महर्षि वाल्मीकि की तुलना तालिबान से करने का आरोप: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुनव्वर राणा के खिलाफ प्राथमिकी रद्द करने से इनकार किया

LiveLaw News Network

7 Sep 2021 2:46 AM GMT

  • महर्षि वाल्मीकि की तुलना तालिबान से करने का आरोप: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुनव्वर राणा के खिलाफ प्राथमिकी रद्द करने से इनकार किया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक समाचार चैनल पर रामायण लिखने वाले महर्षि वाल्मीकि की तुलना तालिबान से करते हुए की गई टिप्पणी के लिए उर्दू कवि मुनव्वर राणा के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार कर दिया है।

    न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सरोज यादव की खंडपीठ ने कहा,

    "याचिकाकर्ता द्वारा महर्षि वाल्मीकि का तालिबान के साथ अनादरपूर्ण तरीके से और बिना किसी आधार के अनावश्यक तुलना करने से बहुसंख्यक समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंची है।"

    अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे पर मुनव्वर राणा ने एक न्यूज चैनल से कहा था कि तालिबान दस साल बाद वाल्मीकि बन जाएगा; वाल्मीकि एक लेखक थे और हिंदू धर्म में किसी को भी भगवान कहा जा सकता है।

    उनकी टिप्पणी के लिए अखिल भारतीय हिंदू महासभा और सामाजिक सरोकार फाउंडेशन की शिकायत पर उनके खिलाफ लखनऊ के हजरतगंज कोतवाली में एससी/एसटी एक्ट के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है।

    गौरतलब है कि अंबेडकर महासभा ने भी मांग की है कि मुनव्वर राणा की कथित टिप्पणी के लिए उनके खिलाफ मामला दर्ज किया जाए। उनके खिलाफ एफआईआर में धारा 153-ए, 501(1)-बी और 295-ए के तहत अपराधों का जिक्र है।

    न्यायालय ने संबंधित परिस्थितियों को देखते हुए इस प्रकार कहा,

    "याचिकाकर्ता के कथित बयानों की सामग्री का एक अवलोकन यह दिखाता है कि प्रथम दृष्टया आईपीसी की धारा 153-ए, 295-ए, 505 (1) (बी) के तहत अपराध महर्षि वाल्मीकि का तालिबान के साथ अनादरपूर्ण तरीके से और बिना किसी आधार के अनावश्यक तुलना करने से बहुसंख्यक समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंची है। याचिकाकर्ता ने सभी प्रकार के आधार लिए हैं कि उनके खिलाफ आरोपित अपराध नहीं बने हैं। हालांकि, तथ्य यह है कि याचिकाकर्ता सतर्क नहीं है और उसने उपरोक्त अपमानजनक बयान देकर गैर-जिम्मेदाराना तरीके से काम किया है।"

    अंत में, यह देखते हुए कि इस स्तर पर प्राथमिकी को रद्द करना उचित नहीं होगा क्योंकि यह सभी प्रासंगिक पहलुओं की जांच को रोकता है और यह नहीं कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई भी प्रथम दृष्टया अपराध नहीं बनता है और न्यायालय ने प्राथमिकी रद्द करने से इंकार कर दिया।

    केस का शीर्षक - मुन्नव्वर राणा बनाम स्टेट ऑफ़ यू.पी. एंड अन्य

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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