[हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 24] ‘संपत्ति और देनदारियों की डिटेल्स का हलफनामा दोनों पक्षों ने दायर नहीं किया’: कलकत्ता हाईकोर्ट ने जिला अदालत को गुजारा भत्ता के दावे पर नए सिरे से फैसला करने का आदेश दिया

Brij Nandan

11 Feb 2023 5:30 AM GMT

  • [हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 24] ‘संपत्ति और देनदारियों की डिटेल्स का हलफनामा दोनों पक्षों ने दायर नहीं किया’: कलकत्ता हाईकोर्ट ने जिला अदालत को गुजारा भत्ता के दावे पर नए सिरे से फैसला करने का आदेश दिया

    Calcutta High Court

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने जिला न्यायाधीश, कूचबिहार को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत पत्नी द्वारा दायर गुजारा भत्ता के लिए आवेदन पर फिर से फैसला करने का निर्देश दिया, जो रजनेश बनाम नेहा में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित प्रस्ताव के अनुपालन में था।

    रजनेश बनाम नेहा में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि पूरे देश में संबंधित फैमिली कोर्ट / जिला न्यायालय / मजिस्ट्रेट कोर्ट के समक्ष लंबित कार्यवाही सहित सभी मेंटेनेंस की कार्यवाही में संपत्ति और देनदारियों की डिटेल्स का हलफनामा दोनों पक्षों द्वारा दायर किया जाएगा।

    जस्टिस सब्यसाची भट्टाचार्य की एकल न्यायाधीश पीठ ने कूचबिहार के जिला न्यायाधीश के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें याचिकाकर्ता की पत्नी को गुजारा भत्ता 7000 रुपए प्रति माह और 5,000 रुपये की मुकदमेबाजी लागत की दर से दिया गया था। इस तथ्य पर विचार किए बिना कि संपत्ति और देनदारियों के प्रकटीकरण के संबंध में याचिकाकर्ता पति द्वारा कोई हलफनामा दायर नहीं किया गया था।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया गया कि ये गुजारा भत्ता अत्यधिक है क्योंकि वह एक सेवानिवृत्त स्कूल शिक्षक हैं। आगे तर्क दिया गया कि गुजारा भत्ता देने वाली अदालत ने रजनेश बनाम नेहा (2021) 2 एससीसी 324 में निर्धारित मानदंडों का पालन नहीं किया है क्योंकि किसी भी समय उनके द्वारा कोई हलफनामा दायर नहीं किया गया था।

    पत्नी ने शुरू में 40,000 रुपये प्रति माह गुजारा भत्ता मांगा था, जिसमें कहा गया था कि पति की मासिक आय 1,25,000 रुपये है, जो उसके वेतन और अन्य व्यवसायों से है।

    अदालत ने कहा,

    “याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि रजनीश बनाम नेहा में निर्धारित प्रस्ताव को वर्तमान मामले में बिल्कुल भी नहीं देखा गया है। यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता और विपरीत पक्ष के बीच विवाह अभी भी अस्तित्व में है। यह नहीं कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ता याचिकाकर्ता-पति से कम से कम कुछ तदर्थ गुजारा भत्ता पाने की हकदार है।“

    अदालत ने जिला न्यायाधीश, कूचबिहार को 6 महीने की अवधि के भीतर रजनेश बनाम नेहा में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित प्रस्ताव के अनुपालन में दोनों पक्षों द्वारा हलफनामे दाखिल करने के निर्देश के अधीन गुजारा भत्ता के आवेदन पर फिर से फैसला करने का निर्देश दिया।

    हालांकि, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता-पति विपरीत पक्ष-पत्नी को प्रति माह 4,000 रुपये की राशि का भुगतान करता रहेगा, जो कि विपरीत पक्ष-पत्नी के भरण-पोषण के लिए दिया जाएगा। इसके अलावा चिकित्सा व्यय भी दिया जाएगा।

    केस टाइटल: नृपेंद्र चंद्र महंत बनाम प्रमिला महंत

    कोरम: जस्टिस सब्यसाची भट्टाचार्य

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