पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर टिप्पणी करने के मामले में डॉ कुमार विश्वास की गिरफ्तारी पर रोक लगाई

LiveLaw News Network

2 May 2022 7:30 AM GMT

  • पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर टिप्पणी करने के मामले में डॉ कुमार विश्वास की गिरफ्तारी पर रोक लगाई

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने आम आदमी पार्टी (आप) के पूर्व नेता और कवि कुमार विश्वास को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर उनके द्वारा दिए गए बयानों के संबंध में पंजाब पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज मामले में गिरफ्तारी पर रोक लगा दी।

    जस्टिस अनूप चितकारा की खंडपीठ ने कुमार विश्वास की उस याचिका पर आदेश जारी किया जिसमें एफआईआर को चुनौती दी गई थी। अपनी इस याचिका में कुमार विश्वास ने खुद के खिलाफ किसी भी दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगाने, जांच पर रोक लगाने और गिरफ्तारी/परिणामी कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की थी।

    विश्वास ने अपनी याचिका में तर्क दिया कि एफआईआर दुर्भावनापूर्ण इरादे और कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग का परिणाम है। एफआईआर कुछ भी नहीं बल्कि राजनीतिक दुर्भावना के तहत दर्ज की गई है, क्योंकि कथित बयान/साक्षात्कार मुंबई में दिए गए थे और एफआईआर पंजाब में दर्ज की गई।

    पिछले हफ्ते विश्वास द्वारा मांगी गई अंतरिम राहत पर हाईकोर्ट ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। बेंच ने पंजाब राज्य सरकार और प्रतिवादी नंबर दो/शिकायतकर्ता (एडवोकेट कनिका आहूजा के माध्यम से) को भी नोटिस जारी किया था।

    विश्वास के खिलाफ एफआईआर के बारे में

    उल्लेखनीय है कि विश्वास के खिलाफ एफआईआर 12 अप्रैल को इस आरोप में दर्ज की गई थी कि उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ 16 फरवरी से 19 फरवरी के बीच कुछ समाचार चैनलों को दिए साक्षात्कार में भड़काऊ बयान दिया था, जिसमें उन्होंने कहा कि केजरीवाल कुछ नापाक और असामाजिक तत्वों से जुड़े है।

    एफआईआर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153/153-ए/505/505(2)/116 के साथ 143/147/323/341/120-बी और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 125 के तहत दर्ज की गई है।

    मामले में शिकायतकर्ता नरिंदर सिंह ने आगे आरोप लगाया कि विश्वास ने विधानसभा चुनाव, 2022 के दौरान पूरे पंजाब में अशांति और सांप्रदायिक अस्थिरता पैदा करने के लिए कथित भड़काऊ बयान दिए थे।

    यह भी आरोप लगाया गया कि कथित भड़काऊ बयानों के कारण आप नेताओं और कार्यकर्ताओं को हिंसा, दुश्मनी और शत्रुता की भावना का शिकार होना पड़ा, क्योंकि उन्हें विघटनकारी और असामाजिक तत्वों के सहयोगी के रूप में लेबल किया जा रहा था।

    अंत में यह भी प्रस्तुत किया गया कि विश्वास द्वारा दिए गए बयानों के परिणामस्वरूप 10-12 अज्ञात व्यक्तियों ने शिकायतकर्ता और अन्य लोगों का रास्ता रोका और उनको एक कोने में धकेलकर मारपीट करने का प्रयास किया।

    विश्वास द्वारा दायर याचिका में आगे की बातें

    विश्वास ने प्रस्तुत किया कि कथित भड़काऊ बयान 16 से 19 फरवरी 2022 के बीच दिए गए थे। हालांकि, शिकायतकर्ता द्वारा शिकायत की गई कथित घटना 12 अप्रैल, 2022 को हुई और पुलिस एजेंसी ने रसीद के दो घंटे के भीतर एफआईआर दर्ज की। शिकायत की और उसी की जांच के लिए एक एसआईटी का गठन किया।

    इसके अलावा, उन्होंने याचिका में यह भी कहा है कि पुलिस एजेंसी ने एफआईआर की सेवा या अपलोड किए बिना याचिकाकर्ता की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का अवैध रूप से उल्लंघन करने के उद्देश्य से पंजाब पुलिस अधिकारियों की टीम को याचिकाकर्ता के आवास पर भेज दिया।

    इस संबंध में याचिका में कहा गया कि पुलिस एजेंसी 12 अप्रैल, 2022 को कथित रूप से हुई घटना के संबंध में किसी भी प्रकार की प्रारंभिक जांच करने में विफल रही है, जैसा कि एफआईआर में कहा गया है।

    विश्वास ने यह भी स्पष्ट किया कि कथित बयान देते समय वह स्वस्थ चर्चा के लिए कुछ तथ्यों को सार्वजनिक डोमेन में रखना चाहते थे और उनका इस तरह के बयान के आधार पर कोई अशांति या घटना पैदा करने का कोई इरादा नहीं था।

    गौरतलब है कि हाल ही में पंजाब विधानसभा चुनावों में आप की जबरदस्त जीत का जिक्र करते हुए याचिका में कहा गया:

    "हाल ही में पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 के बाद AAP प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई और इसके तुरंत बाद स्पष्ट इरादे के साथ राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ शिकायतों की एक श्रृंखला और एफआईआर दर्ज की गई, जिसके आधार पर दुर्भावनापूर्ण इरादे से उत्पीड़न किया जा रहा है।"

    इन परिस्थितियों में विश्वास ने अन्य बातों के साथ-साथ एफआईआर को रद्द करने की प्रार्थना के साथ हाईकोर्ट की संलिप्तता की मांग इस आधार पर की कि एफआईआर का रजिस्ट्रेशन राज्य की मशीनरी का गलत उद्देश्य के लिए राजनीतिक रूप से प्रेरित आपराधिक जांच के माध्यम से प्रतिशोध को खत्म करना है।

    याचिका में कहा गया कि भले ही उनके अंकित मूल्य पर लिया गया हो और पूरी तरह से स्वीकार किया गया हो (हालांकि स्वीकार नहीं किया गया) एफआईआर और उसमें बताए गए तथ्य प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 153/153-ए/505/505 के साथ धारा (2)/116 को 143/147/323/341/120-बी और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 125 के तहत कोई अपराध नहीं बनाते हैं।

    उपस्थिति

    रणदीप राय, सीनियर एडवोकेट और चेतन मित्तल, सीनियर एडवोकेट मयंक अग्रवाल, रुबीना विरमानी, करण पाठक, एडवोकेट कुमार विश्वास के लिए पेश हुए।

    पुनीत बाली, सीनियर एडवोकेट प्रशांत मनचंदा, एडवोकेट, वी.जी. जौहर, सीनियर डीएजी, पंजाब और एच.एस. मुल्तानी, एएजी, पंजाब पेश हुए।

    विनोद घई, सीनियर एडवोकेट, कनिका आहूजा, कीर्ति आहूजा, एडवर्ड ऑगस्टीन जॉर्ज और महिमा डोगरा के साथ, एडवोकेट शिकायतकर्ता/प्रतिवादी नंबर दो के लिए उपस्थित हुए।

    केस का शीर्षक - कुमार विश्वास बनाम पंजाब राज्य और अन्य। [सीआरएम-एम-17450-2022]

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