ऐसा व्यक्ति सेल डीड का ‌‌निष्पादन नहीं कर सकता, म्यूटेशन एंट्री में जिसके नाम पर पर रोक लगा दी गई हो: इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

11 Dec 2023 8:02 AM GMT

  • ऐसा व्यक्ति सेल डीड का ‌‌निष्पादन नहीं कर सकता, म्यूटेशन एंट्री में जिसके नाम पर पर रोक लगा दी गई हो: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    Allahabad High Court 

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक फैसले में माना कि म्यूटेशन में जिस व्यक्ति पर भूमि धारक के रूप में रोक लगा दी गई हो, वह उक्त भूमि के लिए सेल डीड को निष्पादित नहीं कर सकता है।जस्टिस रजनीश कुमार ने एक मृत भूमि धारक की पत्नी की ओर से दायर याचिका को निस्तार‌ित करते हुए कहा कि चूंकि विवा‌दित भूमि के धारक के रूप में पत्नी का नाम दर्ज करने पर तहसीलदार ने रोक का आदेश दिया था, इसलिए उसे कोई अधिकार नहीं है कि वह भूमि पर तीसरे पक्ष का अधिकार बनाएं।

    तथ्य

    याचिकाकर्ता नीलम शुक्ला के पति विवादित भूमि के दर्ज भूमि धारक थे। वह उत्तरदाताओं के पिता थे। अपने पति की मृत्यु के बाद याचिकाकर्ता का नाम विवादित भूमि के स्वामित्व के रूप में दर्ज किया गया था। हालांकि याचिकाकर्ता ने पुनर्विवाह कर लिया, जिसके बाद उत्तरदाताओं ने स्थायी निषेधाज्ञा के लिए मुकदमा दायर किया।

    यह दलील दी गई कि चूंकि याचिकाकर्ता ने दोबारा शादी कर ली है, इसलिए उसने उक्त भूमि के खातेदार के रूप में दर्ज होने का अधिकार खो दिया है। जिसके मुताबिक, उसके पक्ष में रिकॉर्डों में म्यूटेशन पर रोक लगा दी गई। अपनी आपत्ति में, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने केवल यह कहा था कि अंशू (कथित पति) एक रिश्तेदार था, लेकिन रिश्ते की प्रकृति का खुलासा नहीं किया था। स्थायी निषेधाज्ञा के आवेदन को प्रथम दृष्टया मामला स्थापित नहीं होने के आधार पर खारिज कर दिया गया।

    ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ एक सिविल अपील की अनुमति दी गई क्योंकि याचिकाकर्ता ने एक सेल डीड निष्पादित किया था जबकि उसके पक्ष में रिकॉर्ड म्यूटेशन पर रोक लगा दी गई थी। यह भी दर्ज किया गया कि याचिकाकर्ता ने विशेष रूप से अंशू से अपनी शादी से इनकार नहीं किया था। अपील स्वीकार करते हुए अपर जिला न्यायाधीश, कोर्ट नंबर 1, लखीमपुर खीरी ने पक्षों को यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया।

    याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता की ओर से दायर आपत्तियों पर विचार किए बिना सिविल अपील में आदेश पारित किया गया था, जिसके लिए ईशा एकता अपार्टमेंट सीएचएस लिमिटेड बनाम मुंबई नगर निगम और अन्य और श्री चामुंडी मोपेड्स लिमिटेड बनाम चर्च ऑफ साउथ इंडिया ट्रस्ट एसोसिएशन SCI CINOD सचिवालय, मद्रास में सुप्रीम कोर्ट पर फैसले पर भरोसा किया गया। यह तर्क दिया गया कि केवल इसलिए कि दो दृष्टिकोण संभव हैं, ट्रायल कोर्ट के निष्कर्षों में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है।

    फैसला

    न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता ने विवा‌दित भूमि के रिकॉर्ड के म्यूटेशन पर रोक की कार्रवाई के दौरान कभी भी अन्य याचिकाकर्ताओं के पक्ष में बिक्री विलेख निष्पादित करने से इनकार नहीं किया। जिसके मु‌ताबिक, न्यायालय ने माना कि अपील की अनुमति देने और याचिकाकर्ता के खिलाफ अंतरिम निषेधाज्ञा देने के सिविल न्यायालय के आदेश में कोई अवैधता नहीं थी। कोर्ट ने आगे कहा कि ट्रायल कोर्ट के आदेश से केवल एक ही दृश्य सामने आता है, जहां यह दर्ज है कि रिकॉर्ड में याचिकाकर्ता के नाम की प्रविष्टि पर रोक लगा दी गई थी। न्यायालय ने माना कि एक बार जब उस प्रविष्टि पर रोक लगा दी गई, तो याचिकाकर्ता भूमि के लिए सेल डीड निष्पादित नहीं कर सकता।

    ईशा एकता अपार्टमेंट सीएचएस लिमिटेड में सुप्रीम कोर्ट ने वांडर लिमिटेड बनाम एंटॉक्स इंडिया (पी) लिमिटेड पर भरोसा किया था, जिसमें यह माना गया था कि "ऐसी अपीलों में, अपीलीय अदालत प्रथम दृष्टया अदालत के विवेक के प्रयोग में हस्तक्षेप नहीं करेगी और अपने विवेक को प्रतिस्थापित नहीं करेगी, सिवाय इसके कि जहां विवेक का प्रयोग मनमाने ढंग से किया गया हो या मनमौजी ढंग से या विकृत ढंग से किया गया हो या जहां अदालत ने अंतरिम निषेधाज्ञा के अनुदान या इनकार को विनियमित करने वाले कानून के स्थापित सिद्धांतों की अनदेखी की हो।"

    इसके अलावा, न्यायालय ने श्री चामुंडी मोपेड्स लिमिटेड बनाम चर्च ऑफ साउथ इंडिया ट्रस्ट एसोसिएशन SCI CINOD सचिवालय, मद्रास पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि किसी आदेश को रद्द करने से उस आदेश की तारीख की स्थिति बहाल हो जाती है जिसे रद्द कर दिया गया है। हालांकि, किसी आदेश पर रोक लगाने का मतलब केवल यह है कि ऐसे आदेश के अस्तित्व को "मिटाए बिना" उसके संचालन पर रोक लगा दी जाएगी।

    न्यायालय ने माना कि चूंकि उस प्रविष्टि पर रोक लगी हुई थी जिसके द्वारा याचिकाकर्ता का नाम विवाद में शामिल भूमि के भूधारक के रूप में दर्ज किया जाना था, उसे उक्त भूमि के लिए सेल डीड निष्पादित करने का कोई अधिकार नहीं था। चूंकि भूमि की बिक्री को उत्तरदाताओं द्वारा लंबित सिविल मुकदमे में चुनौती दी गई थी, अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ दिए गए निषेधाज्ञा को बरकरार रखा।

    केस टाइटलः नीलम शुक्ला और 3 अन्य बनाम बालिका शुक्ला और 2 अन्य [MATTERS UNDER ARTICLE 227 No. - 5782 of 2023]

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