सेक्शन 438 सीआरपीसीः इलाहाबाद हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने माना, अग्रिम जमानत के लिए सत्र न्यायालय से पहले विशेष परिस्थितियों में हाईकोर्ट जाया जा सकता है
LiveLaw News Network
4 March 2020 2:15 PM IST
एक महत्वपूर्ण फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की 5 जजों की बेंच ने स्पष्ट किया है कि विशेष परिस्थितियों में, वह व्यक्ति, जिसे गिरफ्तार होने की आशंका है, सत्र न्यायालय का दरवाजा खटखटाए बिना, सीधे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है और अग्रिम जमानत मांग सकता है।
पांच जजों की बेंच, जिसमें चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस रमेश सिन्हा, जस्टिस सुनीता अग्रवाल, जस्टिस यशवंत वर्मा और जस्टिस राहुल चतुर्वेदी शामिल थे, की खंडपीठ ने, हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच की ओर से भेजे गए संदर्भ के जवाब के रूप में फैसला सुनाया।
संदर्भ में विनोद कुमार बनाम यूपी राज्य व अन्य, 2019 (12) ADJ 495 में हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच की ओर से दिए गए एक निर्णय का संदर्भ दिया गया था।
सभी पांच जजों ने निर्णय के निष्कर्षों के साथ सहमति व्यक्त की और कहा-
"सेक्शन 438 सीआरपीसी की समान्य शर्तों में ये अनिवार्य या आवश्यक नहीं है कि एक पक्ष अग्रिम जमानत के लिए हाईकोर्ट में आवेदन करने से पहले सत्र न्यायालय में आवेदन करे। जैसा कि यह प्रावधान कहता है किसी व्यक्ति को हाईकोर्ट में सुनवाई का अधिकार पाने के लिए पहले सत्र न्यायालय में जाना आवश्यक नहीं है।"
धारा 438 उच्च न्यायालय और सत्र न्यायालय अग्रिम जमानत के आवेदन को स्वीकार करने के लिए दोनों को समान क्षेत्राधिकार प्रदान करता है। सहमति के बावजूद, पीठ ने कहा कि विशेष परिस्थितियों में सत्र न्यायालय के लिए उपलब्ध अवसर को समाप्त किए बिना, उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जाना चाहिए।
"... विशेष परिस्थितियों निश्चित रूप से मौजूद होती हैं, और उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार का उपयोग करने से पहले इन्हें स्थापित किया जाना चाहिए। आवेदन में गिरफ्तारी की आशंका के साथ-साथ उच्च न्यायलय के समवर्ती क्षेत्राधिकार के औचित्य के संबंध में मजबूत दलीलें दी जानी चाहिए।"
पीठ ने स्पष्ट किया कि वह उन विशेष परिस्थितियों को गिनाने की इच्छुक नहीं है, जिनमें एक आवेदक सीधे उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है। ऐसी परिस्थितियों को अदालत के "विवेकाधिकार" पर छोड़ दिया जाना चाहिए, ताकि यह केस दर केस तय किया जा सके।
"हमारा सुविचारित मत है कि विनोद कुमार ने उन विभिन्न परिस्थितियों को, जिनमें एक व्यक्ति के हाईकोर्ट में सीधे आवेदन करने के हक की पहचान की जा सकती है, का दावा करने या उन्हें विशेषीकृत करने से खुद को रोका और मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखकर, इसे अदालत के विवेक पर छोड़ दिया...
विशेष परिस्थितियों क्या हो सकती हैं, इसकी कोई विश्वकोशीय व्याख्या नहीं हो सकती है। जिन आधारों पर हाईकोर्ट के समक्ष अग्रिम जमानत के लिए याचिका लगाई जा सकती है, उन्हें न तो गिना जा सकता है और न ही सरल किया जा सकता है।"
पीठ ने गुरबख्श सिंह सिबिया बनाम पंजाब राज्य, (1980) 2 एससीसी 565 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का उल्लेख किया, जिसमें संविधान पीठ ने उन स्थितियों को तय करने के किसी भी प्रयास के खिलाफ आगाह किया था, जिसमें अग्रिम जमानत के लिए याचिका दायर की जाती हो।
"जिन विशेष परिस्थितियों की मौजूदगी को हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत दाखिल करने के लिए अपरिहार्य माना जाए, उन्हें तय करने का विवेकाधिकार उच्च न्यायालय के माननीय जजों पर छोड़ दिया जाना चाहिए, जिनके समक्ष याचिका दायर की जानी चाहिए।"
कोर्ट ने अंत में कहा-
"हम संदर्भ के जवाब में कहेंगे कि विनोद कुमार मामले में दिया गया फैसले में किसी भी पुनर्विचार या स्पष्टीकरण की आवश्यकता है। जैसा कि उस फैसले में उचित ही कहा गया है कि उन परिस्थितियों की कोई सामान्य या विस्तृत व्याख्या नहीं हो सकती है, जिनमें आवेदन सीधे उच्च न्यायालय में आवेदन का हकदार है।"
मामले का विवरण:
केस टाइटल: अंकित भारती बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य। (और अन्य जुड़े मामले)
केस नं: Crl Misc Anticipatory Bail Application U/S 438 CrPC No. 1094/2020
कोरम: चीफ जस्टिस गोविंद माथुर, जस्टिस रमेश सिन्हा, जस्टिस सुनीता अग्रवाल, जस्टिस यशवंत वर्मा और जस्टिस राहुल चतुर्वेदी
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