निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में पर्याप्त स्वायत्तता है, विलंब शुल्क के लिए प्रतिदिन पांच पैसे के जुर्माने का नियम उन पर लागू नहीं होता: दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

19 Nov 2022 5:48 AM GMT

  • निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में पर्याप्त स्वायत्तता है, विलंब शुल्क के लिए प्रतिदिन पांच पैसे के जुर्माने का नियम उन पर लागू नहीं होता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि किसी स्कूल को महीने के दसवें दिन के बाद फीस के भुगतान में देरी के लिए हर दिन के हिसाब से पांच पैसे का जुर्माना लगाने का अधिकार प्रदत्त करने वाला दिल्ली स्कूल शिक्षा नियमावली, 1973 का नियम 166 निजी गैर-सहायता प्राप्त विद्यालयों पर लागू नहीं होता है।

    जस्टिस विभु बाखरू और जस्टिस अमित महाजन की खंडपीठ ने कहा कि नियमावली का अध्याय XIII केवल सहायता प्राप्त स्कूलों के संबंध में लागू है, न कि निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों पर। नियमावली के अध्याय XIII को तीन भागों में बांटा गया है - भाग ए (144-155, सहायता प्राप्त स्कूलों में फीस और अन्य शुल्क), भाग बी (157-170, शुल्क रियायतें) और भाग सी (छात्रों की निधि सलाहकार समिति)।

    नियमावली के नियम 35 और नियम 167 की व्याख्या करते हुए, कोर्ट ने कहा कि नियम 167 शुल्क का भुगतान न करने पर छात्र का नाम काटकर हटाने के मामले में स्कूल प्रिंसिपल को कोई विवेकाधिकार नहीं देता है, लेकिन नियम 35 स्कूल प्रमुख को विवेकाधिकार देता है। कोर्ट ने कहा कि नियम 35 निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों पर लागू होता है और नियम 167 केवल वित्त-पोषित स्कूलों पर लागू होता है।

    कोर्ट ने कहा,

    "नियमावली के अध्याय XIII के भाग 'बी' में आने वाले नियम 166 या अन्य नियम निजी संस्थानों पर लागू होते हैं, जिससे इन संस्थानों को हर दिन की देरी के लिए अनिवार्य रूप से पांच पैसे की राशि चार्ज करने के लिए बाध्य किया जाता है और साथ ही, शुल्क का भुगतान न करने के कारण छात्र का नाम काट दिया जाना उनके उचित तरीके से अपने मामलों को चलाने के अधिकार के साथ असंगत होगा।"

    सुप्रीम कोर्ट द्वारा मान्यता प्राप्त स्वायत्तता के सिद्धांत के उल्लंघन को देखते हुए कोर्ट ने कहा कि यह स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि नियमावली का नियम 167 - जो नियमावली के नियम 166 का पूरक है, निजी गैर सहायता प्राप्त स्कूल छात्रों पर लागू नहीं होता है, लेकिन नियमावली के नियम 166 निजी गैर सहायता प्राप्त स्कूलों पर लागू होंगे।

    बेंच ने कहा,

    "वैधानिक व्याख्या के सिद्धांत कहते हैं कि एक प्रावधान को सार्थक तरीके से पढ़ा जाना चाहिए और इस तरह से व्याख्या की जानी चाहिए ताकि उसे असंवैधानिक घोषित होने से बचाया जा सके। यह सुझाव देना स्वाभाविक रूप से असंगत होगा कि स्कूल धन अर्जित करने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए शुल्क लगाने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन देरी से भुगतान के लिए पांच पैसे प्रति दिन की दर से जुर्माना लगाना होगा। यह एक स्वीकृत मामला है कि एक निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूल में छात्रों से लिया जाने वाला शुल्क एक सहायता प्राप्त स्कूल के शुल्क से बहुत अधिक है।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि सहायता प्राप्त स्कूलों के संबंध में जो नियम उनके अवलोकन और आवश्यक प्रभाव से लागू होते हैं, उन्हें निजी गैर सहायता प्राप्त स्कूलों के मामलों में लागू नहीं किया जा सकता है।

