गैंगस्टर्स एक्ट के प्रावधान उत्तर प्रदेश राज्य में पुलिस द्वारा गलत तरीके से इस्तेमाल किए जा रहे हैं: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

LiveLaw News Network

5 Nov 2020 5:37 AM GMT

  • गैंगस्टर्स एक्ट के प्रावधान उत्तर प्रदेश राज्य में पुलिस द्वारा गलत तरीके से इस्तेमाल किए जा रहे हैं: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

    राज्य पुलिस को फटकार लगाते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि उत्तर प्रदेश राज्य में पुलिस द्वारा गैंगस्टर अधिनियम के प्रावधानों का पूरी तरह से दुरुपयोग किया जा रहा है।

    न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की खंडपीठ ने धारा 439 Cr.P.C के तहत दायर जमानत याचिका पर सुनवाई की। यह एक एफआईआर के संबंध में थी, जिसमें धारा 2/3 यू.पी. गैंगस्टर और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1986 पुलिस थाना बघौली, जिला हरदोई में आरोपी-आवेदक और दो अन्य सह-आरोपियों के खिलाफ इस्तेमाल किया गया है।

    केस की पृष्ठभूमि

    जमानत अर्जी के साथ गैंग-चार्ट को खारिज करते हुए न्यायालय ने पाया कि गैंगस्टर एक्ट के प्रावधानों को आरोपी-आवेदक के खिलाफ दर्ज किए गए पांच मामलों के आधार पर (आरोपी-आवेदक के खिलाफ) लागू किया गया था।

    यह अभियोजन का मामला है कि अभियुक्त-आवेदक से Rs.6600 /- सिगरेट के कुछ पैकेट आदि बरामद किए गए।

    जांच अधिकारी ने अभियुक्त-आवेदक से तथाकथित तीन चोरी में वसूल किए गए 600 / - की राशि का अनुपात निर्धारित किया था।

    दूसरे शब्दों में पुलिस द्वारा यह कहा गया था कि प्रथम मामले में आरोपी-आवेदक से रु. 1600 / -, दूसरे मामले में रु. 800 / - और तीसरे मामले में रु. 300 / रुपए ज़ब्त किए - (कुल राशि) = 6600)।

    इस पर कोर्ट ने कहा,

    "यह बहुत अजीब है कि जांच अधिकारी को पता था कि चोरी एक विशेष राशि की हुई थी। उसने किसी विशेष मामले की चोरी की राशि को कैसे पहचाना? 14.08.2019 को आरोपी से एक वसूली के आधार जांच अधिकारी ने उसे नौ दिनों की अवधि के भीतर पांच मामलों में आरोपी बनाया और उसके खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया।"

    इसके अलावा न्यायालय ने टिप्पणी की,

    "यह एक अकेला मामला नहीं है, जहां अदालत ने पुलिस द्वारा कई मामलों में एक आरोपी को फंसाने के लिए फर्जी, अविश्वसनीय और असंभव कहानी बताई है और फिर गैंगस्टर अधिनियम के प्रावधानों को लागू किया।"

    इसके मद्देनजर, न्यायालय ने पुलिस अधीक्षक, हरदोई को अपना व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया कि कैसे जांच अधिकारी इस निष्कर्ष पर पहुंंचे कि आरोपी-आवेदक से कथित रूप से 1600 / -रु. पहले मामले में, रु. 800 / - दूसरे मामले में और रु. 3200 / - से तीसरे मामले बरामद उए जबकि अभियुक्त से 14.08.2019 को एक मामले मेंं बरामदगी की गई थी।

    इसके अलावा अदालत ने टिप्पणी की,

    "यदि पुलिस अधीक्षक की राय है कि जिन अपराधों के तहत आरोपी-आवेदक के खिलाफ गैंगस्टर अधिनियम के प्रावधान लागू किए गए हैं, झूठे हैं, तो वह संबंधित जांच अधिकारी के खिलाफ क्या कार्रवाई करने वाले हैंं?

    न्यायालय ने विशेष रूप से यह बताने का भी निर्देश दिया कि जांच अधिकारी ने अभियुक्त-आवेदक को कथित रूप से वसूली के अलावा किस तरह की जांच की थी क्योंकि उसने तारीख से नौ दिनों की अवधि के भीतर सभी पांच मामलों में आरोप-पत्र दायर किया था। 14.08.2019 को आरोपी-आवेदक से कथित वसूली की।

    अंत में अदालत ने निर्देश दिया कि आवेदक कपिल रैदास को संबंधित मामले में जमानत पर रिहा किया जाए और संबंधित मजिस्ट्रेट / न्यायालय की संतुष्टि के लिए निजी बॉन्ड और दो ज़मानतदार पेश किए जाएंं।

    केस का शीर्षक - कपिल रैदास बनाम यू.पी. राज्य की सूची [बैल नं. 6671 ऑफ 2020]

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