विधवा-विधूर लिव-इन कपल को राजस्थान हाईकोर्ट से मिली सुरक्षा; कहा- निजता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं किया जा सकता

Shahadat

26 Oct 2022 9:52 AM GMT

  • विधवा-विधूर लिव-इन कपल को राजस्थान हाईकोर्ट से मिली सुरक्षा; कहा- निजता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं किया जा सकता

    राजस्थान हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली विधवा महिला और विधुर पुरुष द्वारा जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए दायर याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं को निजता, स्वतंत्रता और पसंद का संवैधानिक अधिकार है।

    याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का रुख किया और अपने जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत याचिका दायर की। यह उनका मामला है कि वे क्रमशः विधवा और विधुर हैं और अब लिव-इन रिलेशनशिप में हैं, जिसका निजी प्रतिवादियों ने विरोध किया है, क्योंकि वे पहले याचिकाकर्ता के परिवार के सदस्य हैं। उनके रिश्ते की गैर-अनुमोदन और गैर-मान्यता और उनके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए खतरे से पीड़ित होकर उन्होंने राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर पीठ के समक्ष सुरक्षा के लिए प्रार्थना की।

    जस्टिस बीरेंद्र कुमार की एकल पीठ ने पुलिस सुपरिटेंडेंट को अन्य अधिकारियों के साथ याचिकाकर्ताओं के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आदेश दिया।

    न्यायालय ने कहा कि कानून को हाथ में लेकर व्यक्तियों की निजता और स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं किया जा सकता और यदि पीड़ित व्यक्ति द्वारा कानून के उल्लंघन का आरोप लगाया जाता है तो कानूनी सहारा अपनाया जाना चाहिए।

    याचिकाकर्ताओं के निजता के अधिकार को मान्यता देते हुए कोर्ट ने नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए इस बात पर प्रकाश डाला कि इसे 'संवैधानिक नैतिकता' की अवधारणा द्वारा कैसे निर्देशित किया जाना चाहिए, न कि 'सामाजिक या सामाजिक नैतिकता' के विचारों से।

    इसके अलावा, न्यायालय ने शफीन जहान बनाम अशोकन के.एम. में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी भरोसा किया, जिसमें सामाजिक मूल्यों और नैतिकता से ऊपर व्यक्तियों की व्यक्तिगत पसंद और संवैधानिक रूप से गारंटीकृत स्वतंत्रता दोनों को मान्यता दी गई है।

    केस टाइटल: गायत्री और अन्य बनाम राजस्थान राज्य

    साइटेशन: एस.बी. आपराधिक रिट याचिका नंबर 642/2022

    कोरम: जस्टिस बीरेंद्र कुमार

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