    कोर्ट ने आगे कहा,

    "इससे इतर भी, नियमावली का नियम 166, जो वर्तमान रिट याचिका में विवाद का विषय है, भाग 'बी' में आता है, जो नियम 157 से शुरू होता है। नियमावली के नियम 157 में कहा गया है कि "अभिव्यक्ति, "शुल्क" में शामिल हैं विज्ञान शुल्क, संगीत शुल्क आदि..", जो एक सहायता प्राप्त विद्यालय में छात्रों द्वारा भुगतान किया जाना आवश्यक है। नियमावली के अध्याय XIII के समग्रता में पढ़ने से कोई संदेह नहीं रह जाता है कि उक्त अध्याय अपनी संपूर्णता में, सहायता प्राप्त स्कूलों द्वारा एकत्रित शुल्क और अन्य प्रभारों के संबंध में लागू होता है।"

    दिल्ली के शिक्षा निदेशालय ने 2013 में एक आदेश पारित किया था, जिसमें कहा गया था कि नियम 166 निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों पर भी लागू होना चाहिए। हालांकि, इसने स्वीकार किया था कि पांच पैसे की लेट फीस लेना मौजूदा समय में अतार्किक है और इसकी समीक्षा की जरूरत है। अप्रैल 2013 में हाईकोर्ट की एकल पीठ ने कहा कि नियमावली के अध्याय XIII का भाग बी, विशेष रूप से नियम 165 और 166, दिल्ली के सभी निजी गैर सहायता प्राप्त मान्यता प्राप्त स्कूलों पर लागू होते हैं।

    वर्ष 2013 में राष्ट्रीय राजधानी में 500 से अधिक निजी गैर-सहायता प्राप्त निजी स्कूलों की प्रमुख संस्था, 'द एक्शन कमेटी अनएडेड रिकॉग्नाइज्ड प्राइवेट स्कूल' ने निर्देश देने की मांग की थी कि अध्याय XIII के भाग बी (शुल्क रियायत) में निहित नियम निजी गैर-मान्यता प्राप्त स्कूलों पर लागू नहीं होते हैं। विकल्प के तौर पर, याचिका में नियमों की संवैधानिकता को चुनौती दी गयी।

    खंडपीठ ने दोहराया कि फीस वसूलने के मामले में निजी गैर सहायता प्राप्त स्कूलों को पर्याप्त स्वायत्तता प्रदान की जाती है।

    कोर्ट ने कहा,

    "यह सहायता प्राप्त स्कूलों द्वारा लगाए जाने वाले शुल्क के विपरीत है, जो नियमावली के अध्याय XIII द्वारा शासित है। निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूल अपनी फीस संरचना तय करने के लिए स्वतंत्र हैं, जिसमें हमारी राय में न केवल ट्यूशन फीस शामिल है, बल्कि अन्य शुल्क और और छात्र द्वारा देय योगदान भी शामिल हैं "


    हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों द्वारा एकत्र की गई राशि अधिनियम के अन्य प्रावधानों द्वारा शासित होती है।

    यह फैसला देते हुए कि नियम 166 निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों के संबंध में लागू नहीं है, कोर्ट ने कहा कि डीओई ने 2013 में उल्लेख किया था कि उक्त प्रावधान की समीक्षा के लिए समिति का गठन किया गया है।

    कोर्ट ने कहा,

    "हम उम्मीद करते हैं कि प्रतिवादी प्रक्रिया में तेजी लाएगा और आज की तारीख से आठ सप्ताह की अवधि के भीतर यथासंभव सिफारिशें करेगा।"

    याचिकाकर्ता संगठन का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता कमल गुप्ता ने किया। दिल्ली सरकार की ओर से स्टैंडिंग काउंसल संतोष कुमार त्रिपाठी पेश हुए।

    टाइटल: एक्शन कमेटी अनएडेड रिकॉग्नाइज्ड प्राइवेट स्कूल बनाम निदेशक (शिक्षा) और अन्य


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