'उत्तेजना लोगों के मानसिक रवैये पर निर्भर करती है': दिल्ली हाईकोर्ट ने फिल्म 'द कन्वर्जन' की रिलीज पर रोक लगाने से इनकार किया
LiveLaw News Network
1 Oct 2021 3:08 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को फिल्म 'द कन्वर्जन' की रिलीज पर रोक लगाने से इनकार किया। दरअसल, कथित तौर पर सांप्रदायिक रूप से आरोपित सामग्री प्रदर्शित करने और धार्मिक समुदायों के बीच नफरत फैलाने का आरोप लगाते हुए चुनौती दी गई थी।
मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल ने शुरुआत में टिप्पणी की,
"उत्तेजना लोगों के मानसिक रवैये पर निर्भर करती है।"
न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने भी कहा,
"किसी को किसी भी बात से उकसाया जा सकता है, यहां तक कि बिना किसी के एक भी शब्द कहे। जबकि कुछ लोग कभी उत्तेजित नहीं हो सकते, वे बहुत शांत रहते हैं।"
बेंच ने कहा कि फिल्म के पूरे संदर्भ के बिना केवल ट्रेलर के आधार पर याचिका दायर की गई है।
कोर्ट ने आगे कहा कि नोटिस "एक आदमी के उकसावे" के आधार पर जारी नहीं किया जा सकता है और इस प्रकार इसने सूचना और प्रसारण मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए प्रतिनिधित्व पर यथासंभव शीघ्रता से निर्णय करे।
आदेश में कहा गया है,
"यह याचिका फिल्म 'द कन्वर्जन' के ट्रेलर के आधार पर दायर की गई है।"
याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि उन्होंने सूचना और प्रसारण मंत्रालय को 31 अगस्त 2021 को एक प्रतिनिधित्व दिया था और अभी तक संबंधित प्रतिवादी प्राधिकारी द्वारा निर्णय नहीं लिया गया है।
हम एतद्द्वारा संबंधित प्राधिकारी को आरोप को ध्यान में रखते हुए मामले के तथ्यों पर लागू कानून, नियमों, विनियमों, सरकारी नीतियों के अनुसार और रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य के आधार पर, यथासंभव शीघ्र और व्यावहारिक रूप से अभ्यावेदन का निर्णय लेने का निर्देश देते हैं।
याचिकाकर्ता का कहना है कि यह फिल्म 8 अक्टूबर को यूट्यूब और अन्य प्लेटफॉर्म पर रिलीज होने जा रहा है।
अधिवक्ता आदिल शरफुद्दीन और उबैद यूआई हसन के माध्यम से ऑल इंडिया प्रैक्टिसिंग लॉयर्स काउंसिल द्वारा दायर याचिका में कहा गया कि फिल्म के ट्रेलर में पक्षपातपूर्ण और सांप्रदायिक सामग्री को दर्शाया गया है।
उक्त फिल्म से आगामी उत्तर प्रदेश चुनावों के बीच सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की संभावना है।
याचिका में कहा गया,
"फिल्म के ट्रेलर से पता चलता है कि फिल्म की सामग्री मनगढ़ंत है, सांप्रदायिक रूप से पक्षपाती है। साथ ही सच्चाई से बहुत दूर और समाज या विशेष समुदाय के एक वर्ग को क्रूर रूप में चित्रित करती है। लव जिहाद के विचार का प्रचार करती है। विचार और शब्द एक मिथ्या नाम हैं और धर्म के आधार पर समाज के एक हिस्से को भेदभाव और विभाजित करते हैं।"
केस टाइटल: ऑल इंडिया प्रैक्टिसिंग लॉयर्स काउंसिल बनाम भारत संघ एंड अन्य।