'धार्मिक भावनाओं को तर्क और जानवरों के दृष्टिकोण के अनुरूप होना चाहिए': मद्रास हाईकोर्ट ने मंदिर के हाथियों के साथ दुर्व्यवहार की प्रथा की निंदा की, निर्देश जारी किए
LiveLaw News Network
6 Sep 2021 10:33 AM GMT
![God Does Not Recognize Any Community, Temple Shall Not Be A Place For Perpetuating Communal Separation Leading To Discrimination God Does Not Recognize Any Community, Temple Shall Not Be A Place For Perpetuating Communal Separation Leading To Discrimination](https://hindi.livelaw.in/h-upload/2021/02/17/750x450_389287--.jpg)
मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को प्रधान मुख्य वन संरक्षक (PCCF) को राज्य में सभी बंदी हाथियों की एक सूची तैयार करने के लिए निर्देश दिए। अदालत ने सभी हाथियों की एक वीडियो रिकॉर्डिंग बनाने का निर्देश दिया, जिसमें प्रत्येक हाथी की पूरी प्रोफ़ाइल हो, जिसमें उसकी उम्र, लिंग और वंश भी शामिल हो, और उसमें हाथियों को पालतू बनाने का तरीका भी शामिल था।
चीफ जस्टिस संजीब बनर्जी और जस्टिस पीडी ऑदिकेसवालु की खंडपीठ ने एक कार्यकर्ता रंगराजन नरसिम्हन की याचिका पर ये निर्देश जारी किए। याचिका में राज्य भर में मंदिरों में रखे बंदी हाथियों के कथित अमानवीय उपचार का मुद्दा उठाया गया था।
कोर्ट ने कहा, "प्रधान मुख्य वन संरक्षक राज्य में सभी बंदी हाथियों की एक सूची तैयार करेंगे। ऐसे सभी हाथियों की वीडियो-रिकॉर्डिंग, साथ ही उम्र, लिंग, वंश, यदि संभव हो, सहित प्रत्येक हाथी की पूरी प्रोफ़ाइल दी जानी चाहिए। हाथी को कैसे पकड़ा गया या पालतू बनाया गया, यह बताने का हर प्रयास किया जाना चाहिए।"
कोर्ट ने संबंधित वन अधिकारियों को हाथियों को पकड़ने के मौजूदा तारीकों का पता लगाने का निर्देश दिया और कहा,
"वन अधिकारियों के पास उपलब्ध हाथियों की संख्या को समान प्रोफ़ाइल के साथ इंगित किया जाना चाहिए और इस बात का इतिहास दिया जाना चाहिए कि कैसे पशु को वन अधिकारियों द्वारा पकड़ा या इस्तेमाल किया गया। यह भी पता लगाना आवश्यक है कि क्या कोई ऐसी प्रथा जारी है, जिससे आज हाथियों को पकड़ा जाता है...।"
एक पशु संरक्षण संगठन एल्सा फाउंडेशन ने अदालत को एक पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन दिया, जिसमें दावा किया गया था कि राज्य में सभी बंदी हाथियों को अवैध रूप से खरीदा गया था और देश भर में वन अधिकारियों द्वारा अधिकार का व्यापक दुरुपयोग हो रहा है, जो हाथियों के वर्चुअल व्यापार में संलग्न होते हैं।
याचिका में बताया गया कि श्री रंगनाथस्वामी मंदिर के दो हाथियों समेत मंदिर के हाथी नियमित महावतों के बिना है और गंभीर संकट में है। यह भी बताया गया कि वन अधिकारियों द्वारा बंदी बनाए गए हाथियों को लोगों की नजरों से दूर रखा गया है और वन शिविरों में उनके साथ गंभीर दुर्व्यवहार किया जाता है।
शुक्रवार को कार्यवाही के दौरान, श्री रंगनाथस्वामी मंदिर प्रबंधन का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने सुझाव दिया था कि मंदिर के पास और कावेरी नदी के नजदीक अतिरिक्त भूमि है, जहां हाथियों को जंगल जैसे आवास में रखा जा सकता है और उसके बाद केवल औपचारिक उद्देश्यों से मंदिरों में ले जाया जा सकता है।
इस प्रस्तुत के जवाब में बेंच ने कहा, "जबकि सुझाव एक स्वागत योग्य है, यह फिर से सोचने का भी समय है कि क्या देश में कानून के आलोक में, हाथियों को मंदिर समारोहों या मंदिर के अनुष्ठानों में भाग लेने के अपमान के अधीन किया जा सकता है और क्या ऐसी गतिविधियां सड़कों पर भीख मांगने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले हाथियों से बेहतर है। धार्मिक भावनाओं को कभी-कभी तर्क और पशुओं के दृष्टिकोण के अनुरूप होना चाहिए......इस सबंध में वैज्ञानिक और विशेषज्ञ सलाह प्राप्त करने पर भी विचार किया जा सकता है।"
बेंच ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक को बंदी बनाए गए मंदिर के हाथियों की चिकित्सा स्थिति का पता लगाने का भी निर्देश दिया। प्रधान मुख्य वन संरक्षक को एल्सा फाउंडेशन द्वारा की गई प्रस्तुति के जवाब में एक रिपोर्ट तैयार करने का भी निर्देश दिया गया, जिसमें बताया गया था कि वन अधिकारियों द्वारा हाथियों का व्यापार कैसे किया जाता है।
राज्य सरकार के उपयुक्त विभागों जैसे पशु कल्याण या पशुपालन को सभी सहयोग देने का निर्देश दिया गया था। बेंच ने आदेश दिया कि भारतीय पशु कल्याण बोर्ड या किसी राज्य स्तर के संबंधित निकाय को इस मामले के संचालन में विज्ञान आधारित सहायता प्रदान करने और हाथियों और विशेष रूप से और सामान्य रूप से वन्यजीवों के उपचार के मामलों से अवगत कराया जाना चाहिए।
मामले की अगली सुनवाई 24 सितंबर को होनी है ।
केस शीर्षक: रंगराजन नरसिम्हन बनाम मुख्य सचिव