धारा 319 सीआरपीसी | कर्नाटक हाईकोर्ट ने पुलिस की क्लीन चिट के बावजूद अतिरिक्त आरोपी के रूप में पेश किए गए व्यक्ति को राहत दी

Avanish Pathak

23 Feb 2023 1:30 AM GMT

  • धारा 319 सीआरपीसी | कर्नाटक हाईकोर्ट ने पुलिस की क्लीन चिट के बावजूद अतिरिक्त आरोपी के रूप में पेश किए गए व्यक्ति को राहत दी

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने सेशन कोर्ट के एक आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें उसने आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 319 के तहत अभियोजन पक्ष की ओर से दिए गए आवेदन को अनुमति दी थी, जिसमें कोर्ट ने एक व्यक्ति को अभियुक्त के रूप में पेश करने की अनुमति दी थी, जिसे पुलिस पहले ही क्लीन चिट दे चुकी थी।

    जस्टिस वी श्रीशानंद की पीठ ने सचिन नाम युवक की याचिका पर यह फैसला दिया, जिसे भारतीय दंड संहिता की धारा 323, 504, 506, सहप‌ठित धारा 34 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए चलाए जा रहे मुकदमे में आरोपी नंबर 2 के रूप में शामिल किया गया था।

    खंडपीठ ने कहा,

    "विद्वान सत्र न्यायाधीश ने उन आरोपों पर ध्यान नहीं दिया, जिसे ट्रायल कोर्ट ने निजी शिकायत में पहले आरोपी अशोक के खिलाफ दायर चार्जशीट के मद्देनजर फ्रेम किया था। जांच एजेंसी को आईपीसी की धारा 420 के तहत अपराध के लिए कोई सामग्री नहीं मिली, हालांकि निजी शिकायत सामग्री से पता चला कि याचिकाकर्ता के खिलाफ धोखाधड़ी का एक तत्व था।

    शिकायतकर्ता महेश ने मजिस्ट्रेट कोर्ट के समक्ष एक निजी शिकायत दर्ज की थी, जिसे सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत जांच के लिए पुलिस को भेज दिया गया।

    जांच के बाद पुलिस ने आईपीसी की धारा 323, 504 और 506 के तहत दंडनीय अपराध के लिए अशोक पुत्र शिवचंद्र अगाड़ी के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया और निजी शिकायत में दूसरे आरोपी याचिकाकर्ता के खिलाफ मामला वापस ले लिया और आईपीसी की धारा 420 के तहत आरोप भी हटा दिया।

    शिकायतकर्ता ने अंतिम रिपोर्ट और चार्जशीट में पुलिस द्वारा लगाए गए अपराधों को चुनौती नहीं दी और आरोपी अशोक के रूप में मामला सुनवाई के लिए चला गया। अभियोजन पक्ष ने 30.07.2019 को धारा 319 सीआरपीसी के तहत यह कहते हुए कि याचिकाकर्ता भी शिकायतकर्ता को धोखा देने में शामिल रहा है और इसलिए, उसे मामले में दूसरे आरोपी के रूप में पेश किया जाए।

    ट्रायल कोर्ट ने पक्षों को सुनने के बाद 12.10.2020 को धारा 319 सीआरपीसी के तहत अभियोजन पक्ष की ओर से दायर आवेदन को खारिज करते हुए एक आदेश पारित किया। अभियोजन पक्ष ने इसे सत्र न्यायालय के समक्ष चुनौती दी, जिसने इसकी अनुमति दे दी। जिसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    याचिकाकर्ता ने आग्रह किया कि पूरी चार्जशीट में, ऐसा कोई शब्द नहीं है, जिससे यह दिखे कि याचिकाकर्ता शिकायतकर्ता को धोखा देने के लिए जिम्मेदार है और आईपीसी की धारा 323, 504 और 506 के तहत दंडनीय अपराध के लिए अशोक के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया है।

    इस प्रकार, मजिस्ट्रेट ने अभियोजन पक्ष की ओर से सीआरपीसी की धारा 319 के तहत दायर आवेदन की सामग्री की सराहना की है और अभियोजन पक्ष द्वारा दायर आवेदन को खारिज कर दिया है।

    रिकॉर्ड को देखने पर पीठ ने कहा कि निजी शिकायत की सामग्री से की गई जांच और याचिकाकर्ता द्वारा कुछ वित्तीय लेनदेन और पैसे निकालने के बारे में कुछ तथ्यों का खुलासा हुआ है। हालांकि, पुलिस ने गहन जांच के बाद, आईपीसी की धारा 420 के तहत दंडनीय अपराध के लिए मामला दर्ज करने के बाद, निजी शिकायत में कथित तौर पर ऐसी कोई सामग्री नहीं पाई, बल्कि यह पाया कि अशोक, जो निजी शिकायत में पहला आरोपी है आईपीसी की धारा 323, 504 और 506 के तहत अपराध किया है और आरोप पत्र दायर किया है।

    जिसके बाद कोर्ट ने कहा,

    "सीआरपीसी की धारा 319 के तहत दायर आवेदन की सामग्री, वर्तमान याचिकाकर्ता के संबंध में उन आरोपों के बारे में नहीं बताती है, जो आरोपी नंबर एक के खिलाफ लगाए गए हैं, हालांकि निजी शिकायत में याचिकाकर्ता के खिलाफ कुछ आरोप लगाए गए हैं, जो आईपीसी की धारा 420 के तहत अपराध को आकर्षित करेगा।

    इसके बाद कोर्ट ने कहा, "मामले के इन पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, ट्रायल मजिस्ट्रेट ने धारा 319 सीआरपीसी के तहत दायर आवेदन की सही सराहना की।"

    कोर्ट ने आगे कहा,

    "सिर्फ इसलिए कि शिकायतकर्ता, जिसकी पीडब्लू-1 के रूप में जांच की गई है, ने अदालत के समक्ष कहा है कि वर्तमान याचिकाकर्ता भी धोखाधड़ी में शामिल है, मामले में एक अतिरिक्त अभियुक्त के रूप में वर्तमान याचिकाकर्ता को शामिल करने के लिए धारा 319 सीआरपीसी के तहत एक आवेदन दायर करने के लिए अभियोजन पक्ष के लिए स्वत: एक मामला नहीं बनेगा। इससे भी अधिक, ऐसी कोई सामग्री नहीं है कि वर्तमान याचिकाकर्ता किसी ऐसे कृत्य में शामिल है, जिससे धारा 323, 504 और 506 आईपीसी के तहत अपराध को आकर्षित होगा।

    याचिका की अनुमति देते हुए पीठ ने कहा, "यह कहना पर्याप्त है कि जब विद्वान सत्र न्यायाधीश का आदेश रिकॉर्ड में मौजूद भौतिक तथ्यों के खिलाफ है, जिससे याचिकाकर्ता के अधिकारों का उल्लंघन हुआ है, तो इस न्यायालय के लिए धारा 482 सीआरपीसी के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करके उक्त आदेश में हस्तक्षेप करना आवश्यक है।

    केस टाइटलः सचिन और कर्नाटक राज्य

    केस नंबर: क्रिमिनल पी‌टिशन नंबर 201553 ऑफ 2022

    साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (कर) 77

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