बलात्कार पीड़िता की आत्म मूल्य की भावना को छीन लेता है और इसका प्रभाव जीवन भर रहता हैः केरल कोर्ट ने 26 वर्षीय आरोपी को 20 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई

Manisha Khatri

6 April 2023 12:45 PM GMT

  • बलात्कार पीड़िता की आत्म मूल्य की भावना को छीन लेता है और इसका प्रभाव जीवन भर रहता हैः केरल कोर्ट ने 26 वर्षीय आरोपी को 20 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई

    केरल की एक कोर्ट ने 26 साल के एक व्यक्ति को 17 साल की नाबालिग से बलात्कार करने और उसे गर्भवती करने के जुर्म में 20 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई है। साथ ही उस पर 86 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया।

    फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (पॉक्सो), तिरुवनंतपुरम के न्यायाधीश आज सुदर्शन ने अपना आदेश पारित करते हुए कहा कि एक बलात्कार पीड़िता के गर्भवती होने से ज्यादा ‘भावनात्मक रूप से आवेशित’ होने वाली कोई अन्य स्थिति नहीं हो सकती है।

    न्यायालय ने कहा कि बलात्कार के कारण ठहरी गर्भावस्था पीड़ित की पीड़ा को और बढ़ा सकती है। यह भी कहा कि,

    ‘‘बलात्कार एक घिनौना काम है। यह हिंसा का अपराध है जैसा कि इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में भी स्पष्ट रूप से देखा गया है, जो एक इंसान का व्यक्तिगत और अवांछित उल्लंघन और किसी अन्य व्यक्ति पर शक्ति व नियंत्रण का क्रूर प्रयास है।’’

    अभियोजन पक्ष का मामला यह था कि आरोपी पीड़िता का एक पड़ोसी था जो 21 जून, 2021 से नाबालिग पीड़िता से कॉल और टेक्स्ट संदेशों के माध्यम से संपर्क करके उसका यौन उत्पीड़न कर रहा था। इसके बाद, 2021 में अगस्त और सितंबर के महीनों में, उसने पीड़िता के साथ अलग-अलग समय पर दो बार बलात्कार किया, जिसके परिणामस्वरूप वह गर्भवती हो गई। उसने पीड़िता को धमकी दी थी कि अगर उसने घटना के बारे में किसी को बताया तो वह फेसबुक पर उसकी नग्न तस्वीरें अपलोड कर देगा। साथ ही इस बात को किसी और को बताने पर जान से मारने की धमकी देकर उसे डराता-धमकाता था।

    हालांकि, अभियुक्त ने निम्नलिखित आधारों पर अभियोजन पक्ष के दावे का खंडन किया, अर्थात् एफआईआर दर्ज करने में देरी, गर्भधारण की अवधि के अनुरूप पहली घटना की तारीख का उल्लेख न करना और दूसरी घटना की तारीख को बदलना, 17 वर्षीय पीड़िता के ढुलमुल साक्ष्य, बलात्कार के मामले में पितृत्व के अप्रासंगिक होने का सवाल और नाबालिग पीड़िता द्वारा दिए गए साक्ष्य में विरोधाभास, चूक और सुधार किया जाना।

    इस मामले में न्यायालय की राय थी कि ‘‘एक बच्ची के लिए घटना की सही तारीख और समय को याद करना और बताना संभव नहीं होगा, भले ही यह मान लिया जाए कि जिस संभोग के परिणामस्वरूप वह गर्भवती हुई थी, वह सहमति से बना रिश्ता था’’। यह भी माना गया कि इस मामले में सहमति से संबंध बनाने का तर्क देना उचित नहीं है क्योंकि घटना के दिन पीड़िता एक नाबालिग थी। कोर्ट ने इस तर्क को भी मानने से इनकार कर दिया कि दूसरी घटना की तारीख भ्रूण की अवधि के अनुरूप सही की गई थी, क्योंकि सोनोग्राफी के माध्यम से बताई गई गर्भ की आयु हमेशा सटीक नहीं हो सकती है।

    अदालत ने आगे कहा कि बचाव पक्ष पीड़िता के साक्ष्य में कोई भी महत्वपूर्ण विरोधाभास सामने लाने में सक्षम नहीं रहा है।

    अदालत ने आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 450, 342, 376(2)(एन), 506(ii) और पॉक्सो एक्ट 2012 की धारा 3(ए) रिड विद 4, 5(जे)(ii), 5(एल) रिड विद 6 के तहत दंडनीय अपराधों का दोषी पाया।

    ‘‘यौन हमला या बलात्कार उन रूढ़िवादी परिदृश्यों से बहुत अधिक है जो हम फिल्मों या किताबों से देखते और समझते हैं। यह हमेशा अंधेरी या सुनसान गली में नहीं होता है। यह कहीं भी हो सकता है, पीड़िता के घर के अंदर ही, जैसा कि इस मामले में देखा गया है। हर समय, हमलावर अजनबी नहीं हो सकता है, यह एक परिचित व्यक्ति भी हो सकता है। बलात्कार द्वारा हमलावर सुरक्षा, आत्म-मूल्य और स्वस्थ संबंधों को बनाए रखने की क्षमता आदि की भावना को छीन लेता है। पीड़ित द्वारा अनुभव किए गए आघात के कारण ऐसा होता है .... यौन शोषण या यौन उत्पीड़न कभी भी वर्तमान क्षण तक सीमित नहीं होता है। यह एक व्यक्ति के जीवनकाल में बना रहता है और इसके व्यापक दीर्घकालिक प्रभाव होते हैं।’’

    कोर्ट ने कहा कि सजा देने से पूरे समाज में यह संदेश जाना चाहिए कि यौन हिंसा का पीड़ित होना कोई अपमान नहीं है और शर्म हमेशा हमलावर को आनी चाहिए।

    सबूतों और अपराध की गंभीरता के आधार पर आरोपी को पॉक्सो एक्ट 2012 की धारा 5(जे)(ii) रिड विद 6 के तहत 20 साल के कठोर कारावास और 50000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई। उसे पॉक्सो एक्ट की धारा 5(एल) रिड विद 6 के तहत दंडनीय अपराध के लिए भी 20 साल के कठोर कारावास व 25000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई। आरोपी को आईपीसी की अलग-अलग धाराओं के तहत भी दोषी ठहराया गया और सजा सुनाई गई।

    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सभी सजाएं साथ-साथ चलेंगी। न्यायालय ने कहा कि अगर जुर्माने के 86,000 रुपये की राशि जमा करवा दी जाए तो पूरी राशि पीड़ित को सीआरपीसी की धारा 357(1)(बी) के तहत मुआवजे के रूप में दे दी जाए।

    विशेष लोक अभियोजक विजय मोहन आर.एस. शिकायतकर्ता की ओर से उपस्थित हुए। अभियुक्त की ओर से एडवोकेट के.ओ. थॉमस पेश हुए।

    केस टाइटल- राज्य बनाम शिल्पी

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