पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने राज्य को वर्षों से पेंशन से वंचित दो महिलाओं को 1-1 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया
Brij Nandan
11 May 2023 3:32 PM IST
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब राज्य को वर्षों से पेंशन से वंचित दो महिलाओं को 1-1 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि पेंशन और पेंशन लाभ राज्य का इनाम नहीं है बल्कि ये अनुच्छेद 300-ए के तहत एक संवैधानिक अधिकार है।
एक मामले में विधवा 12 साल से अपनी पेंशन का इंतजार कर रही थी और दूसरे मामले में क्राफ्ट टीचर की पेंशन जारी करने में 4 साल की देरी हुई थी।
जस्टिस जसगुरप्रीत सिंह पुरी ने कहा कि भारत एक "कल्याणकारी राज्य" है और राज्य और इसकी संस्थाओं को कानून के अनुसार पेंशन और पेंशन लाभ प्रदान करने के लिए "उचित" और "प्रभावी" कदम उठाने चाहिए।
पहले मामले में, याचिकाकर्ता सुरजीत कौर, एक विधवा, ने याचिका दायर की थी जिसमें कहा गया था कि उसके पति का 2011 में निधन हो गया था। वो सिंचाई विभाग, बीबीएमबी, सुंदरनगर में कार्यरत थे। पति की मृत्यु के बाद, विधवा को उसके लाभ से वंचित कर दिया गया, जिसकी वो हकदार है और नो ड्यूज सर्टिफिकेट रोके जाने के कारण उसे 12 साल तक इंतजार करना पड़ा।
अदालत ने कहा,
"बीबीएमबी की याचिकाकर्ता के बेबाकी प्रमाणपत्र को लंबे समय तक रोके रखने की कार्रवाई पूरी तरह से मनमाना और अवैध और कानून के किसी भी अधिकार के बिना है।"
बीबीएमबी अधिकारियों ने याचिकाकर्ता के पति को आवंटित घर को तुरंत खाली करने में विफल रहने के लिए लगभग 3 लाख का जुर्माना भी लगाया था।
अदालत ने बीबीएमबी द्वारा जुर्माना लगाने की कार्रवाई को "उचित नहीं" बताया। इसने कहा कि राशि "किसी भी कानून के तहत किसी भी प्रक्रिया या किसी भी आकलन का पालन किए बिना और वह भी आठ साल बाद" लगाई गई थी।
कोर्ट ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता ब्याज सहित उक्त राशि की वापसी की हकदार है।
एक अन्य मामले में, याचिकाकर्ता परमजीत कौर 2019 में एक शिल्प शिक्षक के रूप में सेवानिवृत्त हुईं। यह आरोप लगाया गया कि बिना किसी औचित्य के पेंशन और ग्रेच्युटी का भुगतान नहीं किया गया था।
पंचायत समिति पदाधिकारी का आरोप है कि याचिकाकर्ता को 1,36,640/- रुपये का अधिक भुगतान प्राप्त हुआ है। 1 जनवरी, 2006 से उनकी सेवानिवृत्ति तक ग्रेड पे निर्धारण में असावधानीवश त्रुटि के कारण 3200 रुपये के बजाय 3600 रुपए हुआ था।
अदालत ने कार्रवाई को पूरी तरह से कानून के विपरीत घोषित किया। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता की ओर से किसी भी धोखाधड़ी या गलत बयानी का कोई आरोप नहीं है और बल्कि राज्य ने खुद याचिकाकर्ता को ग्रेड पे दिया है।
आगे कहा,
"अन्यथा भी, चूंकि याचिकाकर्ता श्रेणी- III में आता है और पहले ही सेवानिवृत्त हो चुका है, इसलिए याचिकाकर्ता से ऐसी कोई वसूली नहीं की जा सकती है।"
अदालत ने यह भी कहा कि यह अपने पेंशनरों के प्रति राज्य की ओर से मनमानी का उत्कृष्ट मामला है।
"चौंकाने वाली बात" याचिकाकर्ता, जो एक महिला है, चार साल पहले सेवानिवृत्त हो गई थी और उसे "बिना किसी कारण के" पेंशन और ग्रेच्युटी का भुगतान नहीं किया गया था।
दोनों मामलों में अदालत ने यह भी देखा,
"पेंशन और पेंशन संबंधी लाभ राज्य का इनाम नहीं है बल्कि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 300-ए के तहत एक संवैधानिक अधिकार है।"
अदालत ने देवकीनंदन प्रसाद बनाम बिहार राज्य और अन्य का उल्लेख किया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने इस मुद्दे को निपटाया और कहा कि, "राज्य कानून के अधिकार के बिना पेंशन और पेंशन संबंधी लाभों को रोक नहीं सकता है, भले ही उस समय संपत्ति का अधिकार भारत के संविधान के भाग-III के तहत एक मौलिक अधिकार था और उसके बाद भारत के संविधान के 44वें संशोधन के साथ यह एक संवैधानिक अधिकार बन गया।
दोनों मामलों में उपरोक्त टिप्पणियों के आलोक में, अदालत ने 6% साधारण ब्याज के साथ पेंशन राशि का भुगतान करने का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि अनुपालन करने में विफल होने की स्थिति में, राज्य पर अतिरिक्त 9% लगाया जाएगा।
मामलों का निपटान करते हुए और 1 लाख रुपये की जुर्माना लगाते हुए, अदालत ने राज्य को संबंधित अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने और कानून के अनुसार सख्ती से और आवश्यक प्रक्रिया का पालन करके उनसे लागत वसूल करने की स्वतंत्रता दी।
केस टाइटल: सुरजीत कौर बनाम पंजाब राज्य और अन्य
केस टाइटल: परमजीत कौर बनाम पंजाब राज्य और अन्य
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