घर से भागे कपल- 'कोर्ट के सुरक्षा के आदेश को वैध विवाह के अनुष्ठान के रूप में नहीं माना जाना चाहिए': मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

16 Aug 2021 9:58 AM GMT

  • Writ Of Habeas Corpus Will Not Lie When Adoptive Mother Seeks Child

    MP High Court

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि यह सच है कि दो बालिग कपल अपनी इच्छा के अनुसार अपना जीवन जीने के हकदार हैं, लेकिन सुरक्षा के आदेश को वैध विवाह के अनुष्ठान के रूप में नहीं माना जाना चाहिए।

    न्यायमूर्ति गुरपाल सिंह अहलूवालिया की खंडपीठ एक भागे हुए जोड़े की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने लड़की के परिवार के सदस्यों के खिलाफ सुरक्षा की मांग की थी, जो उनकी शादी का विरोध कर रहे थे। हालांकि उन्होंने कथित धमकी के बारे में कोई विवरण नहीं दिया है।

    याचिकाकर्ता का मामला

    याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया कि उन्होंने स्वेच्छा से विवाह किया है और वे विवाह करने योग्य (बालिग) हैं, लेकिन लड़की के माता-पिता इससे खुश नहीं हैं और वे अपराधियों की मदद से उन्हें प्रताड़ित कर रहे हैं।

    याचिका में आगे उल्लेख किया गया है कि शादी की मौखिक सूचना पुलिस के उच्च अधिकारियों को दी गई थी। दावा किया गया कि याचिकाकर्ताओं को कोई सुरक्षा प्रदान नहीं की गई।

    दूसरी ओर, राज्य ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं ने कोई सुरक्षा नहीं मांगी है, लेकिन वे मांग कर रहे हैं कि उनके खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज न की जाए।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    कोर्ट ने शुरुआत में कहा कि रिट याचिका में किसी भी घटना का उल्लेख नहीं है, जो याचिकाकर्ताओं के साथ हुई हो, जो किसी भी अपराध की राशि हो।

    अदालत ने यह भी नोट किया कि उन्होंने यह विवरण नहीं दिया कि किस तारीख को लड़की के पिता ने अपराधियों की मदद से याचिकाकर्ताओं को धमकी देने की कोशिश की थी।

    अदालत ने यह भी देखा कि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से या पंजीकृत डाक के माध्यम से कोई शिकायत करके पुलिस अधिकारियों से संपर्क भी नहीं किया।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ताओं ने लता सिंह बनाम यूपी राज्य (2006) 5 एससीसी 475 के मामले में एक वैध विवाह के लिए एक आवश्यक अनुष्ठान के रूप में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून को लिया है।"

    यहां यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि लता सिंह के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अंतर-धार्मिक विवाह करने वाले व्यक्तियों को परेशान या धमकी नहीं दी जा सकती, भले ही उनके माता-पिता शादी को मंजूरी न दें।

    न्यायालय ने इस पृष्ठभूमि में याचिकाकर्ताओं के रवैये को कानून की प्रक्रिया का सरासर दुरुपयोग बताया और इस प्रकार आगे टिप्पणी की कि यह सच है कि दो बालिग कपल अपनी इच्छा के अनुसार अपना जीवन जीने के हकदार हैं और किसी को भी उनके विवाहित जीवन में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है, लेकिन सुरक्षा आदेश को वैध विवाह के अनुष्ठान के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। हिंदू कानून के तहत सप्तपदी विशेष विवाह अधिनियम के तहत वैध विवाह या विवाह के पंजीकरण के लिए एक अनुष्ठान है या यदि विवाह किसी विशेष क़ानून के अनुसार या प्रथा के अनुसार किया जाता है, तो वह वैध विवाह होगा।

    केस का शीर्षक - मोनिका तिवारी और अन्य। बनाम एमपी राज्य और अन्य।

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