सीआरपीसी की धारा 357 | जब जुर्माना एनआई अधिनियम की धारा 138 का हिस्सा हो, तो कोर्ट को मुआवजे के भुगतान का आदेश देना चाहिए: केरल हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

22 Sep 2022 5:38 AM GMT

  • सीआरपीसी की धारा 357 | जब जुर्माना एनआई अधिनियम की धारा 138 का हिस्सा हो, तो कोर्ट को मुआवजे के भुगतान का आदेश देना चाहिए: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक संशोधन याचिका पर विचार करते हुए कहा कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध में जब कोर्ट कारावास और जुर्माना दोनों की सजा देता है, तो उसे सीआरपीसी की धारा 357(1)(बी) के तहत जुर्माने की राशि में से मुआवजे का भुगतान करने का आदेश देना होगा। ।

    न्यायमूर्ति ए. बदरुद्दीन ने कहा:

    ... एनआई अधिनियम की धारा 138 के तहत अपराध में जब कोर्ट कारावास और जुर्माना लगाता है, तो जुर्माना सजा का हिस्सा बनता है। ऐसे मामलों में, कोर्ट को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 357(1)(बी) के तहत दिये गये जुर्माने की राशि से मुआवजे के भुगतान का आदेश देना होता है।

    नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत दायर एक मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ दोषसिद्धि और सजा को चुनौती देते हुए पुनर्विचार याचिका दायर की गई थी।

    शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि आरोपी ने शिकायतकर्ता से ऋण के रूप में 3,50,000 रुपये उधार लिये थे और वापसी के आश्वासन के साथ उक्त राशि के लिए एक चेक जारी किया था, लेकिन जब चेक को वसूली के लिए प्रस्तुत किया गया, तो वह पर्याप्त धनराशि के अभाव में बाउंस हो गया। हालांकि चेक बाउंस होने की सूचना देते हुए और राशि की मांग करते हुए कानूनी नोटिस जारी किया गया था, लेकिन आरोपी ने भुगतान नहीं किया।

    इसके बाद, ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्त को दोषी ठहराया और एक वर्ष की अवधि के लिए साधारण कारावास और सीआरपीसी की धारा 357(3) के तहत शिकायतकर्ता को 3,50,000 रुपये का मुआवजा देने का आदेश सुनाया, साथ ही यह भी कहा कि मुआवजे के भुगतान में चूक की स्थिति में एक वर्ष की अतिरिक्त अवधि के लिए साधारण कारावास की सजा भुगतनी होगी। अपील पर सेशन जज ने भी दोषसिद्धि और सजा की पुष्टि की।

    पुनरीक्षण याचिकाकर्ता, अधिवक्ता बीजू सी. अब्राहम और थॉमस सी. अब्राहम की ओर से पेश हुए वकील ने सजा को कोर्ट के उठने तक एक दिन के कारावास और मुआवजे के भुगतान के लिए आठ महीने का समय देने की मांग की।

    कोर्ट ने इस बात का संज्ञान लिया कि सीआरपीसी की धारा 357 (1) (बी) के आदेश के अनुसार जब कोर्ट जुर्माना की सजा देता है या जुर्माना यदि सजा का एक हिस्सा बनाता है, तो कोर्ट फैसला सुनाते समय अपराध के कारण हुई किसी भी हानि या जोखिम के लिए पूरे या आंशिक जुर्माने का आदेश दे सकता है, जब कोर्ट की राय में मुआवजे को ऐसे व्यक्ति द्वारा सिविल कोर्ट में वसूल किये जाने योग्य हो।

    सीआरपीसी की धारा 397 के साथ पठित सीआरपीसी की धारा 401 के तहत हाईकोर्ट के पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार के दायरे में, कोर्ट ने कहा कि यदि किसी प्रासंगिक सामग्री या कानून के सिद्धांत के मौलिक उल्लंघन पर विचार नहीं किया जाता है, केवल तभी पुनर्विचार की शक्ति उपलब्ध कराई जाएगी।

    मौजूदा मामले में, कोर्ट ने पाया कि ट्रायल कोर्ट और अपीलीय कोर्ट ने सबूतों की सही व्याख्या की थी और शिकायतकर्ता ने अपने शुरुआती दावे को साबित कर दिया था, जिसके तहत वह एनआई अधिनियम की धारा 118 और 139 के तहत अनुमानों का लाभ प्राप्त करने का हकदार था। हालांकि यह अनुमान खंडन योग्य है, कोर्ट ने कहा कि इस मामले में आरोपी ने कोई सबूत पेश नहीं किया। इसलिए, कोर्ट ने माना कि ट्रायल कोर्ट ने एनआई अधिनियम की धारा 138 के तहत आरोपी को सही दोषी ठहराया।

    इस प्रकार, कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका को आंशिक तौर पर अनुमति प्रदान की और सजा में संशोधन करके कोर्ट के उठने तक एक की साधारण कारावास की सजा सुनाई तथा सीआरपीसी की धारा 357(1)(बी) के तहत शिकायतकर्ता को मुआवजे के रूप में 3,50,000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई।

    केस शीर्षक: सानिल जेम्स बनाम केरल सरकार और अन्य।

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (केरल) 497

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