप से ऐसी किशोर लड़कियों को सेनेटरी नैपकिन देने के प्रावधान (6 से 14 साल की उम्र की लड़कियों के संबंध में) न केवल बालिकाओं के सशक्तीकरण के उदाहरण हैं, बल्कि आर्टिकल 21-ए के कार्यान्वयन की दिशा में उठाया गया एक कदम भी है।''

    अदालत ने राज्य सरकार की योजना की सराहना करते हुए कहा कि ''10 से 19 वर्ष की आयु के बीच की किशोरियों के लिए लागू की जाने वाली शुचि योजना, 14 वर्ष की आयु से अधिक है, इसलिए इसकी सराहना की जानी चाहिए। राज्य सरकार का इरादा इसका लाभ बड़ी संख्या में लाभार्थियों को पहुंचाना है,जो संविधान के आर्टिकल 21-ए के तहत दिए गए दायरे से बड़ा है क्योंकि इस आर्टिकल के तहत 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों तक ही मौलिक अधिकार को सीमित किया गया है।''

    हालाँकि, यह भी कहा गया है कि ''यदि राज्य सरकार बालिकाओं को सशक्त बनाने का इरादा रखती है, तो उनके शिक्षा के अधिकार के साथ इसे भी संविधान के आर्टिकल 21 के भाग के रूप में पढ़ा जा सकता है। इस तरह के सशक्तीकरण में बुनियादी और आवश्यक पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिए, जैसे किशोर लड़कियों के लिए अलग शौचालय बनाना और शुचि योजना को उसके सही मूल अर्थ और भावना में लागू करना।''

    पीठ ने ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में जाने वाले बच्चों के उदाहरणों का भी हवाला दिया, जिन्हें कभी-कभी गाँवों से तालुका स्तर तक यात्रा करके स्कूल जाना पड़ता है या कई गाँवों के लिए एक स्कूल होता है और इसलिए एक गाँव से दूसरे गाँव में जाना पड़ता है।

    पीठ ने कहा कि,''महीने के कुछ दिनों में बालिकाओं को शुचि योजना के लाभ की आवश्यकता होगी और यदि इसे लागू किया जाता है तो यह वास्तव में उनको सशक्त बनाएगा, ताकि महीने के उन कुछ दिनों में उनका स्कूल न छूटे।''

    यह भी कहा गया कि ''इसके अलावा अगर किशोर लड़कियों के लिए अलग शौचालय उपलब्ध कराए जाते हैं जो न केवल सशक्तीकरण का एक और पहलू होगा, बल्कि उनके स्वास्थ्य और स्वच्छता को बनाए रखेगा और इसके परिणामस्वरूप स्कूलों में उनकी पूरी उपस्थिति होगी, जिसके परिणामस्वरूप उनकी शिक्षा का अधिकार पूरा होगा।'' सुनवाई के दौरान पीठ ने मौखिक रूप से कहा ''यह देखने में बहुत छोटा मामला लग सकता है लेकिन इसका अर्थ इन बालिकाओं के लिए बहुत कुछ है।''

    कर्नाटक राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर 2019 में एक सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार की थी। इस रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 889 स्कूलों में से 63 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय हैं, जिनमें से 82 प्रतिशत चालू अवस्था में हैं और 32 प्रतिशत में लड़कियों के लिए अलग शौचालय नहीं हैं।

    अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ता ने प्रस्तुत किया कि पहले 889 स्कूलों का पता लगाना होगा। अभी यह ज्ञात नहीं है कि ये सभी स्कूल उन 999 स्कूलों में शामिल है या नहीं,जिनके संबंध में 17 मार्च को स्टे्टस रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी। उस रिपोर्ट के अनुसार 999 स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं प्रदान कर दी गई हैं।

    इस प्रकार अदालत ने कर्नाटक राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को निर्देश दिया है कि वह उन 889 स्कूलों का पता उपलब्ध कराए, जिनका निरीक्षण उक्त प्राधिकरण द्वारा किया गया था, ताकि उन पर विचार किया जा सके और पता लगाया जा सके कि क्या राज्य सरकार ने उन 889 स्कूलों में ढांचागत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए कदम उठाए हैं?, जिसमें लड़कियों/ लड़कों के लिए अलग शौचालय की सुविधा, बिजली कनेक्शन, दोपहर के भोजन के लिए रसोई की सुविधा, पीने के पानी की सुविधा आदि के प्रावधान शामिल हैं।

    यह निर्देश एंटी करप्शन काउंसिल आॅफ इंडिया द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया था। वर्ष 2018 में दायर इस याचिका में स्कूलों के फिजिकल निरीक्षण करने और रिपोर्ट दायर करने के लिए प्रतिवादियों को परमादेश जारी करने की मांग की गई थी। इसके अलावा, प्रतिवादियों को सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों को पर्याप्त बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी। वहीं सरकारी स्कूलों में छात्रों के लिए नियमित स्वास्थ्य जांच कार्यक्रम संचालित करने के लिए भी प्रतिवादियों को निर्देश देने के लिए प्रार्थना की गई थी। गरीब और दलित छात्रों को कुछ टीकाकरण निःशुल्क प्रदान किया जाना चाहिए। इसके अलावा, सरकारी स्कूलों में सेनेटरी नैपकिन की आपूर्ति के लिए फंड प्रदान करके शुचि योजना के सख्त कार्यान्वयन की भी मांग की गई थी।

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