सीमा अवधि बढ़ाने वाला शीर्ष अदालत का पूर्व का आदेश सीआरपीसी की धारा 167 (2) पर भी लागू होगा? सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया

LiveLaw News Network

9 Jun 2020 6:59 AM GMT

  • सीमा अवधि बढ़ाने वाला शीर्ष अदालत का पूर्व का आदेश सीआरपीसी की धारा 167 (2) पर भी लागू होगा? सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस आवेदन पर केन्द्र को नोटिस जारी किया, जिसमें स्पष्टीकरण की मांग की गई है कि 15 मार्च से सभी अपील दाखिल करने के लिए सीमा अवधि बढ़ाने वाला शीर्ष अदालत का पूर्व का आदेश, आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 167 (2) के तहत जमानत के लिए निर्धारित समय सीमा को कवर नहीं करता है।

    मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ ने इस बात पर विचार किया कि क्या लॉकडाउन के दौरान सीमा अवधि के विस्तार के मुद्दे से संबंधित स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई करते हुए ऐसा ही किया जा सकता है।

    इस मुद्दे पर मद्रास उच्च न्यायालय में दो बेंच के दो विरोधाभासी निर्णय और उत्तराखंड उच्च न्यायालय और केरल उच्च न्यायालय के बीच विरोधाभासी निर्णय आए हैं।

    आवेदन में कहा गया है कि "इसकी गैर-प्रयोज्यता को स्पष्ट नहीं किया गया है कि अधीनस्थ न्यायालयों द्वारा अलग अलग व्याख्या के परिणामस्वरूप कैदियों के खिलाफ निरोध के आदेश से भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा।"

    इसके अलावा प्रार्थना की गई है कि सीआरपीसी की धारा 167 (2) के लिए 23 मार्च के आदेश की प्रयोज्यता के बारे में "भ्रम" और "अनिश्चितता" बड़ी संख्या में कैदियों को प्रभावित कर रही है क्योंकि वे रिहा नहीं किए गए हैं।

    दलील के अनुसार, वर्तमान लॉकडाउन स्थिति में देश भर में जमानत की अर्जी स्थगित की जा रही है और वर्तमान व्याख्या के कारण डिफ़ॉल्ट जमानत के अधिकार को पराजित किया गया है जो सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत स्थापित है।

    इस "भ्रम" को प्रमाणित करने के लिए आवेदक विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा पारित परस्पर विरोधी आदेशों का हवाला दिया है, जिसमें बेंच ने 90 दिनों की अवधि के बाद भी अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने के मुद्दे पर विचार किया है।

    दरअसल 23 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर 15 मार्च से सभी अपील दाखिल करने के लिए सीमा अवधि बढ़ा दी थी। बाद में, 6 मई को इसे मध्यस्थता और सुलह अधिनियम और परक्राम्य लिखत अधिनियम ( NI एक्ट) अधिनियम की धारा 138 के तहत कार्यवाही के लिए भी लागू किया गया था।

    CrPc की धारा 167 के तहत अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने की अवधि के लिए इस विस्तार की प्रयोज्यता के बारे में सबसे पहले मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जी आर स्वामीनाथन की पीठ ने विचार किया था। यह माना गया था कि CrPC की धारा 167 के तहत निर्दिष्ट समय के भीतर चार्जशीट दायर करने में पुलिस की विफलता पर डिफ़ॉल्ट जमानत पाने के आरोपी के अधिकार को सुप्रीम कोर्ट के स्वतः संज्ञान के आदेश का हवाला देते हुए नहीं हराया जा सकता है। ( सेत्तू बनाम राज्य)

    हालांकि, मद्रास हाईकोर्ट (न्यायमूर्ति जी जयचंद्रन) की एक अन्य पीठ ने एक विपरीत विचार रखा, और यह माना कि पुलिस सीमा का विस्तार करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के लाभ का दावा अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने में कर सकती है। (एस कासी बनाम पुलिस निरीक्षक के माध्यम से राज्य) इस विरोधाभास को देखते हुए, इस मामले को डिवीजन बेंच को भेज दिया गया था।

    वहीं केरल, उत्तराखंड और राजस्थान के उच्च न्यायालयों ने विचार किया है कि सीमा के विस्तार पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश से डिफ़ॉल्ट जमानत पाने के लिए अभियुक्तों के हक पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

    आवेदन की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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