'' गृहिणी के रूप में एक महिला की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण है''; बॉम्बे हाईकोर्ट ने सड़क दुर्घटना में मरने वाली महिला के परिजनों को 8 लाख रुपये मुआवजा दिया

LiveLaw News Network

25 Sep 2020 9:53 AM GMT

  •  गृहिणी के रूप में एक महिला की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण है; बॉम्बे हाईकोर्ट ने सड़क दुर्घटना में मरने वाली महिला के परिजनों को 8 लाख रुपये मुआवजा दिया

    एक महत्वपूर्ण आदेश में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने पिछले गुरुवार को एक 45 वर्षीय महिला की सड़क दुर्घटना में मौत हो जाने के मामले में उसके परिजनों को आठ लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है। घटना के समय महिला एक जीप में सवार थी और यह जीप अनियंत्रित होकर एक पेड़ से टकरा गई थी। जिस कारण महिला को काफी चोट आई थी और बाद में उसकी मौत हो गई। हाईकोर्ट ने मोटर एक्सीडेंट ट्रिब्यूनल के उस आदेश को खारिज कर दिया है,जिसमें महिला के परिजनों को मुआवजा देने से इनकार कर दिया गया था। पीठ ने कहा कि एक गृहिणी के रूप में एक महिला की भूमिका एक परिवार में सबसे महत्वपूर्ण व चुनौतीपूर्ण होती है।

    एक परिवार में एक गृहिणी की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हुए, न्यायमूर्ति अनिल एस किलोर ने कहा कि-

    "जब हम एक 'परिवार' के बारे में बात करते हैं, तो परिवार में 'गृहिणी' के रूप में एक महिला की भूमिका सबसे चुनौतीपूर्ण और महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जो बहुत प्रशंसा की हकदार होती है, परंतु उसकी कम से कम सराहना की जाती है। वास्तव में भावनात्मक रूप से वह परिवार को एक साथ रखती है। वह घर में पति का सहयोग करने वाला एक स्तंभ, अपने बच्चों के लिए एक मार्गदर्शक और परिवार के बुजुर्गों के लिए आश्रय की तरह होती है। वह एक दिन की भी छुट्टी लिए बिना दिन-रात काम करती है, भले ही वह कामकाजी महिला हो या न हो। हालाँकि, वह जो काम करती है ,उसकी कोई सराहना नहीं होती है और उसे 'नौकरी' नहीं माना जाता है। एक महिला द्वारा घर में दी जाने वाली सेवाओं को मौद्रिक दृष्टि से गिनना एक असंभव कार्य है जो वह हमेशा करती हैं और जो सैकड़ों घटकों से मिलकर बने होते है।''

    केस की पृष्ठभूमि

    कोर्ट मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी। जिसमें रामभाउ गवई और उनके दो बेटों की तरफ से दायर मुआवजे के दावे को खारिज कर दिया गया था। इस दावे को मुख्यतः तीन आधार पर खारिज किया गया था-

    (ए) दावेदारों ने मृतक बेबी की वास्तविक उम्र को छुपाया था, इस प्रकार यह दावा झूठ पर आधारित है।

    (बी) मृतक बेबी का पति, परिवार का एक कमाऊ सदस्य होने के नाते, दुर्घटना में अपनी पत्नी की मृत्यु हो जाने के मामले में मुआवजे का दावा नहीं कर सकता है।

    (सी) दावेदार नंबर 2 और 3 मृतक बेबी के बालिग बेटे हैं, इसलिए वह किसी भी मुआवजे का दावा करने के हकदार नहीं हैं।

    31 मार्च 2005 को, मृतका प्रतिवादी नंबर 1 के स्वामित्व वाली जीप में यात्रा कर रही थी। उक्त वाहन का चालक तेज गति से और लापरवाही से गाड़ी चला रहा था जिसके परिणामस्वरूप वह एक पेड़ से टकरा गई। इस घटना में बेबी को गंभीर चोटें आईं और उसने दम तोड़ दिया।

    मृतका के पति और उसके दो बेटों ने मोटर वाहन अधिनियम की धारा 166 के तहत दावा याचिका दायर की और 5 लाख रुपये मुआवजा दिलाए जाने की मांग की। ट्रिब्यूनल के समक्ष जीप का मालिक पेश नहीं हुआ और सिर्फ अपना लिखित बयान पेश किया, हालांकि उसे नोटिस तामील करवा दिया गया था। हालाँकि, प्रतिवादी नंबर 2 बीमा कंपनी ने लिखित बयान दायर करके इस दावे का विरोध किया और कहा कि दुर्घटना के समय दुर्घटनाग्रस्त वाहन के चालक के पास वैध मोटर ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था। वही जीप का निजी उपयोग के लिए बीमा करवाया गया था। लेकिन इसका उपयोग व्यावसायिक उद्देश्य के लिए किया जा रहा था,जो बीमा पॉलिसी की शर्त का उल्लंघन है।

    ट्रिब्यूनल ने अपने तीन फरवरी 2007 के आदेश के तहत मुआवजे के दावे को खारिज कर दिया था।

    कोर्ट का फैसला

    अपीलकर्ता परिवार की ओर से एडवोकेट पीआर अग्रवाल, मृतक ड्राइवर के लिए एडवोकेट केबी जिंजार्दे और ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी के लिए एडवोकेट एसके पारधी पेश हुए।

