राजीव गांधी हत्याकांड की दोषी नलिनी ने समय से पहले रिहाई की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया

Sharafat

11 Aug 2022 2:07 PM GMT

  • राजीव गांधी हत्याकांड की दोषी नलिनी ने समय से पहले रिहाई की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया

    राजीव गांधी हत्याकांड के दोषी एस नलिनी ने समय से पहले रिहाई की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उसने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है जिसके द्वारा उसकी शीघ्र रिहाई की याचिका खारिज कर दी गई थी।

    मद्रास हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश मुनीश्वर नाथ भंडारी और जस्टिस एन माला की बेंच ने नलिनी की याचिका खारिज करते हुए कहा था कि हाईकोर्ट भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत समान आदेश पारित करने के लिए शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकता जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के मामले में एक दोषी एजी पेरारीवलन को रिहा करते हुए आदेश पारित किया था।

    सुप्रीम कोर्ट ने 18 मई, 2022 को, संविधान के अनुच्छेद 142 को लागू करते हुए पेरारिवलन को रिहा कर दिया था, जिसने राजीव गांधी हत्याकांड में 30 साल से अधिक जेल की सजा काट ली थी।

    मद्रास हाईकोर्ट ने यह कहते हुए कि अनुच्छेद 142 के तहत विशेष शक्ति सुप्रीम कोर्ट को विशेष रूप से दी गई है, सुझाव दिया कि यदि नलिनी एजी परवारीवलन के मामले में आदेश के संदर्भ में रिहाई की मांग कर रही है तो वह सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकती है।

    हाईकोर्ट के समक्ष नलिनी ने तर्क दिया था कि उसकी रिहाई की सिफारिश करने वाले मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करने में विफल रहने के कारण, तमिलनाडु के राज्यपाल ने अल्ट्रा वायर्स का काम किया। उसने तमिलनाडु के राज्यपाल की मंजूरी के बिना उसे जेल से रिहा करने के लिए राज्य सरकार को निर्देश जारी करने के लिए हाईकोर्ट से गुहार लगाई थी। यह दावा किया गया था कि नलिनी 2001 में ही समय से पहले रिहाई के लिए योग्य हो गई थी, लेकिन आज तक उसे रिहा नहीं किया गया।

    संबंधित अधिकारियों को कई बार अभ्यावेदन देने के बाद आखिरकार, 09.09.2018 को, तमिलनाडु राज्य के मंत्रिपरिषद ने राज्यपाल को उसे रिहा करने की सलाह दी थी। हालांकि, नलिनी ने तर्क दिया कि राज्यपाल ने याचिका को स्थगित रखते हुए मारू राम बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अपमान किया है, जिसमें यह माना गया था कि दोषियों की रिहाई में राज्यपाल को स्वतंत्र रूप से मना करने का निर्णय लेने का अधिकार नहीं है।

    हाईकोर्ट ने कहा था कि जब कोई मामला अनुच्छेद 72 के दायरे में नहीं आता है, यानी जहां भी क्षमा करने की शक्ति राष्ट्रपति के पास नहीं है, राज्यपाल मंत्रिपरिषद के निर्णय से बाध्य है और उनका औपचारिक प्राधिकार भी आवश्यक है।

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