मनरेगा की धारा 6 असंवैधानिक नहीं हैंः मद्रास हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
6 March 2020 3:30 AM GMT

Madras High Court
मनरेगा, 2005 की धारा 6 केंद्र सरकार को न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के किसी प्रावधान से बंधे बिना कर्मचारियों के लिए मजदूरी तय करने अधिकार देती है।
मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून, 2005 की धारा 6, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (राज्य किसी भी व्यक्ति को कानूनों के समान संरक्षण से इनकार नहीं करेगा), अनुच्छेद 16 (सार्वजनिक रोजगार के मामलों में अवसर की समानता) और अनुच्छेद 23 (मानव तस्करी और बलात् श्रम पर रोक) का उल्लंघन नहीं है।
मद्रास हाईकोर्ट की दो जजों की बेंच, जिसमें जस्टिस एपी साही और जस्टिस सुब्रमणियम प्रसाद शामिल थे, के समक्ष दायर रिट याचिका में मांग की गई थी कि मनरेगा, 2005 की धारा 6 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23,14 और 16 का उल्लंघन माना जाए, इसलिए आरंभ से ही शून्य माना जाए।
मनरेगा, 2005 की धारा 6 केंद्र सरकार को न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के किसी प्रावधान से बंधे बिना कर्मचारियों के लिए मजदूरी तय करने अधिकार देती है।
इस मामले में, याचिकाकर्ताओं ने मुद्दा उठाया था कि मनरेगा योजना में शामिल व्यक्तियों को न्यूनतम मजदूरी अधिनियम,1948 के अनुसार न्यूनतम मजदूरी का भुगतान न करना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।
यह तर्क दिया गया था कि अन्य सरकारी विभागों में समान कार्य में लगे व्यक्तियों को न्यूनतम मजदूरी मिल रही है, इसलिए मनरेगा, 2005 के तहत न्यूनतम मजदूरी तय करना भारतीय संविधान का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी तर्क दिया कि न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी का भुगतान बलात् और बंधुआ श्रम माना जाता है और यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 23 का उल्लंघन है। अदालत ने कहा कि मनरेगा, 2005 का उद्देश्य बेरोजगार युवाओं की मदद करना है, न कि किसी अनिच्छुक व्यक्ति से श्रम करवाना है।
कोर्ट ने कहा, "2005 अधिनियम का स्पष्ट उद्देश्य गरीबी को कम करना और अधिनियम में वर्णित प्रकृति की योजनाओं को क्रियान्वित करते हुए गरीबों की मजदूरी रूप में मदद करना था।"
अदालत ने यह भी कहा कि मनरेगा शोषण या बंधुआ श्रम को जन्म नहीं देता कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 23 का उल्लंघन किया जा सके।
"भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के संबंध में दिया गया तर्क भी भली प्रकार स्थापित नहीं है, क्योंकि दावे की प्रकृति, काम और परियोजनाओं, जिन पर काम किया जाना है, उसे प्रतिवादियों ने बखूबी समझाया है कि वह अलग प्रकृति का है और उसमें किसी नियमित कार्य के लिए कोई नियमित कार्य बल संलग्न नहीं है। दोनों वर्गों के अलग-अलग होने के नाते यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के उल्लंघन का मामला नहीं है। "
कोर्ट ने मनरेगा अधिनियम 2005 की धारा 6 (1) के तहत प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग करते हुए केंद्र सरकार द्वारा 26 मार्च 2019 को जारी अधिसूचना पर भरोसा करते हुए आदेश जारी किया।
उक्त अधिसूचना में अकुशल मानवीय श्रमिकों के लिए राज्य-वार मजदूरी दर निर्धारित की गई है। अधिसूचना की जांच करते हुए कोर्ट ने कहा कि नए वेतन संशोधन संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 23 का उल्लंघन नहीं हैं।
"नए वेतन संशोधन की अधिसूचना की अनुसार, जैसा कि ऊपर कहा गया है ... हम किसी भी प्रकार की राहत देने के लिए तैयार नहीं हैं, क्योंकि हम उन प्रावधानों को, जिन्हें चुनौती दी गई हे, को अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 23 का उल्लंघन नहीं मानते।" इन्हीं टिप्पणियों के साथ अदालत ने याचिकाएं बंद कर दीं।
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