निजी स्कूल को परिवीक्षाधीन कर्मी की सेवा समाप्त करने के लिए प्रतिकूल टिप्पणी की आवश्यकता नहीं, जब तक कि आदेश कलंकित न हो: बॉम्बे हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ

Avanish Pathak

8 Jun 2023 11:41 PM IST

  • निजी स्कूल को परिवीक्षाधीन कर्मी की सेवा समाप्त करने के लिए प्रतिकूल टिप्पणी की आवश्यकता नहीं, जब तक कि आदेश कलंकित न हो: बॉम्बे हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ

    बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने हाल ही में कहा कि एक निजी स्कूल प्रबंधन को परिवीक्षा पर नियुक्त कर्मचारी की गोपनीय रिपोर्ट लिखने और प्रतिकूल टिप्पणी करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि ऐसे कर्मचारी का पद पर कोई अधिकार नहीं है।

    जस्टिस सुनील बी शुकरे, जस्टिस अविनाश जी घरोटे और जस्टिस अनिल एस किलोर की पूर्ण पीठ ने माना कि प्रोबेशनर की सेवा के वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन का रिकॉर्ड बनाए रखना उसे महाराष्ट्र के निजी स्कूलों के कर्मचारी (सेवाओं की शर्तें) विनियमन अधिनियम, 1977 की धारा 5(3) के तहत टर्मिनेट करने से पहले पर्याप्त अनुपालन है।

    कोर्ट ने कहा कि अगर बर्खास्तगी आदेश कलंकित नहीं है तो परिवीक्षाधीन व्यक्ति को बर्खास्त करते समय नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करने की आवश्यकता नहीं है। अदालत ने कहा कि महाराष्ट्र के निजी स्कूलों के कर्मचारी (सेवाओं की शर्तें) नियम, 1981 के नियम 15 (4) के तहत किसी भी प्रतिकूल टिप्पणी को संप्रेषित करने या प्रोबेशनर को प्रतिनिधित्व पेश करने की सुविधा देने की कोई आवश्यकता नहीं है।

    अदालत एक एकल न्यायाधीश द्वारा किए गए एक संदर्भ का जवाब दे रही थी, जिसने विभिन्न खंडपीठ के निर्णयों में विरोधाभासी टिप्पणियां पाईं कि क्या स्कूल प्रबंधन को परिवीक्षा पर नियुक्त कर्मचारी को गोपनीय रिपोर्ट लिखनी और संप्रेषित करनी है।

    मामले में शिवनारायण राउत नामक व्य‌क्ति को बुलढाणा जिले के आदिवासी माध्यमिक व उच्‍च माध्यामिक आश्रम शाला, किन्ही नाइक में शिक्षा सेवक के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्हें 9 जुलाई, 2016 को बर्खास्त कर दिया गया था। स्कूल ट्रिब्यूनल ने उनकी अपील को स्वीकार कर लिया और स्कूल को उन्हें पिछले वेतन के साथ बहाल करने का निर्देश दिया। इस प्रकार, स्कूल ने ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ वर्तमान रिट याचिका दायर की।

    एकल न्यायाधीश ने पाया कि एमईपीएस नियमों के नियम 15 के उप-नियम (1) से (5) एक परिवीक्षाधीन व्यक्ति पर लागू होते हैं या नहीं, इस सवाल पर दो विरोधाभासी विचार हैं।

    राउत के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि एमईपीएस नियमों के नियम 14 और नियम 15(1) से 15(6) तब लागू होते हैं जब एक प्रोबेशनर की सेवा असंतोषजनक कार्य या व्यवहार के आधार पर समाप्त की जाती है।

    हालांकि, स्कूल ने तर्क दिया कि एमईपीएस नियमों के नियम 15 का केवल उप नियम (6) एक परिवीक्षाधीन व्यक्ति पर लागू होता है, यह विशेष रूप से परिवीक्षा पर नियुक्त कर्मचारी को संदर्भित करता है।

    एमईपीएस अधिनियम की धारा 5(3) के तहत, प्रबंधन परिवीक्षा अवधि के दौरान किसी भी परिवीक्षाधीन व्यक्ति का कार्य या व्यवहार संतोषजनक नहीं पाए जाने पर उसे कभी भी टर्मिनेट कर सकता है।

    एमईपीएस नियमों के नियम 15(1) से (5) कर्मचारियों को वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट लिखने और संप्रेषित करने के लिए प्रबंधन के दायित्व का प्रावधान करते हैं। एक कर्मचारी स्कूल समिति द्वारा तय की जाने वाली सीआर में प्रतिकूल टिप्पणी के खिलाफ भी एक अभ्यावेदन दे सकता है। किसी कर्मचारी को सीआर बनाए रखने और संप्रेषित करने में विफलता के परिणामस्वरूप कर्मचारी का कार्य संतोषजनक माना जाएगा।

