बलात्कार का आरोपी सिर्फ इसलिए अपने पागलपन की दलील नहीं दे सकता क्योंकि स्थानीय लोग उसे पागल कहते हैं, पीड़िता और डॉक्टर के साक्ष्य महत्वपूर्ण: कलकत्ता हाईकोर्ट

Sharafat

5 Sep 2023 12:33 PM GMT

  • बलात्कार का आरोपी सिर्फ इसलिए अपने पागलपन की दलील नहीं दे सकता क्योंकि स्थानीय लोग उसे पागल कहते हैं, पीड़िता और डॉक्टर के साक्ष्य महत्वपूर्ण: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने स्कूल में 9 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार करने के लिए POCSO अधिनियम की धारा 9 के तहत दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया।

    कोर्ट ने यह माना कि नाबालिग की गवाही और साथ ही आरोपी की स्थिर मानसिक स्थिति के बारे में मेडिकल एविडेंस को केवल इसलिए नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि अपीलकर्ता को स्थानीय लोग पागोल'/'पागल' कहते हैं।

    जस्टिस बिभास रंजन की एकल पीठ ने कहा,

    "सबूतों के समग्र मूल्यांकन पर मैंने पाया कि पीड़िता के बयान और सबूतों का उसके माता-पिता और नादिया सदर अस्पताल के डॉक्टर ने भी समर्थन किया। मैं पीड़िता, नौ साल की लड़की के सबूतों पर केवल बचाव की दलील पर अविश्वास नहीं कर सकता कि आरोपी को इलाके में 'पागल' कहा जाता है। डॉ. पौलमी रे चौधरी के सबूतों के साथ-साथ मेडिकल बोर्ड की एक रिपोर्ट की भी अनदेखी की गई। इस न्यायालय के कहने पर मांगे गए डॉ. चौधरी के साक्ष्य से हम किसी भी तरह से यह नहीं कह सकते कि घटना के समय आरोपी पागल या असामान्य था। ऐसी असामान्यता/पागलपन दिखाने के लिए POCSO अधिनियम की धारा 29 के तहत अनुमान का खंडन करने के पर्याप्त अवसर होने के बावजूद बचाव पक्ष ने कोई सबूत पेश नहीं किया।"

    इस प्रकार इस न्यायालय ने दोषसिद्धि को बरकरार रखा और अपील खारिज कर दी।

    पीड़िता, कक्षा 3 की छात्रा है, कथित तौर पर अपीलकर्ता उसे उसके स्कूल के एक खाली कमरे में ले गया और वहां उसके साथ तब तक बलात्कार किया, जब तक कि उसके चीखने-चिल्लाने से अन्य छात्र वहां नहीं आ गए। शिकायत मिलने पर पुलिस ने स्कूल का दौरा किया और अन्य स्टूडेंट से 161 सीआरपीसी का बयान लिया, साथ ही पीड़िता से भी 164 सीआरपीसी का बयान लिया।

    सुनवाई के दौरान, सत्र न्यायाधीश की राय थी कि इस मामले में पीड़िता के साक्ष्य कसौटी पर खरे उतरे और आरोपी द्वारा उस पर यौन उत्पीड़न का अपराध साबित हुआ, जिससे आरोपी को POCSO अधिनियम की धारा 10 के तहत 5 साल की कैद की सजा सुनाई गई।

    वर्तमान अपील में अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि पीड़ित के मामले को घटना के स्थान पर किसी भी शिक्षक या कर्मचारी द्वारा समर्थित नहीं किया गया और स्कूल के किसी भी स्टूडेंट की पुलिस द्वारा जांच नहीं की गई।

    वकील ने तर्क दिया कि अपीलकर्ता पागल है और खराब दृष्टि से पीड़ित है, जिससे वह इस तरह के कृत्यों को समझने या करने के लिए मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं है।

    जवाब में राज्य के वकील ने नाबालिग लड़की के बयान पर भरोसा किया, जिसकी पुष्टि डॉक्टर ने की। साथ ही आरोपी की मेडिकल जांच रिपोर्ट पर भी भरोसा किया, जिससे पता चला कि अपीलकर्ता सीआरपीसी की धारा 313 के तहत अपनी जांच के दौरान "पूरी तरह से सतर्क" था।

    अभियोजन पक्ष के विभिन्न गवाह, जैसे कि पीड़ित, शिकायतकर्ता और साथ ही विभिन्न मेडिकल परीक्षकों सहित अन्य गवाहों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि हालांकि यह सच हो सकता है कि अपीलकर्ता को उसके क्षेत्र में पागल कहा जाता है , लेकिन पीड़िता के वृत्तांत को खारिज नहीं किया जा सकता, जिसने उससे पूछे गए सवालों को समझा और तर्कसंगत रूप से उनका उत्तर दिया।

    इस प्रकार दोषसिद्धि को बरकरार रखा गया और अपीलकर्ता को अपनी सजा काटने के लिए ट्रायल कोर्ट के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया गया।

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