धर्म भक्ति का एक साधान है जिसे किसी विशेष पूजा पद्धति से नहीं बांधा जा सकता; 'अकबर-जोधा' सबसे अच्छा उदाहरण: इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

2 Aug 2021 9:47 AM GMT

  • धर्म भक्ति का एक साधान है जिसे किसी विशेष पूजा पद्धति से नहीं बांधा जा सकता; अकबर-जोधा सबसे अच्छा उदाहरण: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि धर्म भक्ति का एक साधान है और इसे किसी विशेष पूजा पद्धति से नहीं बांधा जा सकता है और इसका सबसे अच्छा उदाहरण सम्राट अकबर और उनकी पत्नी जोधा बाई हैं।

    न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव की खंडपीठ ने जावेद को जमानत देने से इनकार किया, जिस पर आरोप लगाया गया है कि उसने एक हिंदू लड़की को गैर कानूनी रूप से इस्लाम में धर्मांतरित करवा दिया,ताकि आरोपी उसके साथ शादी कर सके।

    कोर्ट ने कहा कि,

    ''हमारे भारतीय संविधान के तहत सभी को स्वतंत्रता का अधिकार है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि लोग डर या लालच से दूसरे धर्म में परिवर्तित नहीं होते हैं, लेकिन अपमान के कारण वह ऐसा करते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि उन्हें अन्य धर्मों में सम्मान मिलेगा। इसमें कुछ बुराई नहीं है और भारतीय संविधान में, सभी नागरिकों को सम्मान के साथ जीवन जीने का अधिकार है। जब किसी व्यक्ति को अपने घर में सम्मान नहीं मिलता है और उसकी उपेक्षा की जाती है, तो वह घर छोड़ देता है।''

    कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणियां

    कोर्ट ने कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 (1) देश के प्रत्येक नागरिक को धर्म की मौलिक अधिकार की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। न्यायालय ने जोर देकर कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि किसी को लालच देकर या डराकर धर्म परिवर्तित किया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा कि अगर किसी को जबरन दूसरे धर्म में परिवर्तित किया जाता है, तो यह सार्वजनिक व्यवस्था के उल्लंघन की संभावना को बढ़ाएगा।

    न्यायालय ने कहा कि,

    "धर्म भक्ति का एक साधान मात्र है, इसे किसी विशेष पूजा पद्धति से नहीं बांधा जा सकता। इसका सबसे अच्छा उदाहरण बादशाह अकबर और उनकी पत्नी जोधा बाई से लिया जा सकता है।"

    न्यायालय ने रिव. स्टैनिस्लॉस बनाम मध्य प्रदेश राज्य एंड अन्य मामले का जिक्र करते हुए कहा कि,

    "यह याद रखना होगा कि अनुच्छेद 25 (1) प्रत्येक नागरिक को अंतःकरण की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, न कि केवल एक विशेष धर्म के अनुयायियों को और यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति का अपने धर्म में रूपांतरण करता है जैसा कि उसके धर्म के सिद्धांतों को प्रसारित करने या फैलाने के उनके प्रयास से अलग है, जो सभी नागरिकों को गारंटीकृत "अंतःकरण की स्वतंत्रता" को प्रभावित करेगा। इसलि किसी अन्य व्यक्ति को अपने धर्म में ऐसे करके परिवर्तित करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है।"

    कोर्ट ने इसके अलाव यह भी कहा कि भारत विभिन्न धर्मों का देश है और धार्मिक कट्टरता के लिए कोई जगह नहीं है और लालच और भय के लिए कोई जगह नहीं है।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "अगर कोई ऐसा करके धर्मांतरण करता है तो यह किसी भी धर्म में स्वीकार्य नहीं है और इसलिए भारतीय संविधान भी इसकी अनुमति नहीं देता है। विवाह हर पर्सनल लॉ के तहत एक पवित्र संस्था है और हिंदू कानून के तहत शादी एक संस्कार है।"

    कोर्ट का आदेश

    अदालत ने मामले के तथ्यों को देखते हुए कहा कि यह स्पष्ट है कि लड़की का धर्म परिवर्तन उसकी शादी के एकमात्र उद्देश्य के लिए किया गया है और वह भी उसकी इच्छा के विरुद्ध किया गया है।

    अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में, पीड़िता ने यह भी बताया कि आवेदक/आरोपी ने उससे झूठ बोला था कि उसके अन्य लड़कियों के साथ भी संबंध हैं और उसे सादे कागज पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया था,जिनमें से कुछ कागज उर्दू में थे और वह उर्दू पढ़ना नहीं जानती है।

    कोर्ट ने आगे कहा कि,

    "आरोपी पहले से शादीशुदा है और उसने पहले पीड़िता का अवैध धर्म परिवर्तन कराया और उसके बाद उर्दू के कागजों पर उसके हस्ताक्षर करवाए, नकली निकाहनामा तैयार किया और उससे शादी कर ली। उसके बाद, उसे मानसिक, शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया। मौका मिलने पर पीड़िता ने पुलिस को फोन किया और आरोपी के खिलाफ मजिस्ट्रेट के सामने बयान दिया, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।''

    कोर्ट ने उक्त परिस्थितियों को देखते हुए आवेदक/आरोपी की जमानत का मैरिट नहीं पाया और उसकी जमानत अर्जी खारिज कर दी।

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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