एनआई अधिनियम की धारा 138 : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा, कंपनी के चेयरमैन/निदेशक पर कंपनी को आरोपी बनाए बिना मुकदमा नहीं चलाया जा सकता

LiveLaw News Network

25 Jun 2020 9:02 AM GMT

  • एनआई अधिनियम की धारा 138 : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा, कंपनी के चेयरमैन/निदेशक पर कंपनी को आरोपी बनाए बिना मुकदमा नहीं चलाया जा सकता

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी कंपनी के चेयरमैन पर निगोशिएबल इंस्ट्रुमेंट्स एक्ट के तहत तब तक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, जब तक कि कंपनी को आरोपी नहीं बनाया जाता।

    'वेल बिल्ट इंडस्ट्री इंडिया लिमिटेड' नामक एक कंपनी के ख़िलाफ़ उस समय शिकायत दर्ज की गई जब इस कंपनी के अध्यक्ष ने जो चेक जारी किया था वह बाउन्स हो गया, लेकिन शिकायतकर्ता ने इस शिकायत में कंपनी को पक्षकार नहीं बनाया था। इस आधार पर कि शिकायतकर्ता ने कंपनी की ओर से उसकी भूमिका को शिकायत में स्पष्ट नहीं किया था, आरोपी ने हाईकोर्ट में सीपीसी की धारा 482 के तहत शिकायत दर्ज की और अपने ख़िलाफ़ शिकायत को निरस्त करने की मांग की।

    न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार श्रीवास्तव ने इस प्रावधान का ज़िक्र करते हुए कहा कि

    " एनआई अधिनियम की धारा 141 में उन अपराधों का ज़िक्र है जो कंपनी ने किए हैं और अगर किसी कंपनी ने इस अधिनियम की धारा 138 (Section 138 NI Act) के तहत कोई अपराध किया है तो जब अपराध हुआ उस समय कंपनी का कामकाज संभालने वाले इंचार्ज और ज़िम्मेदार सभी व्यक्तियों के ख़िलाफ़ कंपनी के साथ साथ कार्रवाई होनी चाहिए और तदनुरूप उन्हें सज़ा मिलनी चाहिए। फिर, उस किसी भी व्यक्ति को सज़ा नहीं दी जा सकती अगर उसने यह साबित कर दिया है कि जो अपराध हुआ है वह उसकी जानकारी में नहीं था और उसने इस तरह के अपराध को रोकने का भरसक प्रयास किया है।"

    अदालत ने इस बारे में एसएमएस फ़ार्मास्यूटिकलस लिमिटेड बनाम नीता भल्ला एवं अन्य (2005) 8 SCC 89, केके आहूजा बनाम वीके वोरा 2009 (10) SCC 48, नेशनल समाल इंडस्ट्रीज कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम हरमीद सिंह पैंटल (2010) 3 SCC 330 मामलों में आए फ़ैसलों का भी हवाला दिया और आरोपी की याचिका स्वीकार कर ली।

    अदालत ने कहा,

    "वर्तमान मामले में, यद्यपि प्रतिवादी ने कहा है कि याचिककर्ता ने अपने व्यवसाय की निजी ज़रूरत को पूरा करने के लिए उससे रुपए उधार लिए पर यह देखते हुए कि प्रतिवादी ने याचिककर्ता की उसकी कंपनी के साथ उसके संबंधों को स्वीकार किया था और विवादित चेक याचिककर्ता ने कंपनी की ओर से दिया था।

    डिमांड नोटिस सिर्फ़ याचिककर्ता/आरोपी के ख़िलाफ़ भेजा गया, कंपनी के ख़िलाफ़ कोई डिमांड नोटिस नहीं भेजा गया इसलिए इस मामले में कंपनी को आरोपी बनाए बिना याचिककर्ता को एनआई अधिनियम की धारा 138 के तहत दंडित नहीं किया जा सकता।"

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