राजस्थान हाईकोर्ट ने दो दोषियों को प्रोबेशन का लाभ बरकरार रखा, कहा शिकायतकर्ता को सजा बढ़ाने की मांग का अधिकार नहीं
Avanish Pathak
29 March 2023 10:25 PM IST

Rajasthan High Court
राजस्थान हाईकोर्ट ने मंगलवार को निचली अदालत के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसने कारावास के विकल्प के रूप में दो दोषियों को परिवीक्षा का लाभ दिया था। उन्हें आईपीसी की धारा 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाने के लिए सजा), धारा 325 (स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुंचाने के लिए सजा) और धारा 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान) के तहत दोषी ठहराया गया था।
जस्टिस फरजंद अली की पीठ ने कहा,
"ऐसा प्रतीत होता है कि ट्रायल जज ने रिकॉर्ड पर पेश सबूतों की सावधानीपूर्वक जांच की है और सजा के बिंदु पर पक्षों को सुनने और मामले की के समग्र तथ्यों और परिस्थितियों, साथ-साथ अपराधियों की परिवीक्षा अधिनियम के दायरे और उद्देध्य पर पर विचार करने के बाद आरोपी प्रतिवादियों को परिवीक्षा का देना उचित समझा।"
एसीजेएम, उदयपुर ने अपने एक फरवरी, 2016 के फैसले और आदेश में आरोपी-प्रतिवादियों को आईपीसी की धारा 323, 325 और 504 के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया था।
एसीजेएम कोर्ट ने आरोपी-प्रतिवादियों को जेल भेजने के बजाय, उन्हें परिवीक्षा का लाभ दिया और कार्यवाही की लागत के रूप में 600 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।
उक्त निर्णय से व्यथित होकर, याचिकाकर्ता-परिवादी ने सत्र न्यायालय के समक्ष अपील दायर की। सत्र न्यायालय ने 13 जनवरी, 2020 के फैसले के तहत दोषी ठहराए जाने के फैसले और परिवीक्षा देने के आदेश को बरकरार रखा, लेकिन पीड़ित (वर्तमान याचिकाकर्ता) को मुआवजे के रूप में 10,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।
हालांकि, याचिकाकर्ता-शिकायतकर्ता ने एसीजेएम, उदयपुर द्वारा पारित एक फरवरी, 2016 के फैसले को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय के समक्ष एक पुनरीक्षण याचिका दायर की थी।
अदालत ने पाया कि आरोपी व्यक्तियों को परिवीक्षा का लाभ देने में ट्रायल कोर्ट द्वारा कोई अवैधता या अनुचितता नहीं की गई थी।
अदालत ने आगे कहा कि सत्र अदालत ने याचिकाकर्ता के पक्ष में एक और उदार दृष्टिकोण लिया और ट्रायल कोर्ट द्वारा जो निर्णय पारित किया गया था, उसके अलावा, सत्र अदालत ने आरोपी-प्रतिवादियों को 10,000 रुपये मुआवजे की राशि के रूप में जमा करने का निर्देश देना उचित समझा।
कोर्ट ने कहा,
"निचली अदालत द्वारा पारित निर्णय तर्कपूर्ण और सकारक है, जिसमें हस्तक्षेप के लिए कोई जगह नहीं है। विद्वान विचारण न्यायालय द्वारा पारित अपराध और सजा के आदेश की विद्वान अपीलीय अदालत द्वारा सावधानीपूर्वक जांच की गई है और इस प्रकार, वैधता, शुद्धता और निर्णय की औचित्य की जांच करते समय पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार में इस न्यायालय के हस्तक्षेप की मांग करने के लिए कोई और आधार मौजूद नहीं है।”
अदालत ने इस प्रकार किसी भी बल से रहित होने के कारण पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया।
केस टाइटल: चमनलाल चंदेरिया बनाम राज्य व 2 अन्य।
कोरम: जस्टिस फरजंद अली