वादी के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने के मामले में हाईकोर्ट बार एसोसिएशन पर पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने लगाया जुर्माना, पढ़िए फैसला

LiveLaw News Network

15 Aug 2019 3:04 PM GMT

  • वादी के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने के मामले में हाईकोर्ट बार एसोसिएशन पर पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने लगाया जुर्माना, पढ़िए फैसला

    अदालत में वादियों या मुविक्कलों के प्रवेश पर रोक लगाकर न्याय के प्रशासन में बांधा ड़ालने के मामले में हाईकोर्ट बार एसोसिएशन (एचसीबीए) को नोटिस जारी करने के बाद,पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने इसी मामले में एचसीबीए पर पचास हजार रुपए हर्जाना भी लगा दिया है।

    मोनू राजपूत बनाम हरियाणा राज्य व अन्य नामक केस मोनू राजपूत ने दायर किया था। इस केस में उसने अपनी लिव-इन-पार्टनर नीशू को उसके पिता की कस्टडी से बाहर निकाले जाने की मांग की थी। इस मामले में पेशी के लिए पांच अगस्त को सुनवाई होनी थी,परंतु मामले की सुनवाई 13 अगस्त के लिए टाल दी गई क्योंकि नोटिस तामील नहीं हो पाया था। हालांकि इस मामले में नीशू की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि अपने पिता के साथ कोर्ट में पेश होने आई थी,परंतु उनको वकीलों ने कोर्ट में आने से रोक दिया क्योंकि वकील एचसीबीए के कहने पर हड़ताल पर थे। जबकि उनके पास कोर्ट के प्रवेश के लिए वैध पास भी था।

    बार के सदस्य जुलाई से हड़ताल पर चल रहे है। वह केंद्र सरकार की उस अधिसूचना का विरोध कर रहे है,जिसके तहत हरियाणा प्रशासनिक ट्रिब्यूनल बनाया गया है ताकि राज्य के कर्मचारियों की सेवा से जुड़े मामलों की सुनवाई इस ट्रिब्यूनल में की जा सके। उनका कहना है कि ट्रिब्यूनल का गठन अधूरा था क्योंकि प्रशासनिक सदस्यों की नियुक्ति नहीं की गई थी,इसलिए पीठ का गठन नहीं हो सकता है।

    इससे मुविक्कल जनता को कोई राहत नहीं मिल पाएगी क्योंकि एक सदस्य न तो मामले को अंतिम तौर पर तय कर सकता है और न ही ऐसे मामलों को उठा सकता है या सुन सकता है,जहां सेवा नियमों को चुनौती दी गई हो।

    मामले के तथ्यों को देखते हुए कोर्ट ने मामले की आगे की सुनवाई तय कर दी है। कोर्ट ने माना कि वकील अदालतों के अधिकारी हैं,जिनसे उम्मीद की जाती है कि वह अत्यधिक विवेक और संवेदना के मानकों पर खरे उतरे।

    कोर्ट ने कहा कि-

    '' एक वकील के रूप में प्रैक्टिस करने के लिए मिला लाइसेंस एक प्रभावी हथियार है,जिसका उपयोग कोर्ट के कानूनों के जरिए एक पीड़ित मुविक्कल की ओर किया जाना चाहिए या समाज में सुधार लाने के लिए। एक वकील,जो कानून के ज्ञान से अच्छी तरफ वाकिफ है,एक असाधारण नागरिक बन जाता है और कानून के पेशे के उच्चपद से सम्मानित किया जाता है।धैर्य,विवेक और ज्ञान को एक सार्थक वकील के सबसे अच्छे दोस्त माना जाता है। वहीं यह सभी मूलभूत तत्व एक व्यक्ति के बतौर वकील किए जाने वाले आचरण व व्यवहार में प्रदर्शित होते है। इसलिए,यह कभी उम्मीद नहीं की जाती है कि एक वकील अपने ही मुविक्कलों के अधिकारों के प्रति असंवेदनशील हो सकता है।''

    जस्टिस मनोज बजाज ने आक्रामक तरीके से लागू की गई हड़ताल और कोर्ट में कामकाज को पंगु बनाने के लिए वकीलों की निंदा की। पीठ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व कैप्टन हरीश उप्पल बनाम केंद्र सरकार,2003 एआईआर (एससी)739 मामले में दिए गए फैसले पर भरोसा जताते करते हुए कहा कि-

    ''अधिवक्ताओं द्वारा इस तरह का अंदोलन,जिसके चलते उन्होंने न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने से परहेज किया है,वो अपनी शिकायत व्यक्त करने के तरीकों में से एक हो सकता है,जिसके लिए जो भी कारण हो,लेकिन उसको सही और पूर्ण नहीं माना जा सकता है,जिसके तहत गलत तरीके से मुविक्कलों के कोर्ट आने से रोका गया हो, इसलिए कोर्ट ने एचसीबीए पर पचास हजार रुपए जुर्माना लगा दिया है,जो निशू के पिता को दिया जाएगा क्योंकि उसको कोर्ट आने से रोका गया था और हड़ताल का नेतृत्व किया गया। ''



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