एक पेशेवर भिखारी का भी नैतिक और कानूनी दायित्व होता है कि वह अपनी पत्नी का भरण-पोषण करे, जो खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ है : पी एंड एच हाईकोर्ट

Sharafat

30 March 2023 5:16 AM GMT

  • P&H High Court Dismisses Protection Plea Of Married Woman Residing With Another Man

    Punjab & Haryana High Court

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि एक पति का नैतिक और कानूनी दायित्व बनता है कि वह अपनी पत्नी का भरण-पोषण करे जो खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ है, भले ही वह पति एक पेशेवर भिखारी ही क्यों न हो।

    जस्टिस एचएस मदान की पीठ ने तलाक के मामले के लंबित रहने के दौरान पत्नी को मासिक भरण-पोषण के रूप में 5 हजार रुपये देने के निचली अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली पति की याचिका को खारिज करते हुए यह बात कही।

    अदालत ने कहा कि पति/याचिकाकर्ता एक सक्षम व्यक्ति है और आजकल एक शारीरिक रूप से सक्षम मजदूर भी प्रति दिन 500/- रुपये या उससे अधिक कमाता है और बढ़ती कीमतों की प्रवृत्ति को ध्यान में रखते हुए और बुनियादी जरूरतों की चीजों को देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि भरण पोषण बहुत अधिक दिया गया है।

    याचिकाकर्ता की पत्नी ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत एक आवेदन दायर करने के साथ-साथ अपने पति से 15,000/- रुपये प्रति माह के पेंडेंटे लाइट मैंटेनेंस के अलावा 11,000/- रुपये के मुकदमेबाजी खर्च की मांग करते हुए तलाक की याचिका दायर की थी।

    उक्त आवेदन को ट्रायल कोर्ट द्वारा उसके पति द्वारा देय 5,000/- रुपये प्रति माह की दर से पेंडेंटे लाइट मैंटेनेंस देने के आक्षेपित आदेश द्वारा अनुमति दी गई थी।

    अदालत ने उसे यह भी आदेश दिया कि वह अपनी पत्नी को अदालत के समक्ष उपस्थिति दर्ज कराने पर प्रति सुनवाई 500 रुपये के साथ मुकदमेबाजी खर्च के रूप में 5,500 रुपये की एकमुश्त राशि का भुगतान करे।

    इस आदेश को चुनौती देते हुए पति ने पुनरीक्षण याचिका के साथ हाईकोर्ट का रुख किया। उसी से निपटते हुए जस्टिस मदान की पीठ ने इस प्रकार कहा:

    " निश्चित रूप से एक पति का अपनी पत्नी का भरण पोषण करने का एक नैतिक और कानूनी दायित्व है जो खुद का भरण पोषण में असमर्थ है, भले ही वह पति एक पेशेवर बैगर ही क्यों न हो। प्रतिवादी/पति रिकॉर्ड पर यह स्थापित नहीं कर सका कि याचिकाकर्ता पत्नी (यहां प्रतिवादी) के पास कमाई का कोई साधन है या उसके पास पर्याप्त संपत्ति है।”

    इसके साथ अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत आवेदन को स्वीकार करने और उसे भरण पोषण के साथ-साथ मुकदमेबाजी का खर्च देना उचित ठहराया। इस प्रकार पुनरीक्षण याचिका खारिज की गई।

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