'स्कूल को शायलॉक बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती': केरल हाईकोर्ट ने स्कूल की फीस का भुगतान न करने के कारण ऑनलाइन कक्षाओं में प्रवेश देने से इनकार करने के खिलाफ याचिका पर नोटिस जारी किया

LiveLaw News Network

14 July 2021 9:10 AM GMT

  • स्कूल को शायलॉक बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती: केरल हाईकोर्ट ने स्कूल की फीस का भुगतान न करने के कारण ऑनलाइन कक्षाओं में प्रवेश देने से इनकार करने के खिलाफ याचिका पर नोटिस जारी किया

    केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को एक स्कूल द्वारा एक छात्र को ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने से प्रतिबंधित करने और अत्यधिक विलंब शुल्क वसूलने के संबंध में दायर याचिका में कहा गया कि स्कूल को शायलॉक बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

    न्यायमूर्ति अनु शिवरामन ने मामले को आगे के विचार के लिए अगले सप्ताह के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

    याचिकाकर्ता की बेटी छठी कक्षा की एक छात्रा है और फीस का भुगतान न करने के कारण उसे ऑनलाइन कक्षाओं में प्रवेश देने से रोक दिया गया था। हालाकि देय फीस स्कूल की वेबसाइट पर शून्य के रूप में दिखाया गया। स्कूल के लेखा विभाग से शुल्क विवरण का अनुरोध करने पर उन्हें पता चला कि स्कूल ने 24,600 रूपये विलंब फीस के रूप चार्ज किया जा रहा है। तदनुसार याचिकाकर्ता ने अत्यधिक विलंब फीस को माफ करने के लिए स्थायी लोक अदालत के समक्ष एक याचिका दायर किया।

    सीबीएसई स्कूल ने कथित तौर पर याचिकाकर्ता को कानूनी नोटिस भेजकर 10 करोड़ की मांग की और छात्र की ऑनलाइन कक्षाओं को अवरुद्ध कर दिया था। कथित तौर पर स्कूल ने फीस का भुगतान न करने का हवाला देते हुए ऐसे 150 छात्रों को ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने से रोक दिया था।

    जबकि स्कूल अन्य छात्रों के साथ मुद्दों को सुलझाने में कामयाब रहा, याचिकाकर्ता को अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर किया गया क्योंकि स्कूल ने स्पष्ट रूप से उसे निशाना बनाया। नतीजतन, याचिकाकर्ता ने मांग की कि सीबीएसई और स्टेट ऑफ केरल चॉइस को उनकी बेटी को ऑनलाइन कक्षाओं में प्रवेश देने से इनकार करने के खिलाफ निर्देशित किया जाए।

    याचिकाकर्ता के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देशों के बावजूद कि एक स्कूल प्रबंधन किसी भी छात्र को फीस का भुगतान न करने पर कक्षाओं में भाग लेने से नहीं रोकेगा। प्रतिवादी स्कूल ने कथित तौर पर ऑनलाइन कक्षाओं में इस आधार पर प्रवेश देने से इनकार कर दिया कि उसकी स्कूल फीस लंबित है और उसके माता-पिता को कानूनी नोटिस जारी की गई।

    याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता रंजीत बी मारार पेश हुए और तर्क दिया कि याचिका शिक्षा का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 और 21 ए की व्याख्या से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाती है।

    न्यायालय के समक्ष यह भी प्रस्तुत किया गया कि यद्यपि स्कूल एक चैरिटेबल संगठन होने का दावा करता है, लेकिन संबंधित अधिकारी शिक्षा प्रदान करने के बजाय लाभ कमाने के इच्छुक हैं।

    याचिका में कहा गया है कि,

    "स्कूल द्वारा याचिकाकर्ता के साथ भेदभाव किया जा रहा है क्योंकि उसने फीस की व्यवस्था करने में थोड़ी ढिलाई बरतने के लिए प्रार्थना की जो कि COVID महामारी के कारण वित्तीय संकट की वजह से ऐसी मांग की गई थी। प्रतिवादी स्कूल को शायलॉक बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। यह एक वित्तीय संस्थान नहीं है जिसे मुनाफाखोरी पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। स्कूल याचिकाकर्ता के साथ भेदभाव करने की कोशिश कर रहा है जिसे कानून में कभी भी अनुमति नहीं दी जा सकती है।"

    याचिका में कहा गया है कि जिन 150 छात्रों को प्रवेश से वंचित किया गया था, उनमें याचिकाकर्ता को छोड़कर सभी को आंशिक रूप से फीस का भुगतान करने की अनुमति दी गई और बाद में उन्हें ऑनलाइन कक्षाओं में प्रवेश भी दिया गया। याचिकाकर्ता के साथ कथित तौर पर भेदभाव किया गया और इस सुविधा से भी इनकार किया गया, जो कि अनुच्छेद 14 का स्पष्ट उल्लंघन है।

    सिंगल बेंच ने प्रतिवादी स्कूल को ईमेल द्वारा नोटिस जारी किया और मौखिक रूप से स्पष्ट किया कि क्या याचिकाकर्ता की बेटी को स्कूल के रोल से हटा दिया गया है।

    इस साल की शुरुआत में सामान्य शिक्षा विभाग ने कुछ गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों द्वारा फीस का भुगतान न करने का हवाला देते हुए छात्रों को ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने की अनुमति नहीं देने की शिकायतों पर कार्रवाई शुरू कर दी है।

    कई अभिभावकों ने जून में नए शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत पर विभाग में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके बाद विभाग ने जिला प्रमुखों को इन शिकायतों को शीघ्रता से देखने का निर्देश दिया था।

    केस का शीर्षक: जेम्स फ्लेचर एंड अन्य बनाम केरल राज्य एंड अन्य।


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