गैर-सहायता प्राप्त निजी शैक्षणिक संस्थान शिक्षा प्रदान करने के सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वहन करते हैं, इसलिए रिट क्षेत्राधिकार के लिए उत्तरदायीः कलकत्ता हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

2 Jun 2021 7:08 AM GMT

  • गैर-सहायता प्राप्त निजी शैक्षणिक संस्थान शिक्षा प्रदान करने के सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वहन करते हैं, इसलिए रिट क्षेत्राधिकार के लिए उत्तरदायीः कलकत्ता हाईकोर्ट

    Calcutta High Court 

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना है कि गैर-सहायता प्राप्त निजी शैक्षणिक संस्थान शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) के तहत सार्वजनिक कार्यों का निर्वहन करते हैं और इसलिए संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत न्यायालय के रिट क्षेत्राधिकार के लिए उत्तरदायी हैं।

    जस्टिस शेखर बी सराफ की एकल पीठ ने कहा, "इस प्रकार का सार्वजनिक कर्तव्य, मेरी राय में, संविधान के अनुच्छेद 21 ए के साथ-साथ आरटीई अधिनियम के संदर्भ में लागू किया गया है, जिसने मौलिक अधिकार को स्पष्ट रूप से प्रभावित किया है।" .

    मामले में मारवाड़ी बालिका विद्यालय बनाम आशा श्रीवास्तव पर भरोसा रखा गया, जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट ने एक गैर-सहायता प्राप्त निजी शैक्षणिक संस्थान के खिलाफ एक शिक्ष‌िका की एक रिट याचिका को सुनवाई योग्य माना था। शिक्षिका ने अपनी सेवाओं की समाप्ति को चुनौती दी थी।

    कोर्ट का ध्यान रॉयचन अब्राहम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, एआईआर 2019 ऑल 96 में दिए इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक पूर्ण पीठ के फैसले की ओर भी आकर्षित किया गया, जहां यह माना गया था कि उच्च शिक्षा के मंच समेत, निजी संस्थानों द्वारा छह साल और उसके बाद की उम्र के छात्रों को शिक्षा प्रदान करना, एक सार्वजनिक कर्तव्य है; तदनुसार, ऐसे संस्थान रिट क्षेत्राधिकार के लिए उत्तरदायी हैं।

    फैसले में यह स्पष्ट किया गया है कि भले ही किसी प्राधिकरण को संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत 'राज्य' माना जाता है, संवैधानिक अदालतों को कोई भी रिट जारी करने से पहले, विशेष रूप से परमादेश के, इस बात को संतुष्ट करना चाहिए कि संबंधित प्राधिकरण इस प्रकार की प्रश्नगत कार्रवाई, जिसके खिलाफ चुनौती है, निजी कानून के विपरीत सार्वजनिक कानून का एक हिस्सा बनता है। (केके सक्सेना बनाम सिंचाई और जल निकासी पर अंतर्राष्ट्रीय आयोग, (2015) 4 एससीसी 670 पर भरोसा रखा गया था।)

    मामले में पेशे से शिक्षाविद, बिनीता पटनायक पाधी ने एक रिट याचिका दायर की है, जिन्हें पनागढ़ स्‍थ‌ित आर्मी पब्लिक स्कूल के प्रिंसिपल के पद से हटा दिया गया था।

    स्कूल आर्मी वेलफेयर एजुकेशन सोसाइटी द्वारा संचालित है और वाईजे दस्तूर का तर्क था कि चूंकि उक्त स्कूल एक गैर-सहायता प्राप्त निजी स्कूल था और एडब्ल्यूईएस, जो इसका प्रबंधन कर रहा है, एक सार्वजनिक निकाय नहीं है, अनुच्छेद 12 के जनादेश को देखते हुए भारत के संविधान के अनुसार, न तो उक्त स्कूल और न ही उक्त स्कूल के मामलों की देखरेख करने वाला निकाय इस न्यायालय के रिट क्षेत्राधिकार के लिए उत्तरदायी होगा।

    याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता सोनल सिन्हा ने तर्क दिया कि इस तरह की समाप्ति मौलिक अधिकारों के साथ-साथ कुछ वैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।

    उन्होंने कहा कि शिक्षा का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, इस प्रकार सभी स्कूल एक सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं और परिणामस्वरूप, रिट अधिकार क्षेत्र के लिए उत्तरदायी हैं।

    मामले में वीआर रुदानी पर भरोसा रखा गया था, जहां सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि परमादेश की एक रिट किसी भी व्यक्ति या प्राधिकरण पर लागू होती है, जो सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वहन करता है, और प्रभावित पार्टी के लिए सकारात्मक दायित्व रखत है, जिसमें इस तरह के कर्तव्य को कानून द्वारा लागू करने की आवश्यकता नहीं है।

    उन्होंने तर्क दिया, "हालांकि यह एक स्वीकृत तथ्य है कि AWES देश भर में सभी आर्मी पब्लिक स्कूलों का संचालन करता है; व्यक्तिगत स्कूलों को, इस मामले में उक्त स्कूल के रूप में, RTE अधिनियम, WBRTE नियमों के वैधानिक अनुपालन के अनुरूप होना चाहिए ...।"

    उन्होंने, इस बात पर जोर देने के लिए कि आर्मी पब्लिक स्कूल एक सार्वजनिक उद्यम है, डीएस ग्रेवाल बनाम विम्मी जोशी, (2009) 2 एससीसी 210 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी भरोसा किया।

    उपरोक्त प्रस्तुतियों के आधार पर एकल पीठ ने कहा,

    "तथ्य यह है कि भले ही AWES को निजी निकाय / प्राधिकरण माना जाता है, संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत परमादेश की एक रिट उसे जारी की जा सकती है, यदि यह साबित हो जाता है कि वह एक सार्वजनिक कर्तव्य का पालन कर रहा है और यह प्रभावित पक्ष पर एक सकारात्मक दायित्व है। इस तरह की अनुमति का कारण अनुच्छेद 226 की ही मुहावरा है।"

    फैसले में कहा गया, "आरटीई अधिनियम की योजनाओं का अवलोकन यह दर्शाता है कि संसद का विधायी इरादा यह सुनिश्चित करना था कि शिक्षकों को कठिन परिस्थितियों में नहीं छोड़ा जाए और स्कूल संबंधित विवादों में उनकी शिकायतों को संतोषजनक ढंग से सुना जाए, आरटीई अधिनियम के विशिष्ट प्रावधान अत्यंत स्पष्टता के साथ निर्धारित करते हैं कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का अनुपालन जरूरी है..."

    केस टाइटिल: बिनीता पटनायक पाधी बनाम यूनियन ऑफ इं‌डिया और अन्य।

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