संसद ने 'सबका बीमा सबकी रक्षा' विधेयक पारित किया, बीमा क्षेत्र में 100% FDI का रास्ता साफ हुआ
Amir Ahmad
19 Dec 2025 1:23 PM IST

संसद ने बुधवार को 'सबका बीमा सबकी रक्षा (बीमा कानून संशोधन) विधेयक 2025 को पारित किया, जिसके साथ ही भारतीय बीमा क्षेत्र में बड़े और दूरगामी सुधारों का मार्ग प्रशस्त हो गया। इस विधेयक के तहत बीमा कंपनियों में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति दी गई और भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDAI) की नियामक शक्तियों को भी व्यापक रूप से मजबूत किया गया।
यह विधेयक 16 दिसंबर, 2025 को लोकसभा में पेश किया गया था। इसका उद्देश्य बीमा क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले तीन प्रमुख कानूनों बीमा अधिनियम, 1938, भारतीय जीवन बीमा निगम अधिनियम 1956 और बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण अधिनियम 1999 में संशोधन करना है। सरकार ने इसे बीमा कवरेज बढ़ाने विदेशी पूंजी आकर्षित करने और पॉलिसीधारकों के हितों की बेहतर सुरक्षा की दिशा में एक अहम कदम बताया है।
विधेयक का सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान बीमा कंपनियों में एफडीआई की सीमा को मौजूदा 74 प्रतिशत से बढ़ाकर 100 प्रतिशत करना है। सरकार का कहना है कि इस फैसले से विदेशी निवेश में वृद्धि होगी, प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा और बीमा कंपनियों को विशेष रूप से ग्रामीण और कम बीमाकृत क्षेत्रों में अपने विस्तार में मदद मिलेगी।
इसके अलावा, विदेशी पुनर्बीमा कंपनियों के लिए नियमों को भी सरल किया गया। विधेयक के तहत उनके लिए नेट-ओन्ड फंड की अनिवार्य सीमा को 5,000 करोड़ रुपये से घटाकर 1,000 करोड़ रुपये कर दिया गया। सरकार का मानना है कि इससे वैश्विक पुनर्बीमा कंपनियों की भारतीय बाजार में भागीदारी बढ़ेगी और जोखिम प्रबंधन की क्षमता मजबूत होगी।
बीमा कंपनियों में शेयरों के हस्तांतरण से जुड़े प्रावधानों में भी बदलाव किया गया। मौजूदा कानून के तहत किसी बीमा कंपनी की चुकता शेयर पूंजी के एक प्रतिशत से अधिक शेयरों के हस्तांतरण के लिए IRDAI की मंजूरी आवश्यक होती है। नए विधेयक में इस सीमा को बढ़ाकर पांच प्रतिशत कर दिया गया, जिससे अनुपालन प्रक्रिया सरल होगी और कॉरपोरेट लेनदेन में आसानी आएगी।
विधेयक में बीमा सहकारी समितियों को भी राहत दी गई। जीवन, सामान्य या स्वास्थ्य बीमा से जुड़ी सहकारी समितियों के लिए 100 करोड़ रुपये की न्यूनतम चुकता पूंजी की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया गया। सरकार के अनुसार इससे सहकारी बीमा मॉडल को बढ़ावा मिलेगा और छोटे व समुदाय आधारित बाजारों में बीमा की पहुंच बढ़ेगी।
अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्रों (IFSC) को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार को यह अधिकार भी दिया गया कि वह विशेष आर्थिक क्षेत्रों में स्थित IFSC पर बीमा अधिनियम के प्रावधानों को शिथिल या संशोधित कर सके। यह प्रावधान SEZ और IFSC में कार्यरत बीमा मध्यस्थों पर भी लागू होगा।
विधेयक के तहत बीमा मध्यस्थों की परिभाषा का दायरा भी बढ़ाया गया। अब इसमें बीमा ब्रोकर, सलाहकार और थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर के साथ-साथ मैनेजिंग जनरल एजेंट और इंश्योरेंस रिपॉजिटरी भी शामिल होंगी, जिससे अधिक संस्थाएं नियामक निगरानी के दायरे में आएंगी।
संशोधनों के जरिए IRDAI की शक्तियों में भी उल्लेखनीय विस्तार किया गया। प्राधिकरण को बीमा और गैर-बीमा कंपनियों के बीच व्यवस्थाओं को मंजूरी देने, पॉलिसीधारकों के हितों के प्रतिकूल स्थिति में बीमा कंपनी के बोर्ड को भंग करने तथा एजेंटों और मध्यस्थों को दिए जाने वाले पारिश्रमिक और कमीशन को विनियमित करने का अधिकार दिया गया। साथ ही IRDAI की निरीक्षण और जांच की शक्तियां अब बीमा मध्यस्थों तक भी विस्तारित कर दी गईं।
उपभोक्ता संरक्षण को मजबूत करने के उद्देश्य से विधेयक में 'पॉलिसीधारक शिक्षा एवं संरक्षण कोष' के गठन का भी प्रावधान किया गया, जिसका संचालन IRDAI करेगा। यह कोष पॉलिसीधारकों के हितों की रक्षा और बीमा संबंधी जागरूकता बढ़ाने के लिए उपयोग किया जाएगा। इसे केंद्र और राज्य सरकारों, विभिन्न संस्थानों से प्राप्त अनुदानों, IRDAI द्वारा लगाए गए दंड और अन्य निर्धारित स्रोतों से वित्तपोषित किया जाएगा।

