होलकर राज्य के पूर्व शासक, महाराजा यशवंत राव होलकर की संपत्त‌ि मध्य प्रदेश राज्य की हैः मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

6 Oct 2020 12:00 PM GMT

  • होलकर राज्य के पूर्व शासक, महाराजा यशवंत राव होलकर की संपत्त‌ि मध्य प्रदेश राज्य की हैः मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    होलकर राज्य के तत्कालीन शासक, महाराजा यशवंत राव होलकर, की संपत्तियों के मौजूदा स्वामित्व के विवाद को हल करते हुए, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने यह माना जाता है कि स्वामित्व मध्य प्रदेश राज्य का है।

    जस्टिस एससी शर्मा और जस्टिस शैलेंद्र शुक्ला की खंडपीठ ने एकल पीठ के आदेश को रद्द कर दिया, जिसने राजस्व अधिकारियों को खासगी (देवी अहिल्या बाई शंकर चैरिटीज) ट्रस्ट, इंदौर की सभी संपत्तियों में मध्य प्रदेश राज्य का नाम डालने से रोक दिया था, यह सुनिश्चित करने के लिए कि ट्रस्ट की संपत्त‌ि अन्य व्यक्तियों को नहीं बेची जाती है।

    न्यायालय ने उल्लेख किया कि खासगी (देवी अहिल्या बाई होल्कर चैरिटीज) ट्रस्ट, इंदौर के पास ट्रस्ट की संपत्तियों का स्वामित्व नहीं है और इसलिए, इसमें ट्रस्ट की संपत्त‌ि को हस्तांतरित करने की शक्ति नहीं है।

    इसके अलावा यह भी पाया गया कि तत्कालीन शासक ने एक प्रतिज्ञापत्र पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके तहत सभी संपत्तियों का स्वामित्व मध्य भारत, अब मध्य प्रदेश राज्य को हस्तांतरित किया गया था।

    इसके मद्देनजर खंडपीठ ने कहा, "ट्रस्ट के पास ट्रस्ट की संपत्तियों को हस्तांतरित करने की किसी भी तरीके की कोई शक्ति नहीं है। खासगी ट्रस्ट के संबंध में मूल ट्रस्ट डीड और खासगी संपत्तियों में भारत सरकार द्वारा दावों का निस्तारण, यह स्पष्ट करता है कि खासगी की संपत्त‌ि और खासगी से होने वाली आय को मध्य भारत सरकार के लिए हर समय व्यतीत माना जाएगा, और इसलिए, बाद की कोई भी ट्रस्ट डीड, जिससे मूल ट्रस्ट डीड में बदलाव हो रहा हो, खासगी संपत्त‌ियों की बिक्री का प्रावधान करती हो, को निरस्त माना जाएगा।"

    फर्जीवाड़ा सब कुछ नष्ट कर देता है

    न्यायालय को यह भी बताया गया कि ट्रस्ट के कुछ संपत्त‌ियों को ट्रस्टियों ने, व्यक्तिगत लाभ के लिए धोखाधड़ी करके, मूंगफली के भाव बेच दिया था। जब‌कि ट्रस्टियों ने दावा किया कि ट्रस्ट को जारी रखने के लिए धन की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए संपत्तियों को बेचा गया था। आगे दलील दी गई कि उन्होंने 13 जून, 1969 को राज्य के मुख्य सचिव के पत्र से संपत्तियों को हस्तांतरित करने की शक्ति प्राप्त होती थी।

    हालांकि, इन तर्कों को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा, "वर्तमान मामले में, संपत्तियों को ट्रस्ट के उद्देश्य के लिए नहीं बेचा गया है, उन्हें छुपे हुए मकसद से बेचा गया है। मामले में, यदि ट्रस्ट के प्रबंधन में पैसे की कमी थी, तो निष्पक्षता यह होती कि, एक अनुदान प्रदान करने के लिए मध्य प्रदेश राज्य से अनुरोध किया जाना चाहिए था या ट्रस्ट को इस न्यायालय से संपर्क करना चाहिए था या धनराशि प्रदान करने के लिए मध्य प्रदेश राज्य को एक निर्देश जारी करने के लिए अन्य उपाय करना चाहिए था। पूर्वोक्त मुद्दे के संबंध में ट्रस्टियों का आचरण उनके छुपे हुए उद्देश्य के बारे में बोलता है।"

    कोर्ट ने आगे कहा, "दिनांक 13.06.1969 का पत्र, जिसमें कथित रूप से राज्य सरकार/ राज्य सरकार के फैसले द्वारा दी गई अनुमति है, तत्कालीन मुख्य सचिव के डीओ पत्र के अलावा कुछ भी नहीं है और व्यवसाय आवंटन नियमों के अनुसार, सरकार के किसी भी निर्णय के लिए संपत्ति की बिक्री मध्य प्रदेश के राज्यपाल के नाम से जारी की जानी चाहिए। "

    न्यायालय ने कहा कि ट्रस्टियों ने राज्य सरकार के साथ व्यक्तिगत लाभ के लिए सरकारी संपत्तियों को हस्तांतरित करने की धोखाधड़ी की और इसलिए उनकी ओर से की गई सभी बिक्री / स्थानान्तरण रद्द किए जाते हैं।

    "जैसा कि धोखाधड़ी सब कुछ नष्‍ट करती है और वर्तमान मामले में, ट्रस्ट‌ियों ने राज्य सरकार के साथ धोखाधड़ी की है, राज्य सरकार की संपत्तियों के संबंध में ट्रस्ट द्वारा निष्पादित बिक्री शून्य और अमान्‍य है।"

    शासकों के साथ पूर्व-संवैधानिक समझौतों की जांच करने के लिए न्यायालयों का क्षेत्राधिकार

    डिवीजन बेंच का यह भी मत था कि सिंगल जज के पास पहले से लागू रिट याचिकाओं को तय करने की शक्ति नहीं है, क्योंकि भारत के संविधान के अनुच्छेद 363 के तहत इस पर रोक है।

    संविधान का अनुच्छेद 363 किसी भी समझौते से उत्पन्न किसी भी विवाद में सभी अदालतों के अधिकार क्षेत्र को रोक देता है, जो कि एक भारतीय राज्य के किसी भी शासक द्वारा संविधान के प्रारंभ से पहले दर्ज किया गया था या निष्पादित किया गया था, जिसमें भारत सरकार एक पार्टी थी।

    डिवीजन बेंच ने कहा, "यह विवाद, कि क्या किसी विशेष संपत्ति को शासक की निजी संपत्ति के रूप में मान्यता दी गई थी या नहीं, वह स्वयं प्रतिज्ञा पत्र की शर्तों से उत्पन्न हुआ एक व‌िवाद है, और इसलिए, भारत के संविधान के अनुच्छेद 363 के प्रकाश में निर्णय योग्य नहीं है।

    निष्कर्ष

    न्यायालय ने मध्य प्रदेश राज्य को आदेश दिया है कि वह ट्रस्ट की संपत्ति में शामिल घाटों, मंदिरों, धर्मशालाओं सहित सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए सभी संभव कदम उठाए। अदालत ने राज्य को उन सभी व्यक्तियों के खिलाफ कानून के अनुसार उचित कार्रवाई करने के लिए भी कहा है, जिन्होंने कथित रूप से ट्रस्ट की संपत्ति को समय-समय पर अवैध रूप से बेचा है।

    केस टाइटल: मध्य प्रदेश राज्य और अन्य बनाम खासगी (देवी अहिल्या बाई होल्कर धर्मार्थ) ट्रस्ट, इंदौर और अन्य

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