'महामारी के दौरान माता-पिता की वित्तीय कठिनाइयों के समय स्कूलों को जीवित रहना चाहिए': बॉम्बे हाईकोर्ट में स्कूल फीस में कमी की मांग वाली जनहित याचिका

LiveLaw News Network

16 Jun 2021 3:01 AM GMT

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    बॉम्बे हाईकोर्ट में COVID-19 महामारी के दौरान महाराष्ट्र के सभी सहायता प्राप्त और गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों द्वारा ली जाने वाली फीस को चुनौती देते हुए एक जनहित याचिका दायर की गई है। याचिका में स्कूल की सुविधाओं का छात्रों द्वारा उपयोग नहीं किए जाने का हवाला देते हुए शैक्षणिक वर्ष 2020-22 के लिए फीस में 50% की कमी की मांग की गई है।

    याचिका में वैकल्पिक रूप से डिवीजनल फीस रेगुलेटरी कमेटी को शैक्षणिक वर्ष 2020-21 के लिए प्रत्येक स्कूल की फीस संरचना पर रिपोर्ट तैयार करने और कमेटी को COVID-19 महामारी को ध्यान में रखते हुए फीस को नए सिरे से तय करने के लिए निर्देश दिया जाए।

    याचिका में आगे कहा गया कि,

    "माता-पिता को किश्तों में फीस का भुगतान करने की अनुमति दी जानी चाहिए, छात्रों को फीस का भुगतान न करने के कारण ऑनलाइन या शारीरिक कक्षाओं में भाग लेने से वंचित नहीं किया जाना चाहिए और बोर्ड परीक्षा के परिणाम को महाराष्ट्र शैक्षणिक संस्थान (शुल्क का विनियमन) अधिनियम, 2011 की धारा 21 के अनुसार रोका नहीं जाना चाहिए।"

    न्यायमूर्ति एस पी देशमुख और न्यायमूर्ति जी एस कुलकर्णी ने मंगलवार को याचिकाकर्ताओं की संक्षिप्त सुनवाई की। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील बीरेंद्र सराफ पेश हुए। कोर्ट ने राज्य को भाजपा विधायक अतुल भाटखलकर और तीन अन्य द्वारा दायर जनहित याचिका पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

    राज्य की वकील गीता शास्त्री द्वारा प्रस्तुत किए जाने के बाद कि डिवीजनल फीस रेगुलेटरी कमेटी का गठन पहले ही 7 जून, 2021 को महाराष्ट्र शैक्षणिक संस्थान (शुल्क का विनियमन) अधिनियम 2011 की की धारा 7 (1) के प्रावधानों के तहत जारी एक अधिसूचना द्वारा किया जा चुका है। इसके बाद पीठ ने राज्य से नियामक निकाय का विवरण रिकॉर्ड पर रखने को कहा।

    याचिका में कहा गया है कि 2011 के अधिनियम और महाराष्ट्र शैक्षणिक संस्थान (शुल्क का विनियमन) नियम, 2016 के अनुसार स्कूल का प्रबंधन छह महीने पहले प्रस्तावित स्कूल की फीस कार्यकारी समिति के समक्ष रखता है, जिसमें प्रधानाचार्य और अभिभावक-शिक्षक प्रतिनिधि शामिल होते हैं। तब कोई भी पक्ष डिवीजनल फीस रेगुलेटरी कमेटी के समक्ष कमेटी के निर्णय को चुनौती दे सकता है।

    स्कूल की स्थिति, अतिरिक्त लागत आदि जैसे कई पहलुओं पर समिति द्वारा विचार किया जाना है।

    याचिका में आरोप लगाया गया कि कई स्कूलों में ऐसी समितियां नहीं हैं, लेकिन स्कूलों द्वारा अधिनियम और नियमों के उल्लंघन में महामारी को कभी भी शामिल नहीं किया गया है।

