धन वितरण टिप्पणी | दुश्मनी बढ़ाने का कोई इरादा नहीं: यूपी कोर्ट ने राहुल गांधी के खिलाफ FIR की मांग वाली याचिका खारिज की

Amir Ahmad

7 Oct 2025 4:18 PM IST

  • धन वितरण टिप्पणी | दुश्मनी बढ़ाने का कोई इरादा नहीं: यूपी कोर्ट ने राहुल गांधी के खिलाफ FIR की मांग वाली याचिका खारिज की

    बरेली की स्पेशल सांसद/विधायक अदालत ने मजिस्ट्रेट अदालत के उस आदेश को चुनौती देने वाली आपराधिक पुनर्विचार याचिका खारिज की, जिसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ धन वितरण पर उनके चुनावी भाषण को लेकर FIR दर्ज करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया गया था।

    बरेली के एडिशनल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज देवाशीष ने मजिस्ट्रेट के 27 अगस्त, 2024 का आदेश बरकरार रखते हुए कहा कि गांधी की टिप्पणी विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य या शत्रुता, घृणा या दुर्भावना की भावनाओं को बढ़ावा देने वाली नहीं लगती।

    पुर्नविचार याचिका दायर करने वाले अखिल भारत हिंदू महासभा के पंकज पाठक ने अपनी मूल याचिका में आरोप लगाया कि राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान जनता को संबोधित करते हुए वर्गीय घृणा भड़काने और समाज के आर्थिक रूप से कमजोर और संपन्न वर्गों के बीच वैमनस्य पैदा करने के इरादे से बयान दिए और देश में गृहयुद्ध शुरू करने का प्रयास कर रहे थे।

    अगस्त, 2024 में MP/MLA मजिस्ट्रेट कोर्ट द्वारा CrPC की धारा 156 (3) के तहत उनकी याचिका खारिज होने के बाद उन्होंने वर्तमान पुनरीक्षण याचिका दायर की।

    याचिका में दावा किया गया कि मजिस्ट्रेट कोर्ट ने पुलिस रिपोर्ट पर भरोसा करके और यह समझने में गलती की कि संविधान के अनुच्छेद 300ए के तहत संरक्षित संपत्ति के अधिकारों को गांधी की विभाजनकारी अपील से कमजोर किया जा रहा है।

    पुनर्विचार अदालत ने इन दलीलों को खारिज कर दिया और ट्रायल कोर्ट के इस निष्कर्ष की पुष्टि की कि कोई संज्ञेय अपराध नहीं बनता।

    इसने नोट किया कि मजिस्ट्रेट ने 9 अगस्त, 2024 की पुलिस जांच रिपोर्ट पर सही ढंग से भरोसा किया, जिसमें कहा गया कि गांधी की टिप्पणी के संबंध में कोई सार्वजनिक अशांति शिकायत या प्रतिक्रिया दर्ज नहीं की गई और भाषण के समय कथित रूप से मौजूद किसी भी व्यक्ति का पता नहीं लगाया जा सका।

    अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता ने स्वयं स्वीकार किया कि उसने अदालत परिसर में बैठकर टेलीविजन पर कथित भाषण सुना था और जिन लोगों ने कथित तौर पर उस पर प्रतिक्रिया व्यक्त की थी उनके नाम CrPC की धारा 156(3) के तहत उसके आवेदन में नहीं दिए गए।

    जज ने ज़ोर देकर कहा कि विचाराधीन बयान का मूल्यांकन इस आधार पर किया जाना चाहिए कि एक विवेकशील और दृढ़निश्चयी व्यक्ति क्या सोचेगा, न कि किसी अति-संवेदनशील व्यक्ति के विचारों के आधार पर जो हर प्रतिकूल दृष्टिकोण में ख़तरा भांप लेता है।

    अदालत ने कहा,

    "प्रश्नाधीन भाषण को पढ़ने से ऐसा नहीं लगता कि यह द्वेष या दुश्मनी फैलाने के इरादे से दिया गया था।"

    स्पेशल जज ने आगे कहा कि जहां पुनर्विचारकर्ता ने आरोप लगाया है कि यह भाषण लोकसभा चुनावों के दौरान दिया गया, वहीं चुनावों के दौरान ऐसे कथित भड़काऊ भाषणों का मामला भारत के चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में आता है।

    उन्होंने आगे कहा कि अगर याचिकाकर्ता को लगता है कि भाषण आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करता है तो उसे आयोग से संपर्क करना चाहिए था।

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