    मामले में सभी पक्षों की प्रस्तुतियाँ सुनने के बाद, न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के निम्नलिखित निर्णयों का हवाला दिया-अरुण कुमार अग्रवाल व अन्य बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड व अन्य और न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम कमला और अन्य।

    कोर्ट ने कहा कि-

    ''भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने उपर्युक्त निर्णयों में यह स्पष्ट किया है कि गृहिणी या माता की मृत्यु होने पर पति और बच्चों को हुए नुकसान की गणना व्यक्तिगत देखभाल और मृतका द्वारा उसके बच्चों की एक माँ के रूप में की जाने वाली केयर, उसके पति की एक पत्नी के रूप में की जाने वाली सेवा व उसके द्वारा पूरे परिवार को संभालने के लिए एक गृहणी के रूप में प्रदान की जाने वाली बहुउपयोगी सेवाओं के नुकसान के रूप में की जानी चाहिए। माननीय सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि 34 से 59 वर्ष की आयु के बीच की गृहिणियों के संबंध में आय का अनुमान 3000 रुपये प्रति माह और 36000 रुपये प्रति वर्ष होना चाहिए क्योंकि वो अपने जीवन में सक्रिय थी।''

    इसके अलावा, पीठ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने पहले ही उपरोक्त उल्लिखित निर्णयों में कानून को तय कर दिया है। ऐसे में ट्रिब्यूनल द्वारा इस आधार पर मुआवजे के दावे को खारिज करना कि मृतका एक गृहिणी थी,काननू के विपरीत है।

    जस्टिस किलोर ने यह भी कहा कि-

    ''इस आधार पर दावेदारों के दावे की अस्वीकृति करना कि पति या बालिग बेटे पत्नी या मां की मौत पर मुआवजे का दावा करने के हकदार नहीं हैं, इससे ट्रिब्यूनल की कानून के स्थापित सिद्धांतों के प्रति अनभिज्ञता प्रतीत होती है।''

    इसके अलावा, अदालत ने पाया कि मृतका मजदूरी करती थी और उसकी कमाई प्रति दिन 100 रुपये थी-

    ''बीमा कंपनी ने अपीलकर्ता नंबर 1 की तरफ से दिए गए इन मौखिक साक्ष्यों पर कोई कड़ी आपत्ति नहीं की है। इस संबंध में, इस तथ्य पर कोई गंभीर विवाद न होने की स्थिति में ट्रिब्यूनल को अपीलकर्ता के मामले को स्वीकार करना चाहिए कि मृतका प्रतिदिन 100 रुपये कमाती थी और इस तरह उसकी मासिक कमाई 3000 रुपये थी। इसके अलावा वह एक गृहिणी के तौर पर भी अपने घर में काम करती थी।

    हालांकि, कोई भी उचित कारण बताए बिना ही ट्रिब्यूनल ने दावेदारों के उस दावे को खारिज कर दिया कि मृतका एक मजदूर के रूप में प्रति दिन 100 रुपये कमा रही थी। इस प्रकार, उक्त निष्कर्ष रिकॉर्ड पर उपलब्ध साक्ष्य के विपरीत है। इसलिए, मेरे विचार में, मृतक बेबी, एक महिला और दो बच्चों की माँ होने के नाते, घर के रखरखाव के लिए अपने शारीरिक श्रम का भी योगदान देती थी और अपने बच्चों की देखभाल भी करती थी। एक मजदूर होने और अपने परिवार की देखभाल करने नाते उसकी दैनिक आय 200 रुपये पर तय की जानी चाहिए। इस प्रकार वह प्रतिमाह 6000 रुपये कमाती थी।''

    इस प्रकार, हाईकोर्ट ने मृतका की आय 6,000 रुपये प्रति माह तय की और बाद में एक तिहाई व्यक्तिगत खर्चों के तौर पर उसमें से घटा दिए और उसकी वार्षिक आय 48,000 रुपये मानी गई। इसके अलावा, मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की दूसरी अनुसूची के अनुसार, आयु समूह 40-45 वर्ष का गुणक ''15'' है। वहीं सरला वर्मा बनाम डीटीसी मामले के अनुसार, आयु समूह 41-45 वर्ष के लिए गुणक ''14'' अपनाया गया था। इस प्रकार कोर्ट ने 14 गुणक को अपनाते हुए निर्भरता की हानि की गणना की,जो 6.72 लाख रुपए बनी।

    इसके बाद, कोर्ट ने प्यार और स्नेह के नुकसान के लिए 1,20,000 और अंतिम संस्कार के खर्च के लिए 30,000 रुपये प्रदान किए। अंत में, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि अपीलकर्ता मुआवजे के तौर पर 8.22 लाख रुपये प्राप्त करने के हकदार हैं। इस राशि पर उनको आवेदन की तारीख से मुआवजा दिए जाने की अवधि के बीच 6 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज भी दिया जाए। इसी के साथ बीमा कंपनी को निर्देश दिया गया है कि वह इस राशि का भुगतान तीन महीने के भीतर कर दें।

    आदेश की काॅपी डाउनलोड करें।



    Next Story