सरकार को निशाना बना रहे हैं : पीएम मोदी-अमित शाह के खिलाफ़ FIR दर्ज करने की मांग करने वाले वकील पर लगा 50,000 का जुर्माना
Amir Ahmad
25 Sept 2025 5:42 PM IST

राजस्थान हाईकोर्ट ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), 2019 को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, सांसद रविशंकर प्रसाद और अन्य के ख़िलाफ़ FIR दर्ज कराने की मांग वाली याचिका को ख़ारिज करते हुए याचिकाकर्ता वकील पर 50,000 का लागत (जुर्माना) लगाया।
जस्टिस सुदेश बंसल ने कहा कि याचिका में लगाए गए आरोप अस्पष्ट, निराधार और केवल सरकार को निशाना बनाने की नीयत से लगाए गए।
अदालत ने टिप्पणी की कि एक एडवोकेट से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह ऐसे गंभीर और अपमानजनक आरोप बिना किसी तथ्य या साक्ष्य के लगाए।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता न तो कोई ठोस आधार प्रस्तुत कर पाया और न ही ऐसा कोई कारण दिखा पाया जिससे पुलिस का अधिकार क्षेत्र बनता हो।
कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि वकील होने के नाते याचिकाकर्ता की जिम्मेदारी आम नागरिकों से कहीं अधिक है और उन्हें केवल लोकप्रियता हासिल करने के लिए मनगढ़ंत या निराधार मुक़दमे दर्ज नहीं कराने चाहिए।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
जस्टिस बंसल ने कहा कि अदालत का समय सीमित है और उसे निरर्थक एवं दुर्भावनापूर्ण याचिकाओं पर व्यर्थ नहीं किया जा सकता।
एडवोकेट पूरण चंदर सेन ने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि CAA लागू होने से देशभर में प्रदर्शन हुए, जिनमें लोगों की मौतें हुईं और कई घायल हुए इसलिए शीर्ष नेताओं के ख़िलाफ़ दंडात्मक कार्रवाई होनी चाहिए।
उन्होंने पहले मजिस्ट्रेट और फिर एडिशनल सेशन जज कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था, लेकिन दोनों अदालतों ने उनकी याचिका ख़ारिज कर दी थी। इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट का रुख़ किया।
राज्य सरकार और केंद्र सरकार की ओर से याचिका का कड़ा विरोध किया गया। उनका कहना था कि अधिनियम को विधायी प्रक्रिया के तहत पारित किया गया था और किसी भी प्रकार की हिंसा का दोष प्रधानमंत्री या गृह मंत्री पर नहीं डाला जा सकता। इसके अलावा, हिंसा की घटनाएं उस न्यायालय के क्षेत्राधिकार में भी नहीं हुई, जहां याचिका दाख़िल की गई।
हाईकोर्ट ने भी यही माना कि आरोप केवल मनगढ़ंत धारणाओं और व्यक्तिगत विचारों पर आधारित हैं, जिनका कोई कानूनी आधार नहीं है।
अदालत ने इसे मनगढ़ंत, निराधार और पक्षपातपूर्ण सोच का परिणाम बताते हुए याचिका को तुरंत ख़ारिज कर दिया और एडवोकेट पर 50,000 की लागत लगाने का आदेश दिया जिसे चार हफ़्तों के भीतर Litigants Welfare Fund में जमा करना होगा।

