कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा, एक ही धार्मिक समूह या संप्रदाय के सदस्यों के बीच शत्रुता को उकसाने या बढ़ावा देने के मामले में भी धारा 153A लग सकती है

LiveLaw News Network

6 May 2020 10:39 AM GMT

  • कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा, एक ही धार्मिक समूह या संप्रदाय के सदस्यों के बीच शत्रुता को उकसाने या बढ़ावा देने के मामले में भी धारा 153A लग सकती है

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना है कि यदि लिखे या छपे हुए शब्दों से, एक ही धार्मिक समूह या संप्रदाय के सदस्यों के बीच दुश्मनी को उकसाया जाए या बढ़ावा दिया जाए या सार्वजनिक शांति को भंग किया जाए तो यह कहा जा सकता है कि उक्त कृत्य आईपीसी की धारा 153-ए के तहत किया गया अपराध है।

    ज‌स्ट‌िस सूरज गोविंदराज ने यह भी माना कि मानहानि की शिकायत न केवल ऐसी व्यक्ति कर सकता है, जिसे बदनाम किया गया है, बल्कि ऐसे संस्था या संस्था के प्रतिनिधि कर सकता है, जिसे कथित रूप से बदनाम किया गया है।

    इस मामले में अभियुक्तों ने खुद को वैदिक विद्वान, पुजारी और श्री महाबलेश्वर मंदिर गोकर्ण का उपाधिवंत होने का दावा किया था। उन पर गोकर्ण की रथ बीड़ी में हैंडबिल और कॉम्पैक्ट सीडी बांटने का आरोप लगाया गया था, जिसमें मठ और महंत के खिलाफ अपमानजनक सामग्री थी, ताकि महंत को बदनाम किया जा सके, मठ के अनुयायियों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई जा सके और शांति को भंग किया जा सके। उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी, 153-ए, 295-ए, 298, 500, 511, धारा 149 के साथ पढ़ें, और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 के साथ के तहत अपराध दर्ज किया गया था।

    हाईकोर्ट के समक्ष अपनी याचिका में उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज शिकायतों को रद्द करने की मांग की थी। एक कानूनी मुद्दा यह उठाया गया था कि आईपीसी की क्या धारा 153-ए को तभी लागू किया जा सकता है, जब दो अलग-अलग धर्मों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा दिया जा रहा हो, या इसे एक ही धार्मिक समूह या संप्रदाय के भीतर दुश्मनी को बढ़ावा देने या सार्वजनिक शांति भंग करने के मामले में लागू किया जा सकता है।

    हाईकोर्ट ने इस मसले पर कहा,

    "यदि बोले गए या लिखे गए शब्दों के कारण सार्वजनिक शांति भंग हो रही हो तो अपराध को धारा 153 बी के तहत किया गया अपराध माना जा सकता है। यह जरूरी नहीं कि उक्त कृत्य एक धर्म को दूसरे के खिलाफ उकसाने के लिए या दूसरे संप्रदाय के खिलाफ उसी धर्म के एक संप्रदाय को उकसाने के लिए किया गया है। यदि बोला गया या छपा हुआ शब्द एक ही धर्म के लोगों या एक ही संप्रदाय या एक समुदाय या एक ही बिरादरी के लोगों को उकसाने का कार्य करता है तो यह आईपीसी की धारा 153 बी को लागू करने के लिए पर्याप्त होगा। बेशक, वास्तव में ऐसा अपराध किया गया है या नहीं, परीक्षण का विषय है।"

    मानहानि की शिकायत

    क्या मानहानि की शिकायत ऐसी सी व्यक्ति द्वारा ही की जा सकती है, जिसे बदनाम किया गया है या यह ऐसे संस्था या संस्था के प्रतिनिधि द्वारा भी दायर की जा सकती है, ‌जिसे कथित रूप से बदनाम किया गया है?

    इस मामले में मंदिर के प्रशासक द्वारा शिकायत दर्ज की गई थी, जिसके संबंध में कथित अपमानजनक बयान दर्ज किए गए थे। धारा 499 आईपीसी पर ध्यान देते हुए कोर्ट ने कहा,

    प्रशासक का कर्तव्य है कि वह मंद‌िर का उचित तरीके से संचालन करें, जिसमें मंदिर, मट और मंहत पर किए गए किसी भी मानहानि के आरोपों के खिलाफ कार्रवाई करना भी शामिल होगा। इसलिए, प्रशासक सीआरपीसी की धारा 199 के संदर्भ में पीड़ित व्यक्ति होने के लिए अर्ह होगा, धारा 499 के स्पष्टीकरण द्वितीय के रूप में भी अर्ह होगा।

    अन्य कानूनी मुद्दों का जवाब

    क्या सीआरपीसी की धारा 196 के तहत राज्य के खिलाफ अपराध और/या आपराधिक साजिश की जांच करने के लिए पूर्व स्वीकृति आवश्यक है? कोर्ट ने माना कि सीआरपीसी की धारा 196 के तहत जांच अधिकारी द्वारा अपराध की जांच करने के लिए पूर्व स्व‌ीकृत‌ि की आवश्यकता नहीं है।

    क्या राज्य के खिलाफ अपराध और / या आपराधिक साजिश के संदंर्भ में मजिस्ट्रेट के समक्ष चार्जशीट दाखिल करने से पहले पूर्व स्‍वीकृति की आवश्यकता है? कोर्ट ने कहा कि चार्जशीट दाखिल करने के समय, यह आवश्यक है कि उसी के साथ अनुमोदन आदेश भी दायर किया जाए।

    क्या एक बार चार्जशीट दाखिल हो जाने के बाद, राज्य सरकार द्वारा दी गई मंजूरी वापस ली जा सकती है? न्यायालय ने कहा कि एक बार चार्जशीट दायर होने के बाद, संबंधित प्राधिकारी द्वारा दी गई मंजूरी वापस नहीं ली जा सकती।

    क्या मंजूरी के बाद एक बार चार्जशीट दाखिल हो जाने के बाद, राज्य सरकार शिकायत को वापस लेने के लिए सरकारी वकील को निर्देश दे सकती है? कोर्ट ने कहा एक बार मंजूरी के बाद चार्जशीट दाखिल हो जाने के बाद, राज्य सरकार शिकायत को वापस लेने के लिए सरकारी वकील को निर्देश नहीं दे सकती है। वह केवल अभियोजन वापस लेने का अनुरोध कर सकती है, जो अनुरोध सरकारी वकील के लिए बाध्यकारी नहीं है। सरकारी वकील उपलब्ध रिकॉर्ड के आधार पर निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है और अभियोजन वापस लेने के लिए अदालत की सहमति लेने के लिए अदालत में जा सकता है। इस तरह के अनुरोध को स्वीकार करना या अस्वीकार करना अदालत पर निर्भर है।

    यदि वैध अनुमोदन जारी किया गया है तो क्या याचिकाकर्ता कार्यवाही से मुक्ति के लिए 04 नवंबर, 2015 के सरकारी आदेश के अनुसार, शिकायत वापस लेने के लिए राज्य सरकार द्वारा लोक अभियोजक को दिए तथाकथित निर्देश का लाभ उठाने का प्रयास कर सकता है? अदालत ने कहा कि वैध मंजूरी जारी होने के बाद अभियुक्त शिकायत वापस लेने के लिए राज्य सरकार द्वारा लोक अभियोजक को ‌‌दिए गए तथाकथित निर्देश का लाभ नहीं ले सकता है।

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