    एमईपीएस नियमों के नियम 15(6) में प्रावधान है कि प्रबंधन एक परिवीक्षाधीन व्यक्ति के प्रदर्शन का वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन करेगा और एक रिकॉर्ड बनाए रखेगा।

    अदालत ने कहा कि एमईपीएस अधिनियम की धारा 2 के अनुसार, कर्मचारी की परिभाषा में परिवीक्षाधीन व्यक्ति शामिल है। अदालत ने कहा कि अनुसूची जी यानी गोपनीय रिपोर्ट के प्रारूप में प्रोबेशनर शामिल नहीं है क्योंकि यह केवल स्थायी और अस्थायी कर्मचारियों को संदर्भित करता है।

    अदालत ने कहा कि एमईपीएस अधिनियम का परिभाषा खंड "इस अधिनियम में जब तक कि संदर्भ अन्यथा आवश्यक न हो ..." शब्दों के साथ शुरू होता है, इस प्रकार, 'कर्मचारी' शब्द का अर्थ वर्तमान मामले में एमईपीएस नियमों के नियम 14 (कर्मचारी के काम का आकलन) और 15 (सीआर का लेखन) के संदर्भ में व्याख्या किया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा कि अगर नियम 14(2) और नियम 15(1) से 15(5) की व्याख्या एक प्रोबेशनर पर लागू होने के लिए की जाती है, तो यह प्रोबेशनर को स्थायी और अस्थायी कर्मचारियों के बराबर माना जाएगा। अदालत ने कहा कि यह विधायिका की मंशा नहीं है क्योंकि प्रोबेशनर के लिए नियम 15 (6) में एक अलग प्रावधान प्रदान करके एक अपवाद बनाया गया है।

    कोर्ट ने कहा, इसलिए, धारा 2 के तहत परिभाषित अर्थ को एमईपीएस नियमों के नियम 14(2) और नियम 15 में आने वाली अभिव्यक्ति 'कर्मचारी' के लिए निर्दिष्ट नहीं किया जा सकता है।

    अदालत ने कहा कि प्रोबेशनर को अपने पद पर कोई अधिकार नहीं है और उसकी बर्खास्तगी सजा के तौर पर बर्खास्तगी नहीं है।

    कोर्ट ने कहा,

    इसके अलावा, किसी भी परिवीक्षा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है, इससे पहले कि कोई पुष्टि किए गए कर्मचारी का दर्जा प्राप्त करे, कि वह अपने कर्तव्यों और कार्यों को संतोषजनक ढंग से निभा सके और पद के लिए उपयुक्त हो।

    इस प्रकार, अदालत ने कहा कि यदि किसी प्रोबेशनर की बर्खास्तगी लांछन है या भविष्य की संभावनाओं के खिलाफ पूर्वाग्रह पैदा करती है या संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करती है, तो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत लागू होते हैं।

    अदालत ने कहा कि स्थायी कर्मचारी के मामले में गोपनीय रिपोर्ट किसी भी अनुशासनात्मक कार्यवाही या विभागीय जांच का हिस्सा हो सकती है।

    हालांकि, चूंकि प्रोबेशनर की सेवा की समाप्ति सजा के रूप में बर्खास्तगी के समान नहीं है, इसलिए प्रोबेशनर की सेवा समाप्त करने के लिए अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

    कोर्ट ने कहा कि अगर बर्खास्तगी आदेश कलंकित नहीं है तो परिवीक्षाधीन व्यक्ति को बर्खास्त करते समय नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करने की आवश्यकता नहीं है। अदालत ने कहा कि एमईपीएस नियमों के नियम 15(4) के तहत किसी भी प्रतिकूल टिप्पणी को संप्रेषित करने या परिवीक्षाधीन व्यक्ति को अभ्यावेदन देने की सुविधा देने की कोई आवश्यकता नहीं है।

    इस प्रकार, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि परिवीक्षा अवधि के दौरान परिवीक्षाधीन के प्रदर्शन का एक वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन और एमईपीएस नियमों के नियम 15(6) के तहत उसका रिकॉर्ड बनाए रखना समाप्ति के लिए पर्याप्त है और गोपनीय रिपोर्ट लिखने की कोई आवश्यकता नहीं है।

    मामला संख्याः रिट याचिका संख्या 5998/2019

    केस टाइटलः ग्रामीण युवक विकास शिक्षा मंडल किन्ही नाइक व अन्य बनाम शिवनारायण दत्ता राउत और अन्य।

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