अंतरराष्ट्रीय विवाह से पैदा हुए बच्चों के हितों की रक्षा के लिए गार्डियन एंड वार्ड एक्ट के तहत फैमिली कोर्ट के क्षेत्राधिकार को फिर से परिभाषित करेंः मद्रास हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
5 Aug 2021 4:00 PM IST
मद्रास हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा है कि गार्डियन एंड वार्ड एक्ट (संरक्षक और प्रतिपाल्य अधिनियम) 1890 के तहत निर्धारित फैमिली कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को फिर से परिभाषित किया जाना चाहिए ताकि उन बच्चों के अधिकारों और हितों की पर्याप्त रूप से रक्षा की जा सके जिनके माता-पिता ने अंतरराष्ट्रीय विवाह किया है।
एक संशोधित कानून बनाने की आवश्यकता पर विचार करते हुए, न्यायमूर्ति जे. निशा बानो ने कहा,
''गार्डियन एंड वार्ड एक्ट 1890, वर्ष 1890 का है,उस समय अंतर्देशीय विवाह या विदेशी विवाह पर विचार भी नहीं किया गया था। आज की तारीख में, इस तरह की शादियां हर दिन असंख्य हो रही हैं। कानून को समाज में हो रहे बदलाव से मेल खाने वाला ग्रहणाधिकार लेना चाहिए। यदि कानून में कमी होगी तो पार्टियों के अधिकारों में भी कमी होगी। इसलिए, विधायिका के लिए उपरोक्त प्रकार के विवाहों पर ध्यान देने और बच्चों के हितों को ध्यान में रखते हुए, फैमिली कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को फिर से परिभाषित करने का समय आ गया है, ताकि न तो बच्चे और न ही बच्चों के कल्याण में रुचि रखने वाला व्यक्ति को परेशानी उठानी पड़े।''
कोर्ट ने 11 साल की उम्र के एक नाबालिग बच्चे की मां द्वारा गार्डियन एंड वार्ड एक्ट की धारा 7, 9 और 17 के तहत दायर याचिका पर अपना फैसला सुनाते हुए यह टिप्पणी की है, जिसने अदालत से मांग की थी कि उसे उसके नाबालिग बेटे का 'प्राकृतिक अभिभावक' घोषित करने की अनुमति दी जाए। साथ ही इस बच्चे की कस्टडी याचिकाकर्ता को सौंप दी जाए। इस तरह की एक याचिका को संबंधित फैमिली कोर्ट यानी जिला न्यायाधीश, कन्याकुमारी जिला, नागरकोइल ने खारिज करते हुए कहा था कि याचिका पर विचार करने के लिए क्षेत्रीय अधिकार का अभाव है। नतीजतन, तत्काल रिवीजन/पुनरीक्षण याचिका दायर की गई।
याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि नाबालिग बच्चे का सामान्य निवास कन्याकुमारी जिले में ही है क्योंकि नाबालिग बच्चा 2014 तक भारत में रहा है। वर्ष 2014 के दौरान, याचिकाकर्ता और उसके पति ने अपने दो बच्चों के साथ भारत छोड़ दिया था।
गार्डियन एंड वार्ड एक्ट की धारा 9 उन आधारों को निर्धारित करती है जिनके आधार पर जिला न्यायालय अवयस्कों की संरक्षकता के संबंध में आवेदनों पर विचार करने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग कर सकते हैं। प्रावधान में कहा गया है कि न्यायालयों को अभिभावक के लिए किसी भी आवेदन पर विचार करने से पहले इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि क्या संबंधित नाबालिग उसके अधिकार क्षेत्र में 'आम तौर पर रहता है'।
कोर्ट ने पाया कि 'आम तौर पर रहता है' वाक्यांश में केवल अस्थायी निवास शामिल है, इसलिए भले ही यह अस्थायी निवास हो,वो काफी हो सकता है। सुनैना चौधरी बनाम विकास चौधरी मामले में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा रखा गया, जिसमें अदालत ने कहा है कि मूल देश के न्यायालय को 'निकटतम चिंता' और 'उठाए गए मुद्दों के साथ सबसे अंतरंग संपर्क' होने के कारण अधिनियम की धारा 9 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
तदनुसार, हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट, जिला कन्याकुमारी को निर्देश दिया है कि वह इस सबूत के आधार पर तत्काल मामले की सुनवाई करे कि बच्चा धारा 9 के अनुसार सामान्य रूप से निवास कर रहा है।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया, ''यदि अधिकार क्षेत्र से संबंधित मुद्दा फैमिली कोर्ट के लिए संदिग्ध है या यदि इसे प्रतिवादी द्वारा उठाया जाता है, तो यह अदालत के लिए ओपन होगा कि वह जांच के दौरान पेश किए गए सबूतों के आलोक में इस पर विचार करे।''
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व एडवोकेट के. वामनन ने किया।
केस का शीर्षकः जे.बेउला सिमा सरल बनाम डब्ल्यू.इसाक रॉबिन्सन
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