स्वास्थ्य का अधिकार - चिकित्सा उपचार प्रतिपूर्ति से संबंधित प्रावधानों को उदारतापूर्वक लागू किया जाए: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

23 Jan 2022 5:00 AM GMT

  • स्वास्थ्य का अधिकार - चिकित्सा उपचार प्रतिपूर्ति से संबंधित प्रावधानों को उदारतापूर्वक लागू किया जाए: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    Chhattisgarh High Court

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा कि सेल्फ प्रिजर्वेशन स्वास्थ्य के अधिकार का एक पहलू है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है।

    जस्टिस संजय कुमार अग्रवाल ने चिकित्सा प्रतिपूर्ति के लिए याचिकाकर्ता के अनुरोध पर विचार करने के लिए प्राधिकरण को निर्देश देते हुए कहा कि चिकित्सा उपचार की प्रतिपूर्ति से संबंधित प्रावधानों को उदारतापूर्वक समझा जाना चाहिए।

    न्यायालय ने माना कि "स्वास्थ्य के अधिकार" में "सस्ते उपचार का अधिकार" शामिल है और "चिकित्सा उपचार की प्रतिपूर्ति से संबंधित प्रावधानों को उदारतापूर्वक समझा जाना चाहिए।"

    पृष्ठभूमि

    याचिकाकर्ता नर्स की रीढ़ की हड्डी की सर्जरी हुई थी। इसके बाद उसने चिकित्सा व्यय की प्रतिपूर्ति के लिए रु. 99,743/- दिए। उसने ज्यादा वसूली गई रकम की वापसी का दावा किया। हालांकि, उसका दावा खारिज कर दिया गया, क्योंकि उसे सर्जरी से कोई नुकसान नहीं हुआ। इस प्रकार वह प्रतिपूर्ति की हकदार नहीं है। दावे को खारिज करते हुए कहा गया था कि छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (चिकित्सा उपस्थिति) नियम, 2013 के आधार पर कार्योत्तर स्वीकृति नहीं दी जा सकती।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता आकाश कुमार कुंडू ने प्रस्तुत किया कि चूंकि सर्जरी आकस्मिक है, जिसके बाद उसे सात दिनों तक भर्ती रहना पड़ा। इसमें सक्षम प्राधिकारी को सूचित करने के नियम का पालन नहीं किया जा सकता। उन्होंने मेडिकल बिल की वापसी को एक नियम के रूप में मनमाना बताते हुए चुनौती दी जिसका पालन करना अनिवार्य नहीं है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि आत्म-संरक्षण का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक हिस्सा है।

    उप महाधिवक्ता ने प्रस्तुत किया कि उसके परिवार के सदस्यों की याचिकाकर्ता ने इलाज शुरू होने के 48 घंटों के भीतर अधिकारियों को सूचित किया होगा। इसके अभाव में प्रतिपूर्ति के लिए संबंधित नियम लागू नहीं किया जा सकता।

    न्यायालय के निष्कर्ष

    चिकित्सा प्रतिपूर्ति के लिए संबंधित नियमों का उल्लेख करते हुए न्यायालय ने कहा कि आपात स्थिति में उपचार शुरू होने के 48 घंटों के भीतर संबंधित विभाग को सूचना देना आवश्यक है। यह स्वीकार करते हुए कि इस तरह का संचार नहीं किया गया था, अदालत ने कहा कि गैर-संचार के मामले में कार्योत्तर मंजूरी से संबंधित नियमों को कवर नहीं किया जा सकता।

    न्यायालय ने उपभोक्ता शिक्षा और अनुसंधान केंद्र और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का उल्लेख किया। इस मामले में यह माना गया कि स्वास्थ्य और चिकित्सा का अधिकार सेवा में या सेवानिवृत्ति के बाद अपने स्वास्थ्य और शक्ति की रक्षा करना है। यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक कार्यकर्ता का मौलिक अधिकार है।

    सुप्रीम कोर्ट के अन्य निर्णयों की एक सीरीज का उल्लेख करने के बाद न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता को अपने स्वयं के जीवन के सेल्फ-प्रिजर्वेशन में कदम उठाने का अधिकार है, जो स्वास्थ्य के अधिकार का एक पहलू है।

    कोर्ट ने आगे कहा,

    "48 घंटे के भीतर इलाज शुरू करने की सूचना न देने से उसे प्रतिवादियों से चिकित्सा प्रतिपूर्ति की राशि की वसूली करने से रोका नहीं जाएगा, क्योंकि 2013 के नियम के नियम 11 में उस स्थिति का ख्याल रखा गया है और नियम 11(1) के तहत सक्षम प्राधिकारी द्वारा कार्योत्तर स्वीकृति प्रदान की जा सकती है।"

    अदालत ने आदेश प्राप्त होने की तारीख से 45 दिनों के भीतर संबंधित नियमों के तहत याचिकाकर्ता के मामले पर कार्योत्तर मंजूरी देने के लिए प्राधिकरण को निर्देश दिया।

    केस शीर्षक: खुकू विश्वास बनाम छत्तीसगढ़ राज्य

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