    याचिका में कहा गया कि,

    "स्कूलों के प्रबंधन द्वारा उन गतिविधियों और सुविधाओं के संबंध में फीस नहीं लेना है जो वास्तव में महामारी में उनके नियंत्रण से परे परिस्थितियों के कारण छात्रों को प्रदान नहीं की गई हैं।"

    याचिका में कहा गया है कि,

    "दूसरे शब्दों में स्कूलों ने अधिनियम, 2011 की धारा 9 और नियम, 2016 के नियम 11 के अनुसार COVID-19 महामारी के कारण उत्पन्न हुए अन्य कारकों पर विचार नहीं किया कि जबकि शैक्षणिक वर्ष 2020-21 के लिए फीस लेते समय स्कूल का कामकाज ऑनलाइन कक्षाओं तक ही सीमित है।"

    आगे कहा कि,

    "इस तरह की गतिविधियों के लिए वित्तीय बोझ के संबंध में भी फीस की मांग करना मुनाफाखोरी और व्यावसायीकरण में लिप्त होने से कम नहीं है। प्राइवेट स्कूलों को वर्तमान COVID-19 स्थिति में स्वायत्तता की आड़ में कैपिटेशन फीस प्राप्त करने या मुनाफाखोरी में लिप्त होने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।"

    याचिका में कहा गया है कि माता-पिता पर गंभीर प्रभाव के साथ महामारी को अभूतपूर्व स्थिति कहते हुए इस तरह की आर्थिक उथल-पुथल के बाद कई लोगों को अपनी नौकरी और आजीविका खो दिया है। इसलिए स्कूल कठोर नहीं हो सकते हैं।

    याचिका में कहा गया कि स्कूल का प्रयास यह होना चाहिए कि एक भी छात्र को "जियो और जीने दो" की कहावत को लागू करते हुए अपनी शिक्षा को जारी रखने के अवसर से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

    याचिका में कहा गया कि,

    "विद्यालय प्रबंधन कथित तौर पर शिक्षा प्रदान करने की धर्मार्थ गतिविधि करने में लगा हुआ है, यह उम्मीद की जाती है कि वह स्थिति के प्रति उत्तरदायी और जीवंत होगा और छात्रों और उनके माता-पिता को होने वाली कठिनाई को कम करने के लिए आवश्यक उपचारात्मक उपाय करेगा।"

    याचिका में प्रार्थना की गई है कि महाराष्ट्र राज्य और स्कूल और शिक्षा विभाग अपने संबंधित प्रधान सचिवों के माध्यम से अधिनियम और नियमों का पालन सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाएं।

    याचिका में इसके अलावा कहा गया है कि स्कूल फीस में 50% की कमी जैसा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत नामांकित छात्रों को दिया जाता है अन्य छात्रों को भी प्रदान किया जाना चाहिए या फिर अदालत प्रतिशत में कमी का निर्धारण कर सकती है।

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने मार्च, 2021 में महाराष्ट्र राज्य सरकार को 8 मई के एक सरकारी प्रस्ताव को चुनौती देने वाली प्राइवेट गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों द्वारा याचिकाओं के एक समूह का निपटारा करते हुए केस-टू-केस के आधार पर स्कूलों में फीस वृद्धि के संबंध में शिकायतों से निपटने के लिए कहा है। दरअसल सरकारी प्रस्ताव प्राइवेट गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को महामारी को देखते हुए शैक्षणिक वर्ष 2020-21 के लिए अपनी फीस बढ़ाने से रोक दिया गया था।

    मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी की खंडपीठ ने सरकार द्वारा पारित इस तरह के प्रस्ताव की वैधता के बारे में सवाल खुला छोड़ दिया। हालांकि यह स्पष्ट किया कि सरकार द्वारा पारित प्रस्ताव प्रकृति में संभावित है और उन मामलों को प्रभावित नहीं करेगा जहां फीस तय किया गया था और पारित प्रस्ताव से पहले स्वीकार किया जा चुका